ॐ
श्री गुरु गौरांग जयतः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम
देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत
सत्यव्रत द्वारा स्तुति
श्रीमद भागवतम अष्टम स्कन्ध (अध्याय चौबीस)
25 मत्स्यरूप भगवान से इन मधुर वचनों को सुनकर मोहित हुए राजा ने पूछा: आप कौन हैं? आप तो हम सबको मोहित कर रहे हैं।
26 हे प्रभु! एक ही दिन में आपने अपना विस्तार सैकड़ों मील तक करके नदी तथा समुद्र के जल को आच्छादित कर लिया है। इससे पहले मैंने न तो ऐसा जलचर पशु देखा था और न ही सुना था।
27 हे प्रभु! आप निश्र्