hindi bhashi sangh (140)

 

मंगलाचरण

ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानान्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितम येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

श्री चैतन्यमनोअभीष्टम स्थापितम येन भूतले । स्वयं रुप: कदा महयम ददाती स्वपदान्तिकम ॥

मैं घोर अज्ञान के अंधकार में उत्पन्न हुआ था और मेरे गुरु ने अपने ज्ञानरूपी प्रकाश से मेरी आँखें खोल दीं। मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ। श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद कब मुझे अपने चरणकमलों में शरण प्रदान करेंगे, जिन्होंने इस जगत में भगवान चैतन्य की इच्छा की पूर्ति के लिए प्रचार योजना (मिशन) की स्थापना की है ।

वन्दे अहं श्रीगुर

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

प्रह्लाद महाराज द्वारा

नृसिंह देव को प्रार्थनाओं से शांत करना

श्रीमद भागवतम सप्तम स्कन्ध अध्याय नौ

 

 

प्रह्लाद महाराज द्वारा स्तुति .pdf

 

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

चित्रकेतु द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम षष्ठ स्कन्ध अध्याय सोलह

31 परमेश्र्वर का दर्शन पाते ही महाराज चित्रकेतु के समस्त भौतिक कल्मष धूल गये और वे पूर्णतः पवित्र हो जाने के कारण अपनी मूल कृष्णचेतना (भक्ति) में स्थित हो गये। वे पूर्णतः पवित्र हो जाने के कारण शांत एवं गंभीर हो गये, ईश्र्वर के प्रेमवश उनकी आँखों से अश्रु झरने लगे और अंत में उन्हें रोमांच हो आया। उन्ह

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

दक्ष द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम षष्ठ स्कन्ध अध्याय चार

21 उस पर्वत के निकट अघमर्षण नामक एक तीर्थस्थल था। वहाँ पर प्रजापति दक्ष ने सारे कर्मकांड सम्पन्न किए और भगवान हरि को प्रसन्न करने के लिए महान तपस्या में संलग्न होकर उन्हें संतुष्ट किया।

22 हे राजन! अब मैं आपसे हंसगुह्य नामक स्तुतियों की पूरी व्याख्या करूँगा जिन्हें दक्ष ने भगवान को अर्पित किया और मैं बताऊंगा

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

हनुमानजी द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम पंचम स्कन्ध अध्याय उन्नीस

  1. श्री शुकदेव गोस्वामी बोले---हे राजन, किम्पुरुषवर्ष में महान भक्त हनुमान वहाँ के निवासियों सहित लक्ष्मण के अग्रज तथा सीतादेवी के पति भगवान रामचन्द्र की सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं।

  2. गन्धर्वों का समूह सदा ही भगवान रामचन्द्र के यशों का गान करता है। ऐसा गायन अत्यंत मंगलकारी होता है। हनुमानजी तथा किम्पुरुषव

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

जम्बूद्वीप के निवासियों द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम पंचम स्कन्ध अध्याय अठारह

  1. श्रीशुकदेव गोस्वामी बोले---धर्मराज के पुत्र भद्रश्रवा भद्राश्र्ववर्ष नामक भूखंड में राज्य करते हैं। जिस प्रकार इलावृतवर्ष में भगवान शिव संकर्षण की पूजा करते हैं उसी प्रकार भद्रश्रवा अपने सेवकों तथा राज्य के समस्त वासियों समेत वासुदेव के स्वांश हयशीर्ष की पूजा करते हैं। हयशीर्ष भक्तों को अ

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

शिवजी द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम पंचम स्कन्ध अध्याय सत्रह

16 इलावृत्त वर्ष में भगवान शंकर सदैव दुर्गा की सौ अरब दासियों से घिरे रहते है जो उनकी सेवा करती हैं। परमात्मा का चतुर्गुण विस्तार वासुदेव, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध तथा संकर्षण में हुआ है। इनमें चतुर्थ विस्तार संकर्षण है जो निश्र्चित रूप से दिव्य है, किन्तु भौतिक जगत में उनका संहार-कार्य तमोगुणमय है, अतः वे ताम

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

ऋत्विज़ गण द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम पंचम स्कन्ध अध्याय तीन

4-5 ऋत्विज-गण इस प्रकार ईश्र्वर की स्तुति करने लगे---हे परम पूज्य, हम आपके दास मात्र हैं। यद्यपि आप पूर्ण हैं, किन्तु अहैतुकी कृपावश ही सही, हम दासों की यत्किंचित सेवा स्वीकार करें। हम आपके दिव्य रूप से परिचित नहीं हैं, किन्तु जैसा वेदों तथा प्रामाणिक आचार्यों ने हमें शिक्षा दी है, उसके अनुसार हम आपको बा

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

प्रचेताओं द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम चतुर्थ स्कन्ध अध्याय तीस

21 मैत्रेय ऋषि ने कहा: भगवान के इस प्रकार कहने पर प्रचेताओं ने उनकी प्रार्थना की। भगवान जीवन की समस्त सिद्धियों को देने वाले और परम कल्याणकर्ता हैं। वे परम मित्र भी हैं, क्योंकि वे भक्तो के समस्त कष्टों को हरते हैं। प्रचेताओं ने आनंदातिरेक से गदगद वाणी में प्रार्थना करनी प्रारम्भ की। वे भगवान का साक्षा

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

शिवजी द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम चतुर्थ स्कन्ध अध्याय चौबीस

32 महर्षि मैत्रेय ने आगे कहा: भगवान नारायण के परम भक्त महापुरुष शिवजी अहैतुकी कृपावश हाथ जोड़कर खड़े हुए राजा के पुत्रों से कहते रहे।

33 शिवजी ने पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की इस प्रकार स्तुति की: हे भगवान, आप धन्य हैं। आप सभी स्वरूपसिद्धों में महान हैं चूँकि आप उनका सदैव कल्याण करने वाले हैं, अतः आप मेरा भ

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

पृथु महाराज द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम चतुर्थ स्कन्ध अध्याय बीस

23 इस प्रकार राजा ने निम्नलिखित स्तुतियाँ अर्पित कीं। हे प्रभो, आप वर देने वाले देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं। अतः कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति आपसे ऐसे वर क्यों माँगेगा जो प्रकृति के गुणों से मोहग्रस्त जीवात्माओं के निमित्त हैं? ऐसे वरदान तो नरक में वास करने वाली जीवात्माओं को भी अपने जीवन-काल में स्वतः प

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

ध्रुव महाराज द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम चतुर्थ स्कन्ध अध्याय नौ

6 ध्रुव महाराज ने कहा: हे भगवन, आप सर्वशक्तिमान हैं। मेरे अन्तःकरण में प्रविष्ट होकर आपने मेरी सभी सोई हुए इंद्रियों को---हाथों, पाँवों, स्पर्शेंद्रिय, प्राण तथा मेरी वाणी को---जागृत कर दिया है। मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

7 हे भगवन आप सर्वश्रेष्ठ हैं, किन्तु आप आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतों में अपनी

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

ब्रह्मा द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम तृतीय स्कन्ध अध्याय नौ

  1. ब्रह्माजी ने कहा: हे प्रभु, आज अनेकानेक वर्षों की तपस्या के बाद मैं आपके विषय में जान पाया हूँ। ओह ! देहधारी जीव कितने अभागे हैं कि वे आपके स्वरूप को जान पाने में असमर्थ हैं। हे स्वामी, आप एकमात्र ज्ञेय तत्त्व हैं, क्योंकि आपसे परे कुछ भी सर्वोच्च नहीं है। यदि कोई वस्तु आपसे श्रेष्ठ प्रतीत होती भी है, तो

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ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

श्रीमद भागवत की महिमा

द्वादश स्कन्ध अध्याय तेरह

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सूत गोस्वामी ने कहा: ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र तथा मरुतगण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों, पद-क्रमों तथा उपनिषदों समेत बाँच कर जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं, सिद्ध योगी अपने को समाधि में स्थिर करके और अपने को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्

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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

द्वादश स्कन्ध (12 Canto)

 

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श्रीमद भागवतम द्वादश स्कन्ध के श्लोकों का कथारूप में अनुदित संकलन

हिन्दी भाषी भक्तों के लाभार्थ सादर, साभार श्रील प्रभुपाद के श्रीचरणों में समर्पित

अध्याय बारह ------ श्रीमद भागवत की संक्षिप्त विषय-सूची

सूत गोस्वामी ने कहा: परम धर्म भक्ति को, परम स्रष्टा भगवान कृष्ण को तथा समस्त ब्राह्मणों को नमस्कार करके, अब मैं धर्म के शाश्र्वत सिद्धांतों का वर्णन करूँगा। हे ऋषियों, मैं आप लोगो

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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

एकादश स्कन्ध (Eleventh Canto)

श्रीमद भागवतम एकादश स्कन्ध के श्लोकों का कथारूप में अनुदित संकलन

हिन्दी भाषी भक्तों के लाभार्थ सादर, साभार श्रील प्रभुपाद के श्रीचरणों में समर्पित

(समर्पित एवं सेवारत जे. सी. चौहान)

 

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1  मैं घोर अज्ञान के अंधकार में उत्पन्न हुआ था, और मेरे गुरु ने अपने ज्ञानरूपी प्रकाश से मेरी आँखेँ खोल दीं। मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ।

2  श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद कब मुझे अपने चरणकमलों में शरण प्रदान करेंगे, जिन्होंने इस जगत में भगवान चैतन्य की इच्छा की पूर्ति के लिए प्रचार योजना (मिशन) की स्थापना की     है।

3  मैं अपने गुरु के चरणकमलों को तथा समस्त वैष्णवों के चरणों को नमस्कार करता हूँ। मैं श्रील रूप गोस्वामी तथा उनके अग्रज सनातन गोस्वामी एवं साथ ही रघुनाथदास,    रघुनाथभट्ट, गोपालभट्ट एवं

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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध के श्लोकों का कथारूप में अनुदित संकलन

हिन्दी भाषी भक्तों के लाभार्थ सादर, साभार श्रील प्रभुपाद के श्रीचरणों में समर्पित

दशम स्कन्ध (Tenth Canto)

(समर्पित एवं सेवारत जे. सी. चौहान)

 

 

 

 

 

 

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श्रीमद भागवतम सप्तम स्कन्ध के श्लोकों का कथारूप में अनुदित संकलन

हिन्दी भाषी भक्तों के लाभार्थ सादर, साभार श्रील प्रभुपाद के श्रीचरणों में समर्पित

 

सप्तम स्कन्ध (Seventh Canto)

(समर्पित एवं सेवारत जे. सी. चौहान)

 

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श्रीमद भागवतम षष्ठ स्कन्ध के श्लोकों का कथारूप में अनुदित संकलन

समस्त हिन्दी भाषी भक्तों के लाभार्थ सादर, साभार श्रील प्रभुपाद के श्रीचरणों में समर्पित

षष्ठ स्कन्ध (SIXTH CANTO) .pdf

समर्पित एवं सेवारत जे. सी. चौहान

 

 

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