भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय आठ भगवत्प्राप्ति
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः।। 5।।
अन्त-काले– मृत्यु के समय;च– भी;माम्– मुझको;एव– निश्चय ही;स्मरन्– स्मरण करते हुए;मुक्त्वा– त्याग कर;कलेवरम्– शरीर को;यः– जो;प्रयाति– जाता है;सः– वह;मत्-भावम्– मेरे स्वभाव को;याति– प्राप्त करता है;न– नहीं;अस्ति– है;अत्र– यहाँ;संशयः– सन्देह।