सुबोध दुबे (4)

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भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक

अध्याय चार दिव्य ज्ञान

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ।। 34 ।।

तत्– विभिन्न यज्ञों के उस ज्ञान को;विद्धि– जानने का प्रयास करो;प्रणिपातेन– गुरु के पास जाकर के;परिप्रश्नेन– विनीत जिज्ञासा से;सेवया– सेवा के द्वारा;उपदेक्ष्यन्ति– दीक्षित करेंगे;ते– तुमको;ज्ञानम्– ज्ञान में;ज्ञानिनः– स्वरुपसिद्ध;तत्त्व– तत्त्व के;दर्शिनः– दर्शी।

भावार्थ: तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो। उनसे विनीत होकर जिज्ञा
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अध्याय ग्यारह – परमाणु से काल की गणना (3.11)

1 भौतिक अभिव्यक्ति का अनन्तिम कण जो कि अविभाज्य है और शरीर रूप में निरूपित नहीं हुआ हो, परमाणु कहलाता है। यह सदैव अविभाज्य सत्ता के रूप में विद्यमान रहता है यहाँ तक कि समस्त स्वरूपों के विलीनीकरण (लय) के बाद भी। भौतिक देह ऐसे परमाणुओं का संयोजन ही तो है, किन्तु सामान्य मनुष्य इसे गलत ढंग से समझता है।

2 परमाणु अभिव्यक्त ब्रह्माण्ड की चरम अवस्था है। जब वे विभिन्न शरीरों का निर्माण किये बिना अपने ही रूपों में रहते हैं, तो वे असीमित एकत्व (कैवल्य) कहलाते ह

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भगवान कृष्ण – भक्त के हृदय में से अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करने का भार अपने ऊपर ले लेते हैं।   (भगवद्गीता 10.10)   (तात्पर्य भागवतम 3.5.40) ~श्रील प्रभुपाद~

अध्याय पाँच मैत्रेय से विदुर की वार्ता (3.5)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: इस तरह कुरुवंशियों में सर्वश्रेष्ठ विदुर, जो भगवद्भक्ति में परिपूर्ण थे, स्वर्ग लोक की नदी गंगा के उद्गम (हरद्वार) पहुँचे जहाँ विश्व के अगाध विद्वान महामुनि मैत्रेय आसीन थे। भद्रता (सुशीलता) से पूर्ण तथा अध्यात्म में तुष्ट विदुर ने उनसे पूछा।

2 विदुर ने कहा: हे मह

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अध्याय उन्नीस – श्रील शुकदेव गोस्वामी का प्रकट होना(1.19)

1 श्री सूत गोस्वामी ने कहा: घर लौटते हुए राजा (महाराज परीक्षित) ने अनुभव किया कि उन्होंने निर्दोष तथा शक्तिमान ब्राह्मण के प्रति अत्यन्त जघन्य तथा अशिष्ट व्यवहार किया है। फलस्वरूप वे अत्यन्त उद्विग्न थे।

2 [राजा परीक्षित ने सोचा:] भगवान के आदेशों की अवहेलना करने से मुझे आशंका है कि निश्चित रूप से निकट भविष्य में मेरे ऊपर कोई संकट आनेवाला है। अब मैं बिना हिचक के कामना करता हूँ कि वह संकट अभी आ जाय, क्योंकि इस तरह मैं पापपूर्ण कर्म से मुक्त

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