भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय बारह भक्तियोग
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेश्य ।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः ॥ 8 ॥
मयि- मुझमें;एव- निश्चय ही;मनः- मन को;आधत्स्व- स्थिर करो;मयि- मुझमें;बुद्धिम्- बुद्धि को;निवेश्य- लगाओ;निवसिष्यसि- तुम निवास करोगे;मयि- मुझमें;एव- निश्चय ही;अतः-अर्ध्वम्- तत्पश्चात्;न- कभी नहीं;संशयः- सन्देह।
भावार्थ : मुझ भगवान् में अपने चित्त को स्थिर करो और अपनी साड़ी बुद्धि मुझमें लगाओ। इस प्रकार तुम निस्सन्देह मुझमें सदैव वास करोगे।
तात्पर्य : जो भगवान्