अकेलापन
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति३०
यः–जो;माम्–मुझको;पश्यति–देकहता है;सर्वत्र–सभी जगह;सर्वम्–प्रत्येक वस्तु को;च–तथा;मयि–मुझमें;पश्यति–देखता है;तस्य–उसके लिए;अहम्–मैं;न–नहीं;प्रणश्यामि–अदृश्य होता हूँ;सः–वह;च–भी;मे–मेरे लिए;न–नहीं;प्रणश्यति–अदृश्य होता है
भावार्थ जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है।
तात्पर्य कृष्णभावनाभावित व्यक्ति भगवान् कृष्ण को सर्वत्र देखत