भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय चौदह प्रकृति के तीन गुण
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ।। 4 ॥
सर्व-योनिषु- समस्त योनियों में;कौन्तेय- हे कुन्तीपुत्र;मूर्तयः- स्वरूप;सम्भवन्ति- प्रकट होते हैं;याः- जो;तासाम्- उन सबों का;ब्रह्म- परम;महत् योनिः- जन्म स्त्रोत;अहम्- मैं;बीज-प्रदः- बीजप्रदाता;पिता- पिता।
भावार्थ : हे कुन्तीपुत्र! तुम यह समझ लो कि समस्त प्रकार की जीव-योनियाँ इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारा सम्भव हैं और मैं उनका बीज-प्रदाता पिता हूँ।
तात्पर्य : इस श्लोक में स्पष्ट बताया गया है कि भगवान् श्रीकृष्ण समस्त जीवों के आदि पिता हैं। सारे जीव भौतिक प्रकृति तथा आध्यात्मिक प्रकृति के संयोग हैं। ऐसे जीव केवल इस लोक में ही नहीं, अपितु प्रत्येक लोक में, यहाँ तक कि सर्वोच्च लोक में भी, जहाँ ब्रह्मा आसीन हैं, पाये जाते हैं। जीव सर्वत्र हैं - पृथ्वी, जल तथा अग्नि के भीतर भी जीव हैं। ये सारे जीव माता भौतिक प्रकृति तथा बीजप्रदाता कृष्ण के द्वारा प्रकट होते हैं। तात्पर्य यह है कि भौतिक जगत् जीवों को गर्भ में धारण किये है, जो सृष्टिकाल में अपने पूर्वकर्मों के अनुसार विविध रूपों में प्रकट होते हैं।
(समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान)
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