अध्याय तेईस – देवहूति का शोक (3.23)
1 मैत्रेय ने कहा: अपने माता-पिता के चले जाने पर अपने पति की इच्छाओं को समझनेवाली पतिव्रता देवहूति अपने पति की प्रतिदिन प्रेमपूर्वक सेवा करने लगी जिस प्रकार भवानी अपने पति शंकरजी की करती हैं।
2 हे विदुर, देवहूति ने अत्यन्त आत्मीयता और आदर के साथ, इन्द्रियों को वश में रखते हुए, प्रेम तथा मधुर वचनों से अपने पति की सेवा की।
3 बुद्धिमानी तथा तत्परता के साथ कार्य करते हुए उसने समस्त काम, दम्भ, द्वेष, लोभ, पाप तथा मद को त्यागकर अपने शक्तिशाली पति को प्रसन्न कर लिया।
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