हिन्दी भाषी संघ (229)

 

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अध्याय एक - भगवान श्रीकृष्ण का अवतार-परिचय (10.1)

1 राजा परीक्षित ने कहा: हे प्रभु, आपने चन्द्रदेव तथा सूर्यदेव दोनों के वंशों का, उनके राजाओं के महान तथा अद्भुत चरित्रों सहित विशद वर्णन किया है।

2 हे मुनिश्रेष्ठ, आप परम पवित्र तथा धर्मशील यदुवंशियों का भी वर्णन कर चुके हैं। अब हो सके तो कृपा करके उन भगवान विष्णु या कृष्ण के अद्भुत महिमामय कार्यकलापों का वर्णन करें जो यदुवंश में अपने अंश बलदेव के साथ प्रकट हुए हैं।

3 परमात्मा अर्थात पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण, जो विराट जगत के कारण हैं, यदुवंश

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अध्याय तेईस – ययाति के पुत्रों की वंशावली (9.23)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: ययाति के चौथे पुत्र अनु के तीन पुत्र हुए जिनके नाम थे – सभानर, चक्षु तथा परेष्णु। हे राजन, सभानर के कालनर नाम का एक पुत्र हुआ और कालनर से सृञ्जय नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।

2 सृञ्जय का पुत्र जनमेजय हुआ, जनमेजय का पुत्र महाशाल, महाशाल का पुत्र महामना और महामना के दो पुत्र उशीनर तथा तितिक्षु हुए।

3-4 उशीनर के चार पुत्र थे – शिवि, वर, कृमि तथा दक्ष। शिवि के भी चार पुत्र हुए – वृषादर्भ, सुधीर, मद्र तथा आत्मतत्त्वित केकय। तित

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अध्याय बाईस – अजमीढ के वंशज (9.22)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन दिवोदास का पुत्र मित्रायु था और मित्रायु के चार पुत्र हुए जिनके नाम थे च्यवन, सुदास, सहदेव तथा सोमक।

2 सोमक जन्तु का पिता था। सोमक के एक सौ पुत्र थे जिनमें सबसे छोटा पृषत था। पृषत से राजा द्रुपद उत्पन्न हुआ जो सभी प्रकार से ऐश्वर्यवान था।

3 महाराज द्रुपद से द्रौपदी उत्पन्न हुई। महाराज द्रुपद के कई पुत्र भी थे जिनमें धृष्टद्युम्न प्रमुख था। उसके पुत्र का नाम धृष्टकेतु था। ये सारे पुरुष भर्म्याश्व के वंशज या पाञ्चालवंशी कहल

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भरत का वंश (9-21)

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अध्याय इक्कीस – भरत का वंश (9.21)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: चूँकि मरुतगणों ने भरद्वाज को लाकर दिया था इसलिए वह वितथ कहलाया। वितथ के पुत्र का नाम मन्यु था जिसके पाँच पुत्र हुए – बृहत्क्षत्र, जय, महावीर्य, नर, तथा गर्ग। इन पाँचों में से नर के पुत्र का नाम संकृति था।

2 हे महाराज परीक्षित, हे पाण्डु के वंशज, संकृति के दो पुत्र थे – गुरु तथा रन्तिदेव। रन्तिदेव इस लोक में तथा परलोक दोनों में ही विख्यात हैं क्योंकि उनकी महिमा का गान न केवल मानव समाज में अपितु देव समाज में भी होता है।

3-5 रन्तिदेव

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अध्याय बीस – पुरु का वंश (9.20)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे महाराज भरत के वंशज महाराज परीक्षित, अब मैं पुरु के वंश का वर्णन करूँगा जिसमें तुम उत्पन्न हुए हो और जिसमें अनेक राजर्षि हुए हैं, जिनसे अनेक ब्राह्मण वंशों का प्रारम्भ हुआ है।

2 पुरु के ही इस वंश में राजा जनमेजय उत्पन्न हुआ। उसका पुत्र प्रचिन्वान था और उसका पुत्र था प्रवीर। तत्पश्चात प्रवीर का पुत्र मनुस्यु हुआ जिसका पुत्र चारुपद था।

3 चारुपद का पुत्र सुदयु था और सुदयु का पुत्र बहुगव था। बहुगव का पुत्र सन्याति था, जिससे अहन्याति न

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अध्याय उन्नीस – राजा ययाति को मुक्ति लाभ (9.19)

1-15 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे महाराज परीक्षित, ययाति स्त्री पर अत्यधिक अनुरक्त था। किन्तु कालक्रम से जब वह विषय-भोग तथा इसके बुरे प्रभावों से ऊब गया तो उसने यह जीवन-शैली त्याग दी और अपने निजी जीवन पर आधारित बकरे-बकरी की एक कहानी बनाई और अपनी प्रियतमा को सुनाई। कहानी सुनाने के बाद उससे कहा – हे सुन्दर भौंहों वाली प्रिये, मैं उसी बकरे के सदृश हूँ क्योंकि मैं इतना मन्दबुद्धि हूँ कि मैं तुम्हारे सौन्दर्य से मोहित होकर आत्म-साक्षात्कार के असली का

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अध्याय अठारह – राजा ययाति को यौवन की पुनः प्राप्ति (9.18)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा परीक्षित, जिस तरह देहधारी आत्मा के छह इन्द्रियाँ होती हैं उसी तरह राजा नहुष के छह पुत्र थे जिनके नाम थे यति, ययाति, सनयती, आयति, वियति तथा कृति।

2 जब कोई मनुष्य राजा या सरकार के प्रधान का पद ग्रहण करता है तो वह आत्म-साक्षात्कार का अर्थ नहीं समझ पाता। यह जानकर, नहुष के सबसे बड़े पुत्र यति ने शासन सँभालना स्वीकार नहीं किया यद्यपि उसके पिता ने राज्य को उसे ही सौंपा था।

3 चूँकि ययाति के पिता नहुष ने इन्द

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अध्याय सत्रह – पुरुरवा के पुत्रों की वंशावली (9.17)

1-3 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: पुरुरवा से आयु नामक पुत्र हुआ जिससे नहुष, क्षत्रवृद्ध, रजी, राभ तथा अनेना नाम के अत्यन्त शक्तिशाली पुत्र उत्पन्न हुए। हे महाराज परीक्षित, अब क्षत्रवृद्ध के वंश के विषय में सुनो। क्षत्रवृद्ध का पुत्र सुहोत्र था जिसके तीन पुत्र हुए – काश्य, कुश तथा गृत्समद। गृत्समद से शुनक हुआ और शुनक से शौनक मुनि उत्पन्न हुए जो ऋग्वेद में सर्वाधिक पटु थे।

4 काश्य का पुत्र काशी था और उसका पुत्र राष्ट्र हुआ जो दीर्घतम का पिता था।

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अध्याय पन्द्रह – भगवान का योद्धा अवतार, परशुराम (9.15)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा परीक्षित, पुरुरवा ने उर्वशी के गर्भ से छह पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम थे – आयु, श्रुतायु, सत्यायु, रय, विजय तथा जय।

2-3 श्रतायु का पुत्र वसुमन हुआ, सत्यायु का पुत्र श्रुतंजय हुआ, रय के पुत्र का नाम एक था, जय का पुत्र अमित था और विजय का पुत्र भीम हुआ। भीम का पुत्र कांचन, कांचन का पुत्र होत्रक और होत्रक का पुत्र जह्व था जिसने एक ही घूँट में गंगा का सारी पानी पी लिया था।

4 जह्व का पुत्र पुरु था, पुरु का

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अध्याह चौदह – पुरुरवा का उर्वशी पर मोहित होना (9.14)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने महाराज परीक्षित से कहा: हे राजन अभी तक आपने सूर्यवंश का विवरण सुना है। अब सोमवंश का अत्यन्त कीर्तिपद एवं पावन वर्णन सुनिए। इसमें ऐल (पुरुरवा) जैसे राजाओं का उल्लेख है जिनके विषय में सुनना कीर्तिप्रद होता है।

2 भगवान विष्णु (गर्भोदकशायी विष्णु) सहस्रशीर्ष पुरुष भी कहलाते हैं। उनकी नाभि रूपी सरोवर से एक कमल निकला जिससे ब्रह्माजी उत्पन्न हुए। ब्रह्मा का पुत्र अत्री अपने पिता के ही समान योग्य था।

3 अत्री के हर्षाश्रुओं से

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अध्याय तेरह – महाराज निमि की वंशावली (9.13)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: यज्ञों का शुभारम्भ कराने के बाद इक्ष्वाकु पुत्र महाराज निमि ने वसिष्ठ से प्रधान पुरोहित का पद ग्रहण करने के लिए अनुरोध किया। उस समय वसिष्ठ ने उत्तर दिया, “हे महाराज निमि, मैंने इन्द्र द्वारा प्रारम्भ किये गये एक यज्ञ में इसी पद को पहले से स्वीकार कर रखा है।"

2 “मैं इन्द्र का यज्ञ पूरा कराकर यहाँ वापस आ जाऊँगा। कृपया तब तक मेरी प्रतीक्षा करें।" महाराज निमि चुप हो गये और वसिष्ठ इन्द्र का यज्ञ सम्पन्न करने में लग गये।

3 महा

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अध्याय बारह – भगवान रामचन्द्र के पुत्र कुश की वंशावली(9.12)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: रामचन्द्र का पुत्र कुश हुआ, कुश का पुत्र अतिथि था, अतिथि का पुत्र निषध और निषध का पुत्र नभ था। नभ का पुत्र पुण्डरीक हुआ जिसके पुत्र का नाम क्षेमधन्वा था।

2 क्षेमधन्वा का पुत्र देवानीक था और देवानीक का पुत्र अनीह हुआ जिसके पुत्र का नाम पारियात्र था। पारियात्र का पुत्र बलस्थल था, जिसका पुत्र वज्रनाभ हुआ जो सूर्यदेव के तेज से उत्पन्न बतलाया जाता है।

3-4 वज्रनाभ का पुत्र सगण हुआ और उसका पुत्र विधृति हुआ। विधृति

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अध्याय ग्यारह -- भगवान रामचन्द्र का विश्व पर राज्य करना (9.11)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: तत्पश्चात भगवान रामचन्द्र ने एक आचार्य स्वीकार करके उत्तम साज समान के साथ बड़ी धूमधाम से यज्ञ सम्पन्न किये। इस तरह उन्होंने स्वयं ही अपनी पूजा की क्योंकि वे सभी देवताओं के परमेश्वर हैं।

2 भगवान रामचन्द्र ने होता पुरोहित को सम्पूर्ण पूर्व दिशा, ब्रह्मा पुरोहित को सम्पूर्ण दक्षिण दिशा, अर्ध्वर्यू पुरोहित को पश्चिम दिशा और सामवेद के गायक उदगाता पुरोहित को उत्तरदिशा दे दी। इस प्रकर उन्होंने अपना सारा साम्राज

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अध्याय दस – भगवान रामचन्द्र की लीलाएँ (9.10)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: महाराज खटवांग का पुत्र दीर्घबाहु हुआ और उसके पुत्र विख्यात रघु महाराज हुए। महाराज रघु से अज उत्पन्न हुए और अज से महापुरुष महाराज दशरथ हुए।

2 देवताओं द्वारा प्रार्थना करने पर परम सत्य भगवान अपने अंश तथा अंशों के भी अंश के साथ साक्षात प्रकट हुए। उनके पावन नाम थे राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुध्न। ये सुविख्यात अवतार महाराज दशरथ के पुत्रों के रूप में चार स्वरूपों में प्रकट हुए।

3 हे राजा परीक्षित, भगवान रामचन्द्र के दिव्य कार्

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अध्याय नौ – अंशुमान की वंशावली (9.9)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: राजा अंशुमान ने अपने पितामह की तरह दीर्घकाल तक तपस्या की तो भी वह गंगा नदी को इस भौतिक जगत में न ला सका और उसके बाद कालक्रम में उसका देहान्त हो गया।

2 अंशुमान की भाँति उसका पुत्र दिलीप भी गंगा को इस भौतिक जगत में ला पाने में असमर्थ रहा और कालक्रम में उसकी भी मृत्यु हो गई। तत्पश्चात दिलीप के पुत्र भगीरथ ने गंगा को इस भौतिक जगत में लाने के लिए अत्यन्त कठिन तपस्या की।

3 तत्पश्चात माता गंगा राजा भगीरथ के समक्ष प्रकट होकर बोली, “

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अध्याय आठ – भगवान कपिलदेव से सगर-पुत्रों की भेंट (9.8)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: रोहित का पुत्र हरित हुआ और हरित का पुत्र चम्प हुआ जिसने चम्पापुरी नामक नगर का निर्माण कराया। चम्प का पुत्र सुदेव हुआ और सुदेव का पुत्र विजय था।

2 विजय का पुत्र भरुक, भरुक का पुत्र वृक और उसका पुत्र बाहुक हुआ। राजा बाहुक के शत्रुओं ने उसकी सारी सम्पत्ति छीन ली जिससे उसने वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण कर लिया और अपनी पत्नी सहित वन में चला गया।

3 जब बाहुक वृद्ध होकर मर गया तो उसकी एक पत्नी उसके साथ सती होना चाहती थी।

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अध्याय सात – राजा मान्धाता के वंशज (9.7)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: मान्धाता का सर्वप्रमुख पुत्र अम्बरीष नाम से विख्यात हुआ। अम्बरीष को उसके बाबा युवनाश्व ने पुत्र रूप में स्वीकार किया। अम्बरीष का पुत्र यौवनाश्व हुआ और यौवनाश्व का पुत्र हारीत था। मान्धाता के वंश में अम्बरीष, हारीत तथा यौवनाश्व अत्यन्त प्रमुख थे।

2 नर्मदा के सर्प-भाइयों ने उसे पुरुकुत्स को दे दिया। वासुकि द्वारा भेजे जाने पर नर्मदा पुरुकुत्स को ब्रह्माण्ड के निम्न भाग (रसातल) में ले गई।

3 रसातल में भगवान विष्णु द्वारा शक्ति प

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अध्याय छह – सौभरि मुनि का पतन (9.6)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे महराज परीक्षित, अम्बरीष के तीन पुत्र हुए-विरूप, केतुमान तथा शम्भु। विरूप के पृषदश्व नामक पुत्र हुआ और पृषदश्व के रथीतर नामक पुत्र हुआ।

2 रथीतर निःसन्तान था अतएव उसने अंगिरा ऋषि से उसके लिए पुत्र उत्पन्न करने की प्रार्थना की। इस प्रार्थना के फलस्वरूप अंगिरा ने रथीतर की पत्नी के गर्भ से पुत्र उत्पन्न कराये। ये सारे पुत्र ब्राह्मण तेज से सम्पन्न थे।

3 रथीतर की पत्नी से जन्म लेने के कारण ये सारे पुत्र रथीतर के वंशज कहलाये, किन्तु

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अध्याय पाँच – दुर्वासा मुनि को जीवन-दान (9.5)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब भगवान विष्णु ने दुर्वासा मुनि को इस प्रकार सलाह दी तो सुदर्शन चक्र से अत्यधिक उत्पीड़ित मुनि तुरन्त ही महाराज अम्बरीष के पास पहुँचे। अत्यन्त दुखित होने के कारण वे राजा के समक्ष लोट गये और उनके चरणकमलों को पकड़ लिया।

2 जब दुर्वासा मुनि ने महाराज अम्बरीष के पाँव छुए तो वे अत्यन्त लज्जित हो उठे और जब उन्होंने यह देखा कि दुर्वासा उनकी स्तुति करने का प्रयास कर रहे हैं तो वे दयावश और भी अधिक सन्तप्त हो उठे। अतः उन्होंने तुरन

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अध्याय चार – दुर्वासा मुनि द्वारा अम्बरीष महाराज का अपमान (9.4)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: नभग का पुत्र नाभाग बहुत काल तक अपने गुरु के पास रहा। अतएव उसके भाइयों ने सोचा कि अब वह गृहस्थ नहीं बनना चाहता और वापस नहीं आएगा। फलस्वरूप उन्होंने अपने पिता की सम्पत्ति में उसका हिस्सा न रखकर उसे आपस में बाँट लिया। जब नाभाग अपने गुरु के स्थान से वापस आया तो उन्होंने उसके हिस्से के रूप में उसे अपने पिता को दे दिया।

2 नाभाग ने पूछा, “मेरे भाइयों, आप लोगों ने पिता की सम्पत्ति में से मेरे हिस्से में मुझे क

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