अध्याय सात - तृणावर्त का वध (10.7)
1-2 राजा परीक्षित ने कहा: हे प्रभु श्रील शुकदेव गोस्वामी, भगवान के अवतारों द्वारा प्रदर्शित विविध लीलाएँ निश्चित रूप से कानों को तथा मन को सुहावनी लगने वाली हैं। इन लीलाओं के श्रवणमात्र से मनुष्य के मन का मैल तत्क्षण धुल जाता है। सामान्यतया हम भगवान की लीलाओं को सुनने में आनाकानी करते हैं किन्तु कृष्ण की बाल-लीलाएँ इतनी आकर्षक हैं कि वे स्वतः ही मन तथा कानों को सुहावनी लगती हैं। इस तरह भौतिक वस्तुओं के विषय में सुनने की अनुरक्ति, जो भवबन्धन का मूल कारण है, समाप