अध्याय पच्चीस – प्रकृति के तीन गुण तथा उनसे परे (11.25)
1 भगवान ने कहा : हे पुरुषश्रेष्ठ, मैं तुमसे वर्णन करूँगा कि जीव किस तरह किसी भौतिक गुण की संगति से विशेष स्वभाव प्राप्त करता है। तुम उसे सुनो।
2-5 मन तथा इन्द्रिय संयम, सहिष्णुता, विवेक, नियत कर्म का पालन, सत्य, दया, भूत तथा भविष्य का सतर्क अध्ययन, किसी भी स्थिति में सन्तोष, उदारता, इन्द्रियतृप्ति का परित्याग, गुरु में श्रद्धा, अनुचित कर्म करने पर व्यग्रता, दान, सरलता, दीनता तथा अपने में सन्तोष – ये सतोगुण के लक्षण है। भौतिक इच्छा, महान उद्य