अध्याय उन्तीस -- नारद तथा प्राचीनबर्हि के मध्य वार्तालाप
1-5 राजा प्राचीनबर्हि ने उत्तर दिया: हे प्रभु, हम आपके कहे गये राजा पुरञ्जन के रुपक आख्यान (अन्योक्ति) का सारांश पूर्ण रूप से नहीं समझ सके। वास्तव में जो आध्यात्मिक ज्ञान में निपुण हैं, वे तो समझ सकते हैं, किन्तु हम जैसे सकाम कर्मों में अत्यधिक लिप्त पुरुषों के लिए आपके आख्यान का तात्पर्य समझ पाना अत्यन्त कठिन है। नारद मुनि ने कहा – तुम जानो कि पुरञ्जन रूपी जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न रूपों में देहान्तर करता रहता है, जो एक, दो, तीन, चा