इन्द्रदेव तथा माता सुरभि द्वारा स्तुति (10.27)
4-6 राजा इन्द्र ने कहा: आपका दिव्य रूप शुद्ध सतोगुण का प्राकट्य है, यह परिवर्तन से विचलित नहीं होता, ज्ञान से चमकता रहता है और रजो तथा तमोगुणों से रहित है। आपके भीतर माया तथा अज्ञान पर आश्रित भौतिक गुणों का प्रबल प्रवाह नहीं पाया जाता। तो भला आपमें अज्ञानी व्यक्ति के लक्षण – यथा लोभ, काम, क्रोध तथा ईर्ष्या किस तरह रह सकते हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति संसार में मनुष्य की पूर्व-लिप्तता के कारण होती है और ये मनुष्य को संसार में अधिकाधिक जकड़ते जाते हैं? फिर