अध्याय तीन – हिरण्यकशिपु की अमर बनने की योजना (7.3)
1 नारद मुनि ने महाराज युधिष्ठिर से कहा: दैत्यराज हिरण्यकशिपु अजेय तथा वृद्धावस्था एवं शरीर की जर्जरता से मुक्त होना चाहता था। वह अणिमा तथा लघिमा जैसी समस्त योग-सिद्धियों को प्राप्त करना, मृत्युरहित होना और ब्रह्मलोक समेत अखिल विश्व का एकछत्र राजा बनना चाहता था।
2 हिरण्यकशिपु ने मन्दर पर्वत की घाटी में अपने पाँव के अँगूठे के बल भूमि पर खड़े होकर, अपनी भुजाएँ ऊपर किये तथा आकाश की ओर देखते हुए तपस्या प्रारम्भ की। यह स्थिति अतीव कठिन थी, किन्तु सिद्