अध्याय सत्रह ----- गंगा-अवतरण
1 श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजन, सभी यज्ञों के भोक्ता भगवान विष्णु महाराज बलि की यज्ञशाला में वामनदेव का रूप धारण करके प्रकट हुए। तब उन्होंने अपने वाम पाद को ब्रह्मांड के छोर तक फैला दिया और अपने पैर के अँगूठे से उसके आवरण में एक छिद्र बना दिया। कारण-समुद्र के विशुद्ध जल ने, इस छिद्र के माध्यम से गंगा नदी के रूप में इस ब्रह्मांड में प्रवेश किया। विष्णु के चरणकमलों को, जो केशर से लेपित थे, धोने से गंगा का जल अत्यंत मनोहर गुलाबी रंग का हो गया। गंगा के दिव्य ज