भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय नौ परम गुह्य ज्ञान
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तदहं भक्तयुपहृतमश्र्नामि प्रयतात्मनः ॥ 26 ॥
पत्रम्– पत्ती;पुष्पम्– फूल;फलम्- फल;तोयम्– जल;यः– जो कोई;मे– मुझको;भक्त्या– भक्तिपूर्वक;प्रयच्छति– भेंट करता है;तत्– वह;अहम्– मैं;भक्ति-उपहृतम्– भक्तिभाव से अर्पित;अश्नामि– स्वीकार करता हूँ;प्रयत-आत्मनः– शुद्धचेतना वाले से।
भावार्थ : यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ।
तात्पर्य