hindi bhashi sangh (140)

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अध्याय पाँच – नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमदभागवत के विषय में आदेश (1.5)

1 सूत गोस्वामी ने कहा: इस तरह देवर्षि (नारद) सुखपूर्वक बैठ गये और मानो मुस्कराते हुए ब्रह्मर्षि (व्यासदेव) को सम्बोधित किया।

2 व्यासदेव को पराशर पुत्र, सम्बोधित करते हुए नारद ने पूछा: क्या तुम मन या शरीर को आत्म-साक्षात्कार का लक्ष्य मान कर संतुष्ट हो?

3 तुम्हारी जिज्ञासाएँ पूर्ण हैं और तुम्हारा अध्ययन भी भलीभाँति पूरा हो चुका है। इसमें सन्देह नहीं कि तुमने एक महान एवं अद्भुत ग्रन्थ महाभारत तैयार किया है, जो सभी प्रकार के

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 10847907675?profile=RESIZE_400xअध्याय चार – श्री नारद का प्राकट्य(1.4)

1 सूत गोस्वामी को इस प्रकार बोलते देखकर, दीर्घकालीन यज्ञोत्सव में लगे हुए समस्त ऋषियों में विद्वान तथा वयोवृद्ध अग्रणी शौनक मुनि ने सूत गोस्वामी को निम्न प्रकार सम्बोधित करते हुए बधाई दी।

2 शौनक ने कहा: हे सूत गोस्वामी, जो बोल सकते हैं तथा सुना सकते हैं, उन सबों में आप सर्वाधिक भाग्यशाली तथा सम्माननीय हैं। कृपा करके श्रीमद भागवत की पुण्य कथा कहें, जिसे महान तथा शक्ति सम्पन्न ऋषि श्रील शुकदेव गोस्वामी ने सुनाई थी।

3 यह (कथा) सर्वप्रथम किस युग में तथा किस स्

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अध्याय तीन -- समस्त अवतारों के स्रोत कृष्ण(1.3)

1 सूतजी ने कहा: सृष्टि के प्रारम्भ में, भगवान ने सर्वप्रथम विराट पुरुष अवतार के रूप में अपना विस्तार किया और भौतिक सृजन के लिए सारी सामग्री प्रकट की। इस प्रकार सर्वप्रथम भौतिक क्रिया के सोलह तत्त्व उत्पन्न हुए। यह सब भौतिक ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के लिए किया गया।

2 पुरुष के एक अंश ब्रह्माण्ड के जल के भीतर लेटते हैं, उनके शरीर के नाभि--सरोवर से एक कमलनाल अंकुरित होता है और इस नाल के ऊपर खिले कमल--पुष्प से ब्रह्माण्ड के समस्त शिल्पियों के स्वामी ब्

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अध्याय दो – दिव्यता तथा दिव्य सेवा(1.2)

1 रोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा (सूत गोस्वामी) ने ब्राह्मणों के सम्यक प्रश्नों से पूर्णतः प्रसन्न होकर उन्हें धन्यवाद दिया और वे उत्तर देने का प्रयास करने लगे।

2 श्रील सूत गोस्वामी ने कहा: मैं उन महामुनि (श्रील शुकदेव गोस्वामी) को सादर नमस्कार करता हूँ जो सबों के हृदय में प्रवेश करने में समर्थ हैं। जब वे यज्ञोपवीत संस्कार अथवा उच्च जातियों द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठानों को सम्पन्न किए बिना संन्यास ग्रहण करने चले गये तो उनके पिता व्यासदेव उनके वियोग में भय

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कृपया मेरा विनम्र प्रणाम स्वीकार करें !  

(Please accept my humble obeisances)

श्रील प्रभुपाद की जय हो !   

(All Glories to Sril Prabhupada)

श्रीमदभागवत न केवल प्रत्येक वस्तु के परम स्रोत को जानने के लिए दिव्य विज्ञान है अपितु ईश्वर से अपने सम्बन्ध को जानने और इस पूर्ण ज्ञान के आधार पर मानव समाज की पूर्णता के प्रति अपने कर्तव्य को पहचानने का दिव्य विज्ञान है।   श्रीमदभागवत का शुभारम्भ परम स्रोत की परिभाषा से होता है। यह श्रील व्यासदेव द्वारा रचे वेदान्त-सूत्र पर उन्हीं का प्रामाणिक भाष्य है, जो क्रम

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श्री भगवान की स्तुतियाँ 

Glorifications of God

श्रीभगवान की महिमामयी स्तुतियाँ पत्रिका स्वरूप में .pdf 

 

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श्रीकृष्ण शरणम ममः श्रीकृष्ण शरणम ममः

श्रीकृष्ण शरणम ममः श्रीकृष्ण शरणम ममः

जनम जनम के पाप कटे - भरम के बादल दूर हटे

जो मुख से इक बार रटे - श्रीकृष्ण शरणम ममः

श्रीकृष्ण शरणम ममः श्रीकृष्ण शरणम ममः

श्रीकृष्ण शरणम ममः श्रीकृष्ण शरणम ममः

तीन शब्द का ये संगीत - मुक्ति दिलाने वाला गीत

इसको गाकर जग को जीत - श्रीकृष्ण शरणम ममः

श्रीकृष्ण शरणम ममः श्रीकृष्ण शरणम ममः

श्रीकृष्ण शरणम ममः श्रीकृ

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श्री गुरु गौरांग जयतः

श्रीमद भगवद गीता यथारूप

अर्जुन द्वारा स्तुति

अध्याय ग्यारह विराट रूप

9. संजय ने कहा—हे राजा ! इस प्रकार कहकर महायोगेश्वर भगवान ने अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखलाया।

10-11. अर्जुन ने उस विश्वरूप में असंख्य मुख, असंख्य नेत्र तथा असंख्य आश्चर्यमय दृश्य देखे। यह रूप अनेक दैवी आभूषणों से अलंकृत था और अनेक दैवी हथियार उठाये हुए था। यह दैवी मालाएँ तथा वस्त्र धारण किये था और उस पर अनेक दिव्य सुगंधियां लगी थी। सब कुछ आश्चर्यमय, तेजमय, असीम तथा सर्वत्र व्याप्त था।

12. यदि आकाश में हजा

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

मार्कन्डेय द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम द्वादश स्कन्ध (अध्याय आठ)

35 ये दोनों मुनि नर तथा नारायण भगवान के साकार रूप थे। जब मार्कण्डेय ऋषि ने दोनों को देखा तो वे तुरंत उठ खड़े हुए और तब पृथ्वी पर डंडे की तरह गिरकर अतीव आदर के साथ उन्हें नमस्कार किया।

36 उन्हें देखने से उत्पन्न हुए आनंद ने मार्कण्डेय के शरीर, मन तथा इंद्रियों को पूरी तरह तुष्ट कर दिया और उनके शरीर में

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

देवताओं द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम एकादश स्कन्ध (अध्याय छह)

7 देवता कहने लगे: हे प्रभु, बड़े बड़े योगी कठिन कर्म-बंधन से मुक्ति पाने का प्रयास करते हुए अपने हृदयों में आपके चरणकमलों का ध्यान अतीव भक्तिपूर्वक करते हैं। हम देवतागण अपनी बुद्धि, इंद्रियाँ, प्राण, मन तथा वाणी आपको समर्पित करते हुए, आपके चरणकमल पर नत होते हैं।

8 हे अजित प्रभु, आप तीन गुणों से बनी अपनी मा

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

साक्षात वेदों द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय सतासी)

14 श्रुतियों ने कहा: हे अजित, आपकी जय हो, जय हो, अपने स्वभाव से आप समस्त ऐश्वर्य से परिपूर्ण हैं, अतएव आप माया की शाश्र्वत शक्ति को परास्त करें, जो बद्धजीवों के लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न करने के लिए तीनों गुणों को अपने वश में कर लेती है। चर तथा अचर देहधारियों की समस्त शक्ति को जागृत करनेवाले, कभी-कभी

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

शिवजी द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय तिरसठ)

33 बाणासुर की भुजाएँ कटते देखकर शिवजी को अपने भक्त के प्रति दया आ गयी अतः वे भगवान चक्रायुध (कृष्ण) के पास पहुँचे और उनसे इस प्रकार बोले।

34 श्री रुद्र ने कहा: आप ही एकमात्र परम सत्य, परम ज्योति तथा ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यक्ति के भीतर के गुह्य रहस्य हैं। जिनके हृदय निर्मल हैं, वे आपका दर्शन कर सकते हैं

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

भूमिदेवी द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय उनसठ)

23 तब भूमिदेवी भगवान कृष्ण के पास आई और भगवान को अदिति के कुंडल भेंट किये जो चमकीले सोने के बने थे और जिसमें चमकीले रत्न जड़े थे। उसने उन्हें एक वैजयंती माला, वरुण का छत्र तथा मन्दर पर्वत की चोटी भी दी।

24 हे राजन, उनको प्रणाम करके तथा उनके समक्ष हाथ जोड़े खड़ी वह देवी भक्ति-भाव से पूरित होकर ब्रह्मांड के

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय चालीस)

1 श्री अक्रूर ने कहा: हे समस्त कारणों के कारण, आदि तथा अव्यय महापुरुष नारायण,मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आपकी नाभि से उत्पन्न कमल के कोष से ब्रह्मा प्रकट हुए हैं और उनसे यह ब्रह्मांड अस्तित्व में आया है।

2 पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश एवं इसका स्रोत तथा मिथ्या अहंकार, महत-तत्त्व, समस्त भौतिक प्रकृति और उसका उद्गम तथा भगवान क

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

इन्द्रदेव तथा माता सुरभि द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय सत्ताईस)

1 शुकदेव गोस्वामी ने कहा: कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने तथा भयंकर वर्षा से व्रजवासियों की रक्षा करने के बाद गौवों की माता सुरभि गोलोक से कृष्ण का दर्शन करने आई। इनके साथ इन्द्र था।

2 भगवान का अपमान करने के कारण इन्द्र अत्यंत लज्जित था। एकांत स्थान में उनके पास जाकर इन्द्र उनके चरणों पर

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

कालिय की पत्नियों एवं कालिय नाग द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय सोलह)

33 कालिय सर्प की पत्नियों ने कहा: इस अपराधी को जो दंड मिला है, वह निस्संदेह उचित ही है। आपने इस जगत में ईर्ष्यालु तथा क्रूर पुरुषों का दमन करने के लिए ही अवतार लिया है आप इतने निष्पक्ष हैं कि आप शत्रुओं तथा अपने पुत्रों को समान भाव से देखते हैं क्योंकि जब आप किसी जीव को दंड देते ह

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

ब्रह्मा द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय चौदह)

1 ब्रह्मा ने कहा: हे प्रभु, आप ही एकमात्र पूज्य भगवान हैं अतएव आपको प्रसन्न करने के लिए मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ और आपकी स्तुति करता हूँ। हे ग्वालनरेश पुत्र, आपका दिव्य शरीर नवीन बादलों के समान गहरा नीला है; आपके वस्त्र बिजली के समान देदीप्यमान हैं और आपके मुखमंडल का सौन्दर्य गुञ्जा के बने आपको कुं

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

नलकूवर तथा मणिग्रीव द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय दस)

24 सर्वोच्च भक्त नारद के वचनों को सत्य बनाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण धीरे धीरे उस स्थान पर गये जहाँ दोनों अर्जुन वृक्ष खड़े थे।

25 “यद्यपि ये दोनों युवक अत्यंत धनी कुबेर के पुत्र हैं और उनसे मेरा कोई संबंध नहीं है परंतु देवर्षि नारद मेरा अत्यंत प्रिय तथा वत्सल भक्त है और क्योंकि उसने चाहा था कि म

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

वसुदेव तथा माता देवकी द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय तीन)

13 वसुदेव ने कहा: हे भगवान, आप इस भौतिक जगत से परे परम पुरुष हैं और आप परमात्मा हैं। आपके स्वरूप का अनुभव उस दिव्य ज्ञान द्वारा हो सकता है, जिससे आप भगवान के रूप में समझे जा सकते हैं। अब आपकी स्थिति मेरी समझ में भलीभाँति आ गई है।

14 हे भगवन, आप वही पुरुष हैं जिसने प्रारम्भ में अपनी बहिरंगा

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श्री गुरु गौरांग जयतः

 श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

देवताओं द्वारा गर्भस्थ कृष्ण की स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय दो)

26 देवताओं ने प्रार्थना की; हे प्रभो, आप अपने व्रत से कभी भी विचलित नहीं होते जो सदा ही पूर्ण रहता है क्योंकि आप जो भी निर्णय लेते हैं वह पूरी तरह सही होता है और किसी के द्वारा रोका नहीं जा सकता। सृष्टि, पालन तथा संहार---जगत की इन तीन अवस्थाओं में विद्यमान रहने से आप परम सत्य हैं।

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

अंबरीष महाराज द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम नवम स्कन्ध (अध्याय पाँच)

1 शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब भगवान विष्णु ने दुर्वासा मुनि को इस प्रकार सलाह दी तो सुदर्शन चक्र से अत्यधिक उत्पीड़ित मुनि तुरंत ही महाराज अम्बरीष के पास पहुँचे। अत्यंत दुखित होने के कारण वे राजा के समक्ष लौट गये और उन चरणकमलों को पकड़ लिया।

2 जब दुर्वासा मुनि ने महाराज अम्बरीष के पाँव छुए तो वे अत्यं

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