अध्याय पंद्रह - सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश
श्लोक क्रमांक 41 से 80
अध्याय पंद्रह - सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश
श्लोक क्रमांक 41 से 80
अध्याय उन्नीस – पुंसवन व्रत का अनुष्ठान (6.19)
1 महाराज परीक्षित ने कहा: हे प्रभो! आप पुंसवन व्रत के सम्बन्ध में पहले ही बता चुके हैं। अब मैं इसके विषय में विस्तार से सुनना चाहता हूँ क्योंकि मैं समझता हूँ कि इस व्रत का पालन करके भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता है।
2-3 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: स्त्री को चाहिए कि अगहन मास (नवम्बर-दिसम्बर) के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को अपने पति की अनुमति से इस नैमित्यिक भक्ति को, तप के व्रत सहित प्रारम्भ करे क्योंकि इससे सभी मनोकामनाएँ पूरी हो सकती है। भगवान
अध्याय छब्बीस – नारकीय लोकों का वर्णन (5.26)
1 राजा परीक्षित ने श्रील शुकदेव गोस्वामी से पूछा- हे महाशय, जीवात्माओं को विभिन्न भौतिक गतियाँ क्यों प्राप्त होती हैं? कृपा करके मुझसे कहें।
2 महामुनि श्रील शुकदेव बोले- हे राजन, इस जगत में सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण में स्थित तीन प्रकार के कर्म होते हैं। चूँकि सभी मनुष्य इन तीन गुणों से प्रभावित होते हैं, अतः कर्मों के फल भी तीन प्रकार के होते हैं। जो सतोगुण के अनुसार कर्म करता है, वह धार्मिक एवं सुखी होता है, जो रजोगुण में कर्म करता है उसे कष्ट तथा
अध्याय इकतीस – प्रचेताओं को नारद का उपदेश (4.31)
1 महान सन्त मैत्रेय ने आगे कहा: तत्पश्चात प्रचेता हजारों वर्षों तक घर में रहे और आध्यात्मिक चेतना में पूर्ण ज्ञान विकसित किया। अन्त में उन्हें भगवान के आशीर्वादों की याद आई और वे अपनी पत्नी को अपने सुयोग्य पुत्र के जिम्मे छोड़कर घर से निकल पड़े।
2 प्रचेतागण पश्चिम दिशा में समुद्रतट की ओर गये जहाँ जाजलि ऋषि निवास कर रहे थे। उन्होंने वह आध्यात्मिक ज्ञान पुष्ट कर लिया जिससे मनुष्य समस्त जीवों के प्रति समभाव रखने लगता है। इस तरह वे कृष्णभक्ति में पटु हो