hindi bhashi sangh (140)

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

सत्यव्रत द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम अष्टम स्कन्ध (अध्याय चौबीस)

25 मत्स्यरूप भगवान से इन मधुर वचनों को सुनकर मोहित हुए राजा ने पूछा: आप कौन हैं? आप तो हम सबको मोहित कर रहे हैं।

26 हे प्रभु! एक ही दिन में आपने अपना विस्तार सैकड़ों मील तक करके नदी तथा समुद्र के जल को आच्छादित कर लिया है। इससे पहले मैंने न तो ऐसा जलचर पशु देखा था और न ही सुना था।

27 हे प्रभु! आप निश्र्

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

ब्रह्मा द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम अष्टम स्कन्ध

अध्याय पाँच एवं छह

24 श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे समस्त शत्रुओं का दमन करने वाले महाराज परीक्षित ! देवताओं से बातें करने के बाद ब्रह्माजी उन्हें भगवान के धाम ले गये जो इस भौतिक जगत से परे है। भगवान का धाम श्र्वेतद्वीप नामक टापू में है, जो क्षीरसागर में स्थित है।

25 वहाँ (श्र्वेतद्वीप में) ब्रह्माजी ने पूर्ण पुर

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

गजेन्द्र की समर्पण स्तुति

श्रीमद भागवतम अष्टम स्कन्ध अध्याय तीन  

1 श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : तत्पश्र्चात गजेन्द्र ने अपना मन पूर्ण बुद्धि के साथ अपने हृदय में स्थिर कर लिया और उस मंत्र का जप प्रारम्भ किया जिसे उसने इन्द्रद्युम्न के रूप में अपने पूर्वजन्म में सीखा था और जो कृष्ण की कृपा से उसे स्मरण था।

2 गजेन्द्र ने कहा : मैं परम पुरुष वासुदेव को सादर नमस

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ॐ श्री गुरु गौरांग जयतः

अध्याय अठारह उपसंहार—संन्यास की सिद्धि 

https://youtu.be/VQSon4RQDcM

1 अर्जुन ने कहा— हे महाबाहु! मैं त्याग का उद्देश्य जानने का इच्छुक हूँ और हे केशिनिषूदन, हे हृषिकेश! मैं त्यागमय जीवन (संन्यास आश्रम) का भी उद्देश्य जानना चाहता हूँ।

2 श्रीभगवान ने कहा— भौतिक इच्छा पर आधारित कर्मों के परित्याग को विद्वान लोग संन्यास कहते हैं और समस्त कर्मों के फल-त्याग को बुद्धिमान लोग त्याग कहते हैं।

3 कुछ विद्वान घोषित करते हैं कि समस्त प्रकार के सकाम कर्मों को दोषपूर्ण समझ कर त्याग देना चा

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ॐ श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप 

अध्याय सत्रह - श्रद्धा के विभाग

https://www.youtube.com/watch?v=JgcaQbH-afM

1 अर्जुन ने कहा— हे कृष्ण! जो लोग शास्त्र के नियमों का पालन न करके अपनी कल्पना के अनुसार पूजा करते हैं, उनकी स्थिति कौनसी है? वे सतोगुणी हैं, रजोगुणी हैं या तमोगुणी?

2 श्रीभगवान ने कहा— देहधारी जीव द्वारा अर्जित गुणों के अनुसार उसकी श्रद्धा तीन प्रकार की हो सकती है — सतोगुणी, रजोगुणी अथवा तमोगुणी। अब इसके विषय में मुझसे सुनो।

3 हे भरतपुत्र! विभिन्न गुणों के अन्तर्गत अपने अपने अ

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ॐ श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप 

अध्याय सोलह - दैवी तथा आसुरी स्वभाव

https://www.youtube.com/watch?v=rRbu5iyv2dc

1-3 श्रीभगवान ने कहा— हे भरतपुत्र! निर्भयता, आत्मशुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान का अनुशीलन, दान, आत्म-संयम, यज्ञपरायणता, वेदाध्ययन, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्यता, क्रोधविहीनता, त्याग, शान्ति, छिद्रान्वेषण में अरुचि, समस्त जीवों पर करुणा, लोभविहीनता, भद्रता, लज्जा, संकल्प, तेज, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, ईर्ष्या तथा सम्मान की अभिलाषा से मुक्ति—ये सारे दिव्य गुण हैं, जो दैवी प्रकृति

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  श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप 

अध्याय पन्द्रह पुरुषोत्तम योग

https://www.youtube.com/watch?v=e33nvksOLbo&t=34s

1 श्रीभगवान ने कहा— कहा जाता है कि एक शाश्वत अश्वत्थ वृक्ष है, जिसकी जड़ें तो ऊपर की ओर हैं और शाखाएँ नीचे की ओर तथा पत्तियाँ वैदिक स्रोत हैं। जो इस वृक्ष को जानता है, वह वेदों का ज्ञाता है।

2 इस वृक्ष की शाखाएँ ऊपर तथा नीचे फैली हुई हैं और प्रकृति के तीन गुणों द्वारा पोषित हैं। इसकी टहनियाँ इन्द्रियविषय हैं। इस वृक्ष की जड़ें नीचे की ओर भी जाती है, जो मानवसमाज के सकाम कर्म

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  श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप 

अध्याय चौदह प्रकृति के तीन गुण

https://www.youtube.com/watch?v=SesYsrC2tKc

1 श्रीभगवान ने कहा— अब मैं तुमसे समस्त ज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूँगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है।

2 इस ज्ञान में स्थिर होकर मनुष्य मेरी जैसी दिव्य प्रकृति (स्वभाव) को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार स्थित हो जाने पर वह न तो सृष्टि के समय उत्पन्न होता है और न प्रलय के समय विचलित होता है।

3 हे भरतपुत्र! ब्रह्म नामक समग्र भौतिक

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  श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप 

अध्याय तेरह-प्रकृति, पुरुष तथा चेतना

https://www.youtube.com/watch?v=BVFzjfOmmWA&t=82s 

1-2 अर्जुन ने कहा— हे कृष्ण! मैं प्रकृति एवं पुरुष (भोक्ता), क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ तथा ज्ञान एवं ज्ञेय के विषय में जानने का इच्छुक हूँ। श्रीभगवान ने कहा— हे कुन्तीपुत्र! यह शरीर क्षेत्र कहलाता है और इस क्षेत्र को जानने वाला क्षेत्रज्ञ है।

3 हे भरतवंशी! तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि मैं भी समस्त शरीरों में ज्ञाता भी हूँ और इस शरीर तथा इसके ज्ञाता को जान लेना ज्ञान क

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 श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप 

अध्याय बारह भक्तियोग

https://www.youtube.com/watch?v=QkkNaIxZiD8&t=60s

1 अर्जुन ने पूछा— जो आपकी सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं, या जो अव्यक्त निर्विशेष ब्रह्म की पूजा करते हैं, इन दोनों में से किसे अधिक पूर्ण (सिद्ध) माना जाय?

2 श्रीभगवान ने कहा— जो लोग अपने मन को मेरे साकार रूप में एकाग्र करते हैं, और अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरी पूजा करने में सदैव लगे रहते हैं, वे मेरे द्वारा परम सिद्ध माने जाते हैं।

3-4 लेकिन जो लोग अपनी इन्द्रियों को वश में करके तथा

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   श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप 

अध्याय ग्यारह विराट रूप

https://www.youtube.com/watch?v=ODXeVXIR5ks&t=5s

1 अर्जुन ने कहा— आपने जिन अत्यन्त गुह्य आध्यात्मिक विषयों का मुझे उपदेश दिया है, उसे सुनकर अब मेरा मोह दूर हो गया है।

2 हे कमलनयन! मैंने आपसे प्रत्येक जीव की उत्पत्ति तथा लय के विषय में विस्तार से सुना है और आपकी अक्षय महिमा का अनुभव किया है।

3 हे पुरुषोत्तम, हे परमेश्वर! यद्यपि आपको मैं अपने समक्ष आपके द्वारा वर्णित आपके वास्तविक रूप में देख रहा हूँ, किन्तु मैं यह देखने का इ

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 श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप 

अध्याय दस श्रीभगवान का ऐश्वर्य

https://www.youtube.com/watch?v=-4ypJcxXVWM&t=82s

1 श्रीभगवान ने कहा— हे महाबाहु अर्जुन! और आगे सुनो। चूँकि तुम मेरे प्रिय सखा हो, अतः मैं तुम्हारे लाभ के लिए ऐसा ज्ञान प्रदान करूँगा, जो अभी तक मेरे द्वारा बताये गये ज्ञान से श्रेष्ठ होगा।

2 न तो देवतागण मेरी उत्पत्ति या ऐश्वर्य को जानते हैं और न महर्षिगण ही जानते हैं, क्योंकि मैं सभी प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी कारणस्वरूप (उद्गम) हूँ।

3 जो मुझे अजन्मा, अनादि,

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श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप 

अध्याय नौ परम गुह्य ज्ञान

https://www.youtube.com/watch?v=saevYxO0Sf0&t=115

1 श्रीभगवान ने कहा— हे अर्जुन! चूँकि तुम मुझसे कभी ईर्ष्या नहीं करते, इसलिए मैं तुम्हें यह परम गुह्य ज्ञान तथा अनुभूति बतलाऊँगा, जिसे जानकर तुम संसार के सारे क्लेशों से मुक्त हो जाओगे।

2 यह ज्ञान सब विद्याओं का राजा है, जो समस्त रहस्यों में सर्वाधिक गोपनीय है। यह परम शुद्ध है और चूँकि यह आत्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति कराने वाला है, अतः यह धर्म का सिद्धान्त है। यह अविनाशी है और अत

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श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप

अध्याय आठ भगवत्प्राप्ति

https://www.youtube.com/watch?v=MmkYdX0oxrU&t=19s

1 अर्जुन ने कहा— हे भगवान! हे पुरुषोत्तम! ब्रह्म क्या है? आत्मा क्या है? सकाम कर्म क्या है? यह भौतिक जगत क्या है? तथा देवता क्या है? कृपा करके यह सब मुझे बताइये।

2 हे मधुसूदन! यज्ञ का स्वामी कौन है और वह शरीर में कैसे रहता है? और मृत्यु के समय भक्ति में लगे रहने वाले आपको कैसे जान पाते हैं?

3 श्रीभगवान ने कहा— अविनाशी और दिव्य जीव ब्रह्म कहलाता है और उसका नित्य स्वभाव अध्यात्म या

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श्री गुरु गौरांग जयतः

अध्याय सात — भगवद्ज्ञान

https://youtu.be/Ctx3N-wQSd4

1 श्रीभगवान ने कहा— हे पृथापुत्र! अब सुनो कि तुम किस तरह मेरी भावना से पूर्ण होकर और मन को मुझमें आसक्त करके योगाभ्यास करते हुए मुझे पूर्णतया संशयरहित जान सकते हो।

2 अब मैं तुमसे पूर्णरूप से व्यावहारिक तथा दिव्यज्ञान कहूँगा। इसे जान लेने पर तुम्हें जानने के लिए और कुछ भी शेष नहीं रहेगा।

3 कई हजार मनुष्यों में से कोई एक सिद्धि के लिए प्रयत्नशील होता है और इस तरह सिद्धि प्राप्त करने वालों में से विरला ही कोई एक मुझे वास्तव

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श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप

अध्याय छह ध्यानयोग

https://www.youtube.com/watch?v=YyVXlMAR0AU&t=131s

1 श्रीभगवान ने कहा जो पुरुष अपने कर्मफल के प्रति अनासक्त है और जो अपने कर्तव्य का पालन करता है, वही संन्यासी और असली योगी है। वह नहीं, जो न तो अग्नि जलाता है और न कर्म करता है।

2 हे पाण्डुपुत्र! जिसे संन्यास कहते हैं उसे ही तुम योग अर्थात परब्रह्म से युक्त होना जानो क्योंकि इन्द्रियतृप्ति के लिए इच्छा को त्यागे बिना कोई कभी योगी नहीं हो सकता।

3 अष्टांगयोग के नवसाधक के लिए कर्म साध

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श्री गुरु गौरांग जयतः

अध्याय  पाँच – कर्मयोग - कृष्णभावनाभावित कर्म

https://www.youtube.com/watch?v=MBh-8z0kkyQ&t=168s

1 अर्जुन ने कहा— हे कृष्ण! पहले आप मुझसे कर्म त्यागने के लिए कहते हैं और फिर भक्तिपूर्वक कर्म करने का आदेश देते हैं। क्या आप अब कृपा करके निश्चित रूप से मुझे बताएँगे कि इन दोनों में से कौन अधिक लाभप्रद है?

2 श्रीभगवान ने उत्तर दिया मुक्ति के लिए तो कर्म का परित्याग तथा भक्तिमय-कर्म (कर्मयोग) दोनों ही उत्तम हैं। किन्तु इन दोनों में से कर्म के परित्याग से भक्तियुक्त कर्म श्रेष्ठ

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श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप

अध्याय चार - दिव्य ज्ञान

https://www.youtube.com/watch?v=4r5pr_vBVv8&t=60s

 1 भगवान श्रीकृष्ण ने कहा मैंने इस अमर योगविद्या का उपदेश सूर्यदेव विवस्वान को दिया और विवस्वान ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया और मनु ने इसका उपदेश इक्ष्वाकु को दिया।

2  इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा। किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है।

3  आज मेर

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श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप

अध्याय तीन कर्मयोग

https://www.youtube.com/watch?v=pBgNwhh1xDQ&t=207s 

1 अर्जुन ने कहा— हे जनार्दन, हे केशव! यदि आप बुद्धि को सकाम कर्म से श्रेष्ठ समझते हैं तो फिर आप मुझे इस घोर युद्ध में क्यों लगाना चाहते हैं?

2 आपके व्यामिश्रित (अनेकार्थक) उपदेशों से मेरी बुद्धि मोहित हो गई है। अतः कृपा करके निश्चयपूर्वक मुझे बतायें कि इनमें से मेरे लिए सर्वाधिक श्रेयस्कर क्या होगा?

3 श्रीभगवान ने कहा हे निष्पाप अर्जुन! मैं पहले ही बता चुका हूँ कि आत्म-साक्षात्का

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श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद्गीता यथारूप

अध्याय दो गीता का सार

https://www.youtube.com/watch?v=zWKOwLIXiws&t=273s

 1 संजय ने कहा करुणा से व्याप्त, शोकयुक्त, अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन को देख कर मधुसूदन कृष्ण ने ये शब्द कहे।

2 श्रीभगवान ने कहा हे अर्जुन तुम्हारे मन में यह कल्मष आया कैसे? यह उस मनुष्य के लिए तनिक भी अनुकूल नहीं है, जो जीवन के मूल्य को जानता हो। इससे उच्चलोक की नहीं अपितु अपयश की प्राप्ति होती है।

3 हे पृथापुत्र! इस हीन नपुंसकता को प्राप्त मत होओ। यह तुम्हें शोभा नहीं दे

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