भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय अठारह उपसंहार -- संन्यास की सिद्धि
मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि ।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि ।। 58 ।।
मत्– मेरी;चित्तः– चेतना में;सर्व– सारी;दुर्गाणि– बाधाओं को;मत्-प्रसादात्– मेरी कृपा से;तरिष्यसि– तुम पार कर सकोगे;अथ– लेकिन;चेत्– यदि;त्वम्– तुम;अहङ्कारात्– मिथ्या अहंकार से;न श्रोष्यसि– नहीं सुनते हो;विनङ्क्ष्यसि– नष्ट हो जाओगे।