हिन्दी भाषी संघ (229)

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भगवान कृष्ण – भक्त के हृदय में से अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करने का भार अपने ऊपर ले लेते हैं।   (भगवद्गीता 10.10)   (तात्पर्य भागवतम 3.5.40) ~श्रील प्रभुपाद~

अध्याय पाँच मैत्रेय से विदुर की वार्ता (3.5)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: इस तरह कुरुवंशियों में सर्वश्रेष्ठ विदुर, जो भगवद्भक्ति में परिपूर्ण थे, स्वर्ग लोक की नदी गंगा के उद्गम (हरद्वार) पहुँचे जहाँ विश्व के अगाध विद्वान महामुनि मैत्रेय आसीन थे। भद्रता (सुशीलता) से पूर्ण तथा अध्यात्म में तुष्ट विदुर ने उनसे पूछा।

2 विदुर ने कहा: हे मह

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यदुकुल का नाश निकट आया जानकर इस लोक से प्रयाण करते समय भगवान श्रीकृष्ण का उद्धव तथा मैत्रेय को उपदेश।   

3.4.3-13 - श्रील प्रभुपाद-

अध्याय चार विदुर का मैत्रेय के पास जाना (3.4)

1 तत्पश्चात उन सबों ने (वृष्णि तथा भोज वंशियों ने) ब्राह्मणों की अनुमति से प्रसाद का उच्छिष्ट खाया और चावल की बनी मदिरा भी पी। पीने से वे सभी संज्ञाशून्य हो गये और ज्ञान से रहित होकर एक दूसरे को वे मर्मभेदी कर्कश वचन कहने लगे।

2 जिस तरह बाँसों के आपसी घर्षण से विनाश होता है उसी तरह सूर्यास्त के समय नशे के दोषों की अन्तःक्

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कालयवन द्वारा मथुरा पर आक्रमण  3.3.10 - श्रील प्रभुपाद !

अध्याय तीन – वृन्दावन से बाहर भगवान की लीलाएँ (3.3)

1 श्री उद्धव ने कहा: तत्पश्चात भगवान कृष्ण श्री बलदेव के साथ मथुरा नगरी आये और अपने माता पिता को प्रसन्न करने के लिए जनता के शत्रुओं के अगुवा कंस को उसके सिंहासन से खींच कर अत्यन्त बलपूर्वक भूमि पर घसीटते हुए वध कर दिया।

2 भगवान ने अपने शिक्षक सांदीपनी मुनि से केवल एक बार सुनकर सारे वेदों को उनकी विभिन्न शाखाओं समेत सीखा और गुरुदक्षिणा के रूप में अपने शिक्षक के मृत पुत्र को यमलोक से वापस ला

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अध्याय उन्नीस – श्रील शुकदेव गोस्वामी का प्रकट होना(1.19)

1 श्री सूत गोस्वामी ने कहा: घर लौटते हुए राजा (महाराज परीक्षित) ने अनुभव किया कि उन्होंने निर्दोष तथा शक्तिमान ब्राह्मण के प्रति अत्यन्त जघन्य तथा अशिष्ट व्यवहार किया है। फलस्वरूप वे अत्यन्त उद्विग्न थे।

2 [राजा परीक्षित ने सोचा:] भगवान के आदेशों की अवहेलना करने से मुझे आशंका है कि निश्चित रूप से निकट भविष्य में मेरे ऊपर कोई संकट आनेवाला है। अब मैं बिना हिचक के कामना करता हूँ कि वह संकट अभी आ जाय, क्योंकि इस तरह मैं पापपूर्ण कर्म से मुक्त

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

स्तुतियाँ श्रीमद भागवतम

चतुर्थ स्कन्ध अध्याय सात

26 दक्ष ने भगवान को संबोधित करते हुए कहा--हे प्रभु, आप समस्त कल्पना-अवस्थाओं से परे हैं। आप परम चिन्मय, भय-रहित और भौतिक माया को वश में रखने वाले हैं। यद्यपि आप माया में स्थित प्रतीत होते हैं, किन्तु आप दिव्य है। आप भौतिक कल्मष से मुक्त हैं, क्योंकि आप परम स्वतंत्र हैं।

27 पुरोहितों ने भगवान को संबोधित करते कहा--हे भ

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

माता देवहूति द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम तृतीय स्कन्ध अध्याय तैतीस

1 श्री मैत्रेय ने कहा: इस प्रकार भगवान कपिल की माता एवं कर्दम मुनि की पत्नी देवहूति भक्तियोग तथा दिव्य ज्ञान संबंधी समस्त अविद्या से मुक्त हो गई। उन्होंने उन भगवान को नमस्कार किया जो मुक्ति की पृष्ठभूमि सांख्य दर्शन के प्रतिपादक हैं और तब निम्नलिखित स्तुति द्वारा उन्हें प्रसन्न किया।

2 देवहूति ने कहा:

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

भीष्म द्वारा स्तुति

प्रथम स्कन्ध अध्याय नौ

31 शुद्ध ध्यान द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को देखते हुए, वे तुरंत समस्त भौतिक अशुभ अवस्थाओं से और तीरों के घाव से होनेवाली शारीरिक पीड़ा से मुक्त हो गये। इस प्रकार उनकी सारी इंद्रियों के कार्यकलाप रुक गये और उन्होंने शरीर को त्यागते हुए समस्त जीवों के नियंता की दिव्य भाव से स्तुति की।

32 भीष्मदेव ने कहा: अभी तक मैं जो सोचता, जो अनु

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

कुन्ती द्वारा स्तुति

(श्रीमद भागवतम प्रथम स्कन्ध अध्याय आठ)

18 श्रीमती कुन्ती ने कहा: हे कृष्ण, मैं आपको नमस्कार करती हूँ, क्योंकि आप ही आदि पुरुष हैं और इस भौतिक जगत के गुणों से निर्लिप्त रहते हैं। आप समस्त वस्तुओं के भीतर तथा बाहर स्थित रहते हुए भी सबों के लिए अदृश्य हैं।

19 सीमित इंद्रिय-ज्ञान से परे होने के कारण, आप ठगिनी शक्ति (माया) के पर्दे से ढके रहनेवाले शाश्

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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

भगवान की विभूतियाँ (11.16)

श्री उद्धव ने कहा: हे प्रभु, आप अनादि तथा अनंत, साक्षात परब्रह्म तथा अन्य किसी वस्तु से सीमित नहीं हैं। आप सभी वस्तुओं के रक्षक तथा जीवनदाता, उनके संहार तथा सृष्टि हैं। हे प्रभु, यद्यपि अपवित्र लोगों के लिए यह समझ पाना कठिन है कि आप समस्त उच्च तथा निम्न सृष्टियों में स्थित हैं, किन्तु वे ब्राह्मण जो वैदिक मत को भलीभाँति जानते हैं आपकी वास्त

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