भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय अठारह उपसंहार -- संन्यास की सिद्धि
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ।। 65 ।।
मत्-मनाः- मेरे विषय में सोचते हुए;भव- होओ;मत्-भक्तः- मेरा भक्त;मत्-याजी- मेरा पूजक;माम्- मुझको;नमस्कुरु- नमस्कार करो;माम्- मेरे पास;एव- ही;एष्यसि- आओगे;सत्यम्- सच-सच;ते- तुमसे;प्रतिजाने- वायदा या प्रतिज्ञा करता हूँ;प्रियः- प्रिय;असि- हो;मे- मुझको।
भावार्थ : सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार