भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय चार दिव्य ज्ञान
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ।। 34 ।।
तत्– विभिन्न यज्ञों के उस ज्ञान को;विद्धि– जानने का प्रयास करो;प्रणिपातेन– गुरु के पास जाकर के;परिप्रश्नेन– विनीत जिज्ञासा से;सेवया– सेवा के द्वारा;उपदेक्ष्यन्ति– दीक्षित करेंगे;ते– तुमको;ज्ञानम्– ज्ञान में;ज्ञानिनः– स्वरुपसिद्ध;तत्त्व– तत्त्व के;दर्शिनः– दर्शी।