ramcharabdas (1)

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भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक

अध्याय अठारह उपसंहार -- संन्यास की सिद्धि

भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्र्चास्मि तत्त्वतः ।
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्  ।। 55 ।।

भक्त्या– शुद्ध भक्ति से;माम्– मुझको;अभिजानाति– जान सकता है;यावान्– जितना;यः च अस्मि– जैसा मैं हूँ;तत्त्वतः– सत्यतः;ततः– तत्पश्चात्;माम्– मुझको;तत्त्वतः– सत्यतः;ज्ञात्वा– जानकर;विशते– प्रवेश करता है;तत्-अनन्तरम्– तत्पश्चात्।

भावार्थ : केवल भक्ति से मुझ भगवान् को यथारूप में जाना जा सकता है। जब मनुष्य ऐसी भक्ति से मेरे प
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