प्यारे ! तुम्हारे जन्म के कारण वैकुण्ठ
आदि लोकों में भी ब्रज की महिमा बढ़ गयी है l
परन्तु प्रियतम !
देखो तुम्हारी गोपियाँ जिन्होंने तुम्हारे
चरणों में ही अपने प्राण समर्पित कर रखे हैं l वन-वन में भटक कर तुम्हे ढूंढ रही हैं l हमारे प्रेमपूर्ण ह्रदय के
स्वामी ! हम तुम्हारी बिना मोल की दासी हैं l
हमारे मनोरथ पूर्ण करनेवाले प्राणेश्वर !
क्या नेत्रों से मारना वध नहीं है...
हत्या करना ही वध है ? तुम केवल यशोदानन्दन
ही नहीं हो; समस्त शरीरधारियों के ह्रदय में रहन



