भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय अठारह उपसंहार -- संन्यास की सिद्धि
य इदं परमं गुह्यं मद्भकतेष्वभिधास्यति।
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः ।। 68 ।।
यः- जो;इदम्- इस;परमम्- अत्यन्त;गुह्यम्- रहस्य को;मत्- मेरे;भक्तेषु- भक्तों में से;अभिधास्यति- कहता है;भक्तिम्- भक्ति को;मयि- मुझको;पराम्- दिव्य;कृत्वा- करके;माम्- मुझको;एव- निश्चय ही;एष्यति- प्राप्त होता है;असंशय- इसमें कोई सन्देह नहीं।
भावार्थ : जो व्यक्ति भक्तों को यह परम रहस्य बताता है, वह शुद्ध भक्ति को प्राप्त करेगा और अन्त