भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय चार दिव्य ज्ञान
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।। 8 ।।
परित्राणाय– उद्धार के लिए;साधूनाम्– भक्तों के;विनाशाय– संहार के लिए;च– तथा;दुष्कृताम्– दुष्टों के;धर्म– धर्म के;संस्थापन-अर्थाय– पुनः स्थापित करने के लिए;सम्भवामि– प्रकट होता हूँ;युगे– युग;युगे– युग में।
भावार्थ : भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ।
तात्पर्य: भगवद्गीता के