hindi bhashi sangh (140)

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अध्याय सात – विशिष्ट कार्यों के लिए निर्धारित अवतार (2.7)

1 ब्रह्माजी ने कहा: जब अनन्त शक्तिशाली भगवान ने लीला के रूप में ब्रह्माण्ड के गर्भोदक नामक महासागर में डूबी हुई पृथ्वी को ऊपर उठाने के लिए वराह का रूप धारण किया, तो सबसे पहला असुर (हिरण्याक्ष) वहाँ आया । भगवान ने उसे अपने अगले दाँत से विदीर्ण कर दिया।

2 सर्वप्रथम प्रजापति की पत्नी आकूती के गर्भ से सुयज्ञ उत्पन्न हुआ; फिर सुयज्ञ ने अपनी पत्नी दक्षिणा से सुयम इत्यादि देवताओं को उत्पन्न किया। सुयज्ञ ने इन्द्रदेव के रूप में तीनों ग्रह मण्डलों

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अध्याय छह – पुरुष सूक्त की पुष्टि (2.6)

1 ब्रह्माजी ने कहा: विराट पुरुष का मुख वाणी का उद्गम-केंद्र है और उसका नियामक देव अग्नि है। उनकी त्वचा तथा अन्य छह स्तर (आवरण) वैदिक मंत्रों के उद्गम-केंद्र हैं और उनकी जीभ देवताओं, पितरों तथा सामान्यजनों को अर्पित करने वाले विभिन्न खाद्यों तथा व्यंजनों (रसों) का उद्गम है।

2 उनके दोनों नथुनें हमारे श्वास के तथा अन्य सभी प्रकार की वायु के जनन-केंद्र हैं; उनकी घ्राण शक्ति से अश्विनीकुमार तथा समस्त प्रकार की जड़ी-बूटियाँ उत्पन्न होती हैं और उनकी श्वास-शक्ति से

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नारद मुनि ने कहा – इस ब्रह्माण्ड के भीतर जितनी सारी वस्तुएँ हैं वे सब आपके नियंत्रण में हैं।   (2.5.4-12)~~श्रील प्रभुपाद ~~

अध्याय पाँच – समस्त कारणों के कारण (2.5)

1 श्री नारद मुनि ने ब्रह्माजी से पूछा: हे देवताओं में प्रमुख देवता, हे प्रथम जन्मा जीव, मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ। कृपया करके मुझे वह दिव्य ज्ञान बतायें, जो मनुष्य को आत्मा तथा परमात्मा के सत्य तक ले जाने वाला है।

2 हे पिताजी, कृपया इस व्यक्त जगत के वास्तविक लक्षणों का वर्णन कीजिये। इसका आधार क्या है? इसका सृजन किस प्रकार किया ग

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अध्याय चार – सृष्टि प्रक्रम (2.4)

1 सूत गोस्वामी ने कहा: श्रील शुकदेव गोस्वामी से आत्मा के सत्य के विषय में बातें सुनकर, उत्तरा के पुत्र महाराज परीक्षित ने आस्थापूर्वक अपना ध्यान भगवान कृष्ण में लगा दिया।

2 भगवान कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ आकर्षण के फलस्वरूप महाराज परीक्षित ने अपने निजी शरीर, अपनी पत्नी, अपनी सन्तान, अपने महल, अपने पशु, हाथी-घोड़े, अपने खजाने, मित्र तथा सम्बन्धी और अपने निष्कंटक राज्य के प्रति प्रगाढ़ ममता त्याग दी।

3-4 हे महर्षियों, महात्मा महाराज परीक्षित ने भगवान कृष्ण के विचार में

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अध्याय तीन – शुद्ध भक्तिमय सेवा – हृदय परिवर्तन (2.3)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे महाराज परीक्षित, आपने मुझसे मरणासन्न बुद्धिमान मनुष्य के कर्तव्य के विषय में जिस प्रकार जिज्ञासा की, उसी प्रकार मैंने आपको उत्तर दिया है।

2-7 जो व्यक्ति निर्विशेष ब्रह्मज्योति तेज में लीन होने की कामना करता है, उसे वेदों के स्वामी (ब्रह्माजी या विद्वान पुरोहित बृहस्पति) की पूजा करनी चाहिए; जो प्रबल कामशक्ति का इच्छुक हो, उसे स्वर्ग के राजा इन्द्र की और जो अच्छी सन्तान का इच्छुक हो, उसे प्रजापतियों की पूजा क

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अध्याय दो – हृदय में भगवान (2.2)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: इस ब्रह्माण्ड के प्राकट्य के पूर्व, ब्रह्माजी ने विराट रूप के ध्यान द्वारा भगवान को प्रसन्न करके विलुप्त हो चुकी अपनी चेतना पुनः प्राप्त की। इस तरह वे सृष्टि का पूर्ववत पुनर्निर्माण कर सके।

2 वैदिक ध्वनियों (वेदवाणी) को प्रस्तुत करने की विधि इतनी मोहनेवाली है कि यह व्यक्तियों की बुद्धि को स्वर्ग जैसी व्यर्थ की वस्तुओं की ओर ले जाती है। बद्धजीव ऐसी स्वर्गिक मायामयी वासनाओं के स्वप्नों में मँडराते रहते हैं, लेकिन ऐसे स्थानों में वे सच

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अध्याय एक – ईश अनुभूति का प्रथम सोपान (2.1)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

हे सर्वव्यापी परमेश्वर, मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन, आपका प्रश्न महिमामय है, क्योंकि यह समस्त प्रकार के लोगों के लिए बहुत लाभप्रद है। इस प्रश्न का उत्तर श्रवण करने का प्रमुख विषय है और समस्त अध्यात्मवादियों ने इसको स्वीकार किया है।

2 हे सम्राट, भौतिकता में उलझे उन व्यक्तियों, जो परम सत्य विषयक ज्ञान के प्रति अन्धे हैं, उनके पास मानव समाज में सुनने के लिए अनेक विषय होते हैं।

3 ऐसे ईर्

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अध्याय अठारह – ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप(1.18)

1 श्री सूत गोस्वामी ने कहा: भगवान श्रीकृष्ण अद्भुत कार्य करनेवाले हैं। उनकी कृपा से महाराज परीक्षित द्रोणपुत्र के अस्त्र द्वारा अपनी माता के गर्भ में ही प्रहार किये जाने पर भी जलाये नहीं जा सके।

2 इसके अतिरिक्त, महाराज परीक्षित स्वेच्छा से सदैव भगवान के शरणागत रहते थे, अतएव वे उड़ने वाले सर्प के भय से, जो उन्हें ब्राह्मण बालक के कोपभाजन बनने के कारण काटनेवाला था, न तो भयभीत थे न अभिभूत थे।

3 तत्पश्चात, अपने समस्त संगियों को छोड़कर, रा

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अध्याय सत्रह – कलि को दण्ड तथा पुरस्कार (1.17)

1 सूत गोस्वामी ने कहा: उस स्थान पर पहुँचकर महाराज परीक्षित ने देखा कि एक नीच जाति का शूद्र, राजा का वेश बनाये, एक गाय तथा एक बैल को लट्ठ से पीट रहा था, मानो उनका कोई स्वामी न हो।

2 बैल इतना धवल था कि जैसे श्वेत कमल पुष्प हो। वह उस शूद्र से अत्यधिक भयभीत था, जो उसे मार रहा था। वह इतना डरा हुआ था कि एक ही पैर पर खड़ा थरथरा रहा था और पेशाब कर रहा था।

3 यद्यपि गाय उपयोगी है, क्योंकि उससे धर्म प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु अब वह दीन तथा बछड़े से रहित हो ग

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अध्याय सोलह – परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया (1.16)

1 सूत गोस्वामी ने कहा: हे विद्वान ब्राह्मणों, तब महाराज परीक्षित श्रेष्ठ द्विज ब्राह्मणों के आदेशों के अनुसार महान भगवदभक्त के रूप में संसार पर राज्य करने लगे। उन्होंने उन महान गुणों के द्वारा शासन चलाया, जिनकी भविष्यवाणी उनके जन्म के समय पटु ज्योतिषियों ने की थीं।

2 राजा परीक्षित ने राजा उत्तर की पुत्री इरावती से विवाह किया और उससे उन्हें ज्येष्ठ पुत्र महाराज जनमेजय सहित चार पुत्र प्राप्त हुए।

3 महाराज परीक्षित ने कृपाचार्य को अपन

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अध्याय पन्द्रह – पाण्डवों की सामयिक निवृत्ति(1.15)

1 सूत गोस्वामी ने कहा: भगवान कृष्ण का विख्यात मित्र अर्जुन, महाराज युधिष्ठिर की सशंकित जिज्ञासाओं के अतिरिक्त भी, कृष्ण के वियोग की प्रबल अनुभूति के कारण शोक-सन्तप्त था।

2 शोक से अर्जुन का मुँह तथा कमल-सदृश हृदय सुख चुके थे, अतएव उसकी शारीरिक कान्ति चली गई थी। अब भगवान का स्मरण करने पर, वह उत्तर में एक शब्द भी न बोल पाया।

3 उसने बड़ी कठिनाई से आँखों में भरे हुए शोकाश्रुओं को रोका। वह अत्यन्त दुखी था, क्योंकि भगवान कृष्ण उसकी दृष्टि से ओझल थे और वह

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अध्याय चौदह – श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना (1.14)

1 श्री सूत गोस्वामी ने कहा: अपने सम्बन्धियों, मित्रों से मिलने तथा भगवान से उनके अगले कार्यकलापों के विषय में जानने के लिए अर्जुन द्वारका गये।

2 कुछ मास बीत गये, किन्तु अर्जुन वापस नहीं लौटे। तब महाराज को कुछ अपशकुन दिखने लगे, जो अत्यन्त भयानक थे।

3 उन्होंने देखा कि सनातन काल की गति बदल गई है और यह अत्यन्त भयावह था। ऋतु-सम्बन्धी नियमितताओं में व्यतिक्रम हो रहे थे। सामान्य लोग अत्यन्त लालची, क्रोधी तथा धोखेबाज हो गये थे और वे सभी जीविका के अनुचित

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अध्याय तेरह – धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग(1.13)

1 श्री सूत गोस्वामी ने कहा: तीर्थयात्रा करते हुए विदुर ने महर्षि मैत्रेय से आत्मा की गति का ज्ञान प्राप्त किया और फिर वे हस्तिनापुर लौट आये। वे अपेक्षानुसार इस विषय में पारंगत हो गये।

2 विविध प्रश्न पूछने के बाद तथा भगवान कृष्ण की दिव्य प्रेमामयी सेवा में स्थिर हो चुकने पर, विदुर ने मैत्रेय मुनि से प्रश्न पूछना बन्द किया।

3-4 जब उन्होंने देखा कि विदुर राजमहल लौट आये हैं, तो महाराज युधिष्ठिर, उनके छोटे भाई, धृतराष्ट्र, सात्यकि, संजय, कृपाचार्य, कुन

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अध्याय बारह – सम्राट परीक्षित का जन्म (1.12)

1 शौनक मुनि ने कहा: महाराज परीक्षित की माता उत्तरा का गर्भ अश्वत्थामा द्वारा छोड़े गये अत्यन्त भयंकर तथा अजेय ब्रह्मास्त्र द्वारा विनष्ट कर दिया गया, लेकिन परमेश्वर ने महाराज परीक्षित को बचा लिया।

2 अत्यन्त बुद्धिमान तथा महान भक्त महाराज परीक्षित उस गर्भ से कैसे उत्पन्न हुए? उनकी मृत्यु किस तरह हुई? और मृत्यु के बाद उन्होंने कौनसी गति प्राप्त की?

3 हम सभी अत्यन्त आदरपूर्वक उनके (महाराज परीक्षित के) विषय में सुनना चाहते हैं, जिन्हें श्रील शुकदेव गोस्वामी

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अध्याय ग्यारह – भगवान श्रीकृष्ण का द्वारका में प्रवेश(1.11)

1 सूत गोस्वामी ने कहा: आनर्तों के देश के नाम से विख्यात अपनी अत्यन्त समृद्ध राजनगरी (द्वारका) के निकट पहुँच कर, भगवान ने अपना आगमन उद्घोषित करने तथा निवासियों की निराशा को शान्त करने के लिए अपना शुभ शंख बजाया।

2 श्वेत तथा मोटे पेंदेवाला शंख, भगवान के हाथों द्वारा पकड़ा जाकर तथा उनके द्वारा बजाया जाकर, ऐसा लग रहा था मानों उनके दिव्य होठों का स्पर्श करके लाल हो गया हो। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों कोई श्वेत हंस लाल रंग के कमलदण्डों के बीच खेल

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अध्याय दस – द्वारका के लिए भगवान कृष्ण का प्रस्थान(1.10)

1 शौनक मुनि ने पूछा: जो महाराज युधिष्ठिर की वैध पैतृक सम्पत्ति को छीनना चाहते थे, उन शत्रुओं का वध करने के बाद महानतम धर्मात्मा युधिष्ठिर ने अपने भाइयों की सहायता से अपनी प्रजा पर किस प्रकार शासन चलाया? निश्चित ही वे अपने साम्राज्य का उपभोग मुक्त होकर अनियंत्रित चेतना से नहीं कर सके।

2 सूत गोस्वामी ने कहा: विश्व के पालनकर्ता भगवान श्रीकृष्ण महाराज युधिष्ठिर को उनके साम्राज्य में पुनः प्रस्थापित करके एवं क्रोध की दावाग्नि से विनष्ट हुए कुर

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अध्याय नौ – भगवान कृष्ण की उपस्थिति में भीष्मदेव का देह-त्याग(1.9)

1 सूत गोस्वामी ने कहा: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में इतने सारे लोगों का वध करने के कारण घबराये हुए महाराज युधिष्ठिर उस स्थल पर गये जहाँ नर-संहार हुआ था। वहाँ पर भीष्मदेव मरणासन्न होकर शरशय्या पर लेटे थे।

2 उस समय उनके सारे भाई स्वर्णाभूषणों से सजे हुए उच्च कोटि के घोड़ों द्वारा खींचे जानेवाले सुन्दर रथों पर उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। उनके साथ व्यासदेव तथा धौम्य जैसे ऋषि (पाण्डवों के विद्वान पुरोहित) तथा अन्य लोग थे।

3 हे ब्रह्मर्षि,

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अध्याय आठ – महारानी कुन्ती द्वारा प्रार्थना तथा परीक्षित की रक्षा(1.8)

1 सूत गोस्वामी ने कहा: तत्पश्चात, पाण्डवगण अपने मृत परिजनों की इच्छानुसार उन्हें जल-दान देने हेतु द्रौपदी सहित गंगा के तट पर गये। स्त्रियाँ आगे-आगे चल रही थीं।

2 उनके लिए शोक कर चुकने तथा पर्याप्त गंगाजल अर्पित करने के बाद उन सबों ने गंगा में स्नान किया, जिसका जल भगवान की चरणधूलि मिल जाने के कारण पवित्र हो गया है।

3 वहीं कुरुवंशियों के राजा महाराज युधिष्ठिर अपने छोटे भाइयों, धृतराष्ट्र, गान्धारी, कुन्ती तथा द्रौपदी सहित बैठ ग

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अध्याय सात – द्रोणपुत्र को दण्ड(1.7)

1 ऋषि शौनक ने पूछा: हे सूत जब महान तथा दिव्य रूप से शक्तिमान व्यासदेव ने श्री नारद मुनि से सब कुछ सुन लिया, तो फिर नारद के चले जाने पर व्यासदेव ने क्या किया?

2 श्री सूत ने कहा: वेदों से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर शम्याप्रास नामक स्थान पर एक आश्रम है, जो ऋषियों के दिव्य कार्यकलापों को संवर्धित करने वाला है।

3 उस स्थान पर बेरी के वृक्षों से घिरे हुए अपने आश्रम में, श्रील वेदव्यास शुद्धि के लिए जल का स्पर्श करने के बाद ध्यान लगाने के लिए ब

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अध्याय छह – नारद तथा व्यासदेव का संवाद(1.6)

1 सूत ने कहा: हे ब्राह्मणों, इस तरह श्री नारद के जन्म तथा कार्यकलापों के विषय में सब कुछ सुन लेने के बाद ईश्वर के अवतार तथा सत्यवती के पुत्र, श्री व्यासदेव ने इस प्रकार पूछा।

2 श्री व्यासदेव ने नारदजी से कहा: आपने उन महामुनियों के चले जाने पर क्या किया जिन्होंने आपके इस जन्म के प्रारम्भ होने के पूर्व आपको दिव्य वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान किया था?

3 हे ब्रह्मा के पुत्र, आपने दीक्षा लेने के बाद किस प्रकार जीवन बिताया? और यथासमय अपने पुराने शरीर को त्याग कर आ

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