भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय पाँच कर्मयोग -- कृष्णभावनाभावित कर्म
ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ॥ 22 ॥
ये– जो;हि– निश्चय हि;संस्पर्श-जा– भौतिक इन्द्रियों के स्पर्श से उत्पन्न;भोगाः– भोग;दुःख– दुःख;योनयः– स्त्रोत, कारण;एव– निश्चय हि;ते– वे;आदि– प्रारम्भ;अन्तवन्त– अन्तकाले;कौन्तेय– हे कुन्तीपुत्र;न– कभी नहीं;तेषु– उनमें;रमते– आनन्द लेता है;बुधः– बुद्धिमान् मनुष्य।
भावार्थ : बुद्धिमान् मनुष्य दुख के कारणों में भाग नहीं लेता जो कि भौति