radharasikrajdas (20)

10890779893?profile=RESIZE_400x

अध्याय अठारह - भगवान बलराम द्वारा प्रलम्बासुर का वध (10.18)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: अपने आनन्द-विभोर साथियों से घिरे हुए, जो निरन्तर उनके यश का गान कर रहे थे, श्रीकृष्ण व्रजग्राम में प्रविष्ट हुए जो गौवों के झुण्डों से मण्डित था।

2 जब कृष्ण तथा बलराम इस तरह से सामान्य ग्वालबालों के वेश में वृन्दावन में जीवन का आनन्द ले रहे थे तो शनै-शनै ग्रीष्म ऋतु आ गई। यह ऋतु देहधारियों को अधिक सुहावनी नहीं लगती।

3 फिर भी, चूँकि साक्षात भगवान कृष्ण बलराम सहित वृन्दावन में रह रहे थे अतएव ग्रीष्म ऋतु वसन्

Read more…

10890776857?profile=RESIZE_584x

अध्याय सत्रह -- कालिय का इतिहास (10.17)

1 [इस प्रकार कृष्ण ने कालिय की प्रताड़णा की उसे सुनकर] राजा परीक्षित ने पूछा: कालिय ने सर्पों के निवास रमणक द्वीप को क्यों छोड़ा और गरुड़ उसीका इतना विरोधी क्यों बन गया?

2-3 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: गरुड़ द्वारा खाये जाने से बचने के लिए सर्पों ने पहले से उससे यह समझौता कर रखा था कि उनमें से हर सर्प मास में एक बार अपनी भेंट लाकर वृक्ष के नीचे रख जाया करेगा। इस तरह हे महाबाहु परीक्षित, प्रत्येक मास हर सर्प अपनी रक्षा के मूल्य के रूप में विष्णु के शक्तिशाली व

Read more…

10890350879?profile=RESIZE_400x

अध्याय सोलह - कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताड़ना (10.16)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: भगवान श्रीकृष्ण ने यह देखकर कि काले सर्प कालिय ने यमुना नदी को दूषित कर रखा है, उसे शुद्ध करने की इच्छा की और इस तरह उन्होंने कालिय को उसमें से निकाल भगाया।

2 राजा परीक्षित ने पूछा: हे विद्वान मुनि, कृपा करके यह बतलाये कि किस तरह भगवान ने यमुना के अगाध जल में कालिय नाग को प्रताड़ित किया और वह कालिय किस तरह अनेक युगों से वहाँ पर रह रहा था?

3 हे ब्राह्मण, अनन्त भगवान अपनी इच्छानुसार स्वतंत्र रूप से कर्म करते हैं

Read more…

10890341279?profile=RESIZE_710x

अध्याय चौदह ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति (10.14)

1 ब्रह्मा ने कहा: हे प्रभु, आप ही एकमात्र पूज्य भगवान हैं अतएव आपको प्रसन्न करने के लिए मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ और आपकी स्तुति करता हूँ। हे ग्वालनरेश पुत्र, आपका दिव्य शरीर नवीन बादलों के समान गहरा नीला है; आपके वस्त्र बिजली के समान देदीप्यमान हैं और आपके मुखमण्डल का सौन्दर्य गुञ्जा के बने कुण्डलों से तथा सिर पर लगे मोरपंख से बढ़ जाता है। अनेक वन-फूलों तथा पत्तियों की माला पहने तथा चराने की छड़ी (लकुटी), शृंग और वंशी से सज्जित आप अपने हाथ

Read more…

8799107895?profile=RESIZE_400x

अध्याय तेरह ब्रह्मा द्वारा बालकों तथा बछड़ों की चोरी (10.13)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे भक्त शिरोमणि, परम भाग्यशाली परीक्षित, तुमने बहुत सुन्दर प्रश्न किया है क्योंकि भगवान की लीलाओं को निरन्तर सुनने पर भी तुम उनके कार्यों को नित्य नूतन रूप में अनुभव कर रहे हो।

2 जीवन-सार को स्वीकार करने वाले परम हंस भक्त अपने अन्तःकरण से कृष्ण के प्रति अनुरक्त होते हैं और कृष्ण ही उनके जीवन के लक्ष्य रहते हैं। प्रतिक्षण कृष्ण की ही चर्चा करना उनका स्वभाव होता है, मानो ये कथाएँ नित्य नूतन हों। वे इन कथाओ

Read more…

10890282865?profile=RESIZE_710x

अध्याय बारह - अघासुर का वध (10.12)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन, एक दिन कृष्ण ने जंगल में विहार करते हुए कलेवा करना चाहा। उन्होंने बड़े सुबह उठकर सींग का बिगुल बजाया तथा उसकी मधुर आवाज से ग्वालबालों तथा बछड़ों को जगाया। फिर कृष्ण तथा सारे बालक अपने अपने बछड़ों के समूहों को आगे करके व्रजभूमि से जंगल की ओर बढ़े।

2 उस समय लाखों ग्वालबाल व्रजभूमि में अपने -अपने घरों से बाहर आ गये और अपने साथ के लाखों बछड़ों की टोलियों को अपने आगे करके कृष्ण से आ मिले। ये बालक अतीव सुन्दर थे। उनके पास कलेवा की प

Read more…

 

10890273264?profile=RESIZE_400x

अध्याय ग्यारह – कृष्ण की बाल-लीलाएँ (10.11)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: हे महाराज परीक्षित, जब यमलार्जुन वृक्ष गिर पड़े तो आसपास के सारे ग्वाले भयानक शब्द सुनकर वज्रपात की आशंका से उस स्थान पर गये ।

2 वहाँ उन सबने यमलार्जुन वृक्षों को जमीन पर गिरे हुए देखा किन्तु वे विमोहित थे क्योंकि वे आँखों के सामने वृक्षों को गिरे हुए तो देख रहे थे किन्तु उनके गिरने के कारण का पता नहीं लगा पा रहे थे ।

3 कृष्ण रस्सी द्वारा ओखली से बँधे थे जिसे वे खींच रहे थे। किन्तु उन्होंने वृक्षों को किस तरह गिरा लि

Read more…

10889559659?profile=RESIZE_400x

अध्याय दस - यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार (10.10)

1 राजा परीक्षित ने श्रील शुकदेव गोस्वामी से पूछा: हे महान एवं शक्तिशाली सन्त, नारदमुनि द्वारा नलकूवर तथा मणिग्रीव को शाप दिये जाने का क्या कारण था? उन्होंने ऐसा कौन-सा निन्दनीय कार्य किया कि देवर्षि नारद तक उन पर क्रुद्ध हो उठे? कृपया मुझे कह सुनायें।

2-3 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा परीक्षित, चूँकि कुबेर के दोनों पुत्रों को भगवान शिवजी के पार्षद होने का गौरव प्राप्त था, फलतः वे अत्यधिक गर्वित हो उठे थे। उन्हें मन्दाकिनी नदी के तट पर कैलाश

Read more…

10889527865?profile=RESIZE_584x

अध्याय आठ – भगवान कृष्ण द्वारा अपने मुख के भीतर विराट रूप का प्रदर्शन (10.8)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे महाराज परीक्षित, तब यदुकुल के पुरोहित एवं तपस्या में बढ़े चढ़े गर्गमुनि को वसुदेव ने प्रेरित किया कि वे नन्द महाराज के घर जाकर उन्हें मिलें।

2 जब नन्द महाराज ने गर्गमुनि को अपने घर में उपस्थित देखा तो वे उनके स्वागत में दोनों हाथ जोड़े उठ खड़े हुए। यद्यपि गर्गमुनि को नन्द महाराज अपनी आँखों से देख रहे थे किन्तु वे उन्हें अधोक्षज मान रहे थे अर्थात वे भौतिक इन्द्रियों से दिखाई पड़ने वाले सामान्

Read more…

10889510873?profile=RESIZE_584x

अध्याय सात तृणावर्त का वध (10.7) 

1-2 राजा परीक्षित ने कहा: हे प्रभु श्रील शुकदेव गोस्वामी, भगवान के अवतारों द्वारा प्रदर्शित विविध लीलाएँ निश्चित रूप से कानों को तथा मन को सुहावनी लगने वाली हैं। इन लीलाओं के श्रवणमात्र से मनुष्य के मन का मैल तत्क्षण धुल जाता है। सामान्यतया हम भगवान की लीलाओं को सुनने में आनाकानी करते हैं किन्तु कृष्ण की बाल-लीलाएँ इतनी आकर्षक हैं कि वे स्वतः ही मन तथा कानों को सुहावनी लगती हैं। इस तरह भौतिक वस्तुओं के विषय में सुनने की अनुरक्ति, जो भवबन्धन का मूल कारण है, समाप

Read more…

पूतना वध (10.6)

10889344700?profile=RESIZE_584x

अध्याय  छह -  पूतना वध (10.6) 

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन! जब नन्द महाराज घर वापस आ रहे थे तो उन्होंने विचार किया कि वसुदेव ने जो कुछ कहा था वह असत्य या निरर्थक नहीं हो सकता। अवश्य ही गोकुल में उत्पातों के होने का कुछ खतरा रहा होगा। ज्योंही नन्द महाराज ने अपने सुन्दर पुत्र कृष्ण के लिए खतरे के विषय में सोचा त्योंही वे भयभीत हो उठे और उन्होंने परम नियन्ता के चरणकमलों में शरण ली।

2 जब नन्द महाराज गोकुल लौट रहे थे तो वही विकराल पूतना, जिसे कंस ने बच्चों को मारने के लिए पहले से नियुक्त क

Read more…

10889335076?profile=RESIZE_400x

अध्याय पाँच - नन्द महाराज तथा वसुदेव की भेंट (10.5)

1-2 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: नन्द महाराज स्वभाव से अत्यन्त उदार थे अतः जब भगवान श्रीकृष्ण ने उनके पुत्र रूप में जन्म लिया तो वे हर्ष के मारे फूले नहीं समाए। अतएव स्नान द्वारा अपने को शुद्ध करके तथा समुचित ढंग से वस्त्र धारण करके उन्होंने वैदिक मंत्रों का पाठ करने वाले ब्राह्मणों को बुला भेजा। जब ये योग्य ब्राह्मण शुभ वैदिक स्तोत्रों का पाठ कर चुके तो नन्द ने अपने नवजात शिशु के जात-कर्म को विधिवत सम्पन्न किए जाने की व्यवस्था की। उन्होंने देव

Read more…

10889327677?profile=RESIZE_710x

अध्याय चार राजा कंस के अत्याचार (10.4) 

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा परीक्षित, घर के भीतरी तथा बाहरी दरवाजे पूर्ववत बन्द हो गए। तत्पश्चात घर के रहने वालों ने, विशेष रूप से द्वारपालों ने, नवजात शिशु का क्रन्दन सुना और अपने बिस्तरों से उठ खड़े हुए।

2 तत्पश्चात सारे द्वारपाल जल्दी से भोजवंश के शासक राजा कंस के पास गए और उसे देवकी से शिशु के जन्म लेने का समाचार बतलाया। अत्यन्त उत्सुकता से इस समाचार की प्रतीक्षा कर रहे कंस ने तुरन्त ही कार्यवाही की।

3 कंस तुरन्त ही बिस्तर से यह सोचते हुए उ

Read more…

10889289687?profile=RESIZE_710x

अध्याय दो देवताओं द्वारा गर्भस्थ कृष्ण की स्तुति 

1-2 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: मगधराज जरासन्ध के संरक्षण में शक्तिशाली कंस द्वारा यदुवंशी राजाओं को सताया जाने लगा। इसमें उसे प्रलम्ब, बक, चाणुर, तृणावर्त, अघासुर, मुष्टिक, अरिष्ट, द्विविद, पूतना, केशी, धेनुक, बाणासुर, नरकासुर तथा पृथ्वी के अनेक दूसरे असुर राजाओं का सहयोग प्राप्त था।

3 असुर राजाओं द्वारा सताये जाने पर यादवों ने अपना राज्य छोड़ दिया और कुरुओं, पञ्चालों, केकयों, शाल्वों, विदर्भों, निषधों, विदेहों तथा कोशलों के राज्य में प्रविष्ट

Read more…

 

10888786471?profile=RESIZE_584x

अध्याय एक - भगवान श्रीकृष्ण का अवतार-परिचय (10.1)

1 राजा परीक्षित ने कहा: हे प्रभु, आपने चन्द्रदेव तथा सूर्यदेव दोनों के वंशों का, उनके राजाओं के महान तथा अद्भुत चरित्रों सहित विशद वर्णन किया है।

2 हे मुनिश्रेष्ठ, आप परम पवित्र तथा धर्मशील यदुवंशियों का भी वर्णन कर चुके हैं। अब हो सके तो कृपा करके उन भगवान विष्णु या कृष्ण के अद्भुत महिमामय कार्यकलापों का वर्णन करें जो यदुवंश में अपने अंश बलदेव के साथ प्रकट हुए हैं।

3 परमात्मा अर्थात पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण, जो विराट जगत के कारण हैं, यदुवंश

Read more…

10887976052?profile=RESIZE_400x

अध्याय चौबीस – भगवान श्रीकृष्ण (9.24)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: अपने पिता द्वारा लाई गई उस लड़की के गर्भ से विदर्भ को तीन पुत्र प्राप्त हुए – कुश, क्रथ तथा रोमपाद। रोमपाद विदर्भ कुल का अत्यन्त प्रिय था।

2 रोमपाद का पुत्र बभ्रु हुआ जिससे कृति नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई। कृति का पुत्र उशिक हुआ और उशिक का पुत्र चेदि, चेदि से चैद्य तथा अन्य राजा (पुत्र) उत्पन्न हुए।

3-4 क्रथ का पुत्र कुन्ति, कुन्ति का पुत्र वृष्णि, वृष्णि का निर्वृति, निर्वृति का दशार्ह, दशार्ह का व्योम, व्योम का जीमूत, जीमूत का

Read more…

10887973300?profile=RESIZE_710x

अध्याय तेईस – ययाति के पुत्रों की वंशावली (9.23)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: ययाति के चौथे पुत्र अनु के तीन पुत्र हुए जिनके नाम थे – सभानर, चक्षु तथा परेष्णु। हे राजन, सभानर के कालनर नाम का एक पुत्र हुआ और कालनर से सृञ्जय नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।

2 सृञ्जय का पुत्र जनमेजय हुआ, जनमेजय का पुत्र महाशाल, महाशाल का पुत्र महामना और महामना के दो पुत्र उशीनर तथा तितिक्षु हुए।

3-4 उशीनर के चार पुत्र थे – शिवि, वर, कृमि तथा दक्ष। शिवि के भी चार पुत्र हुए – वृषादर्भ, सुधीर, मद्र तथा आत्मतत्त्वित केकय। तित

Read more…

10887960890?profile=RESIZE_400x

अध्याय बाईस – अजमीढ के वंशज (9.22)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन दिवोदास का पुत्र मित्रायु था और मित्रायु के चार पुत्र हुए जिनके नाम थे च्यवन, सुदास, सहदेव तथा सोमक।

2 सोमक जन्तु का पिता था। सोमक के एक सौ पुत्र थे जिनमें सबसे छोटा पृषत था। पृषत से राजा द्रुपद उत्पन्न हुआ जो सभी प्रकार से ऐश्वर्यवान था।

3 महाराज द्रुपद से द्रौपदी उत्पन्न हुई। महाराज द्रुपद के कई पुत्र भी थे जिनमें धृष्टद्युम्न प्रमुख था। उसके पुत्र का नाम धृष्टकेतु था। ये सारे पुरुष भर्म्याश्व के वंशज या पाञ्चालवंशी कहल

Read more…

10887484487?profile=RESIZE_400x

अध्याय अठारह – राजा ययाति को यौवन की पुनः प्राप्ति (9.18)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा परीक्षित, जिस तरह देहधारी आत्मा के छह इन्द्रियाँ होती हैं उसी तरह राजा नहुष के छह पुत्र थे जिनके नाम थे यति, ययाति, सनयती, आयति, वियति तथा कृति।

2 जब कोई मनुष्य राजा या सरकार के प्रधान का पद ग्रहण करता है तो वह आत्म-साक्षात्कार का अर्थ नहीं समझ पाता। यह जानकर, नहुष के सबसे बड़े पुत्र यति ने शासन सँभालना स्वीकार नहीं किया यद्यपि उसके पिता ने राज्य को उसे ही सौंपा था।

3 चूँकि ययाति के पिता नहुष ने इन्द

Read more…

10887362859?profile=RESIZE_584x

अध्याय सोलह – भगवान परशुराम द्वारा विश्व के क्षत्रियों का विनाश (9.16)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे महाराज परीक्षित, हे कुरुवंशी, जब भगवान परशुराम को उनके पिता ने यह आदेश दिया तो उन्होंने तुरन्त ही यह कहते हुए उसे स्वीकार किया, “ऐसा ही होगा।” वे एक वर्ष तक तीर्थस्थलों की यात्रा करते रहे। तत्पश्चात वे अपने पिता के आश्रम में लौट आये।

2 एक बार जब जमदग्नि की पत्नी रेणुका गंगा नदी के तट पर पानी भरने गई तो उन्होंने गन्धर्वों के राजा को कमल-फूल की माला से अलंकृत तथा अप्सराओं के साथ गंगा में विहार

Read more…