अध्याय छत्तीस - वृषभासुर अरिष्ट का वध (10.36)
1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: तत्पश्चात अरिष्टासुर गोपों के गाँव में आया। वह बड़े डिल्ले वाले बैल के रूप में प्रकट होकर अपने खुरों से पृथ्वी को क्षत-विक्षत करके उसे कँपाने लगा।
2 अरिष्टासुर ने ज़ोर से रँभाते हुए धरती को खुरों से कुरेदा। वह अपनी पूँछ उठाये और आँखें चमकाता सींगों की नोक से बाँधों को चीरने लगा और बीच-बीच में मलमूत्र भी छोड़ता जाता था।
3-4 हे राजन, तीखे सींगों वाले अरिष्टासुर के डिल्ले को पर्वत समझकर बादल उसके आसपास मँडराने लगे। अतः जब ग्व