अध्याय सत्रह – पुरुरवा के पुत्रों की वंशावली (9.17)
1-3 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: पुरुरवा से आयु नामक पुत्र हुआ जिससे नहुष, क्षत्रवृद्ध, रजी, राभ तथा अनेना नाम के अत्यन्त शक्तिशाली पुत्र उत्पन्न हुए। हे महाराज परीक्षित, अब क्षत्रवृद्ध के वंश के विषय में सुनो। क्षत्रवृद्ध का पुत्र सुहोत्र था जिसके तीन पुत्र हुए – काश्य, कुश तथा गृत्समद। गृत्समद से शुनक हुआ और शुनक से शौनक मुनि उत्पन्न हुए जो ऋग्वेद में सर्वाधिक पटु थे।
4 काश्य का पुत्र काशी था और उसका पुत्र राष्ट्र हुआ जो दीर्घतम का पिता था। दीर्घतम के धन्वन्तरी नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो आयुर्वेद का जनक तथा समस्त यज्ञफलों के भोक्ता भगवान वासुदेव का अवतार था। जो धन्वन्तरी का नाम याद करता है उसके सारे रोग दूर हो सकते हैं।
5 धन्वन्तरी का पुत्र केतुमान हुआ और उसका पुत्र भीमरथ था। भीमरथ का पुत्र दिवोदास था और उसका पुत्र द्युमान हुआ जो प्रतर्दन भी कहलाता था।
6 द्युमान को शत्रुजित, वत्स, ऋतध्वज तथा कुवलयाश्व नामों से भी जाना जाता था। उससे अलर्क तथा अन्य पुत्र उत्पन्न हुए।
7 हे राजा परीक्षित, द्युमान के पुत्र अलर्क ने पृथ्वी पर छियासठ हजार वर्षों से भी अधिक समय तक राज्य किया। इस पृथ्वी पर उनके अतिरिक्त किसी अन्य ने युवक के रूप में इतने दीर्घकाल तक राज्य नहीं भोगा।
8 अलर्क से सन्तति नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका पुत्र सुनीथ हुआ। सुनीथ का पुत्र निकेतन था। निकेतन का पुत्र धर्मकेतु हुआ और धर्मकेतु का पुत्र सत्यकेतु था।
9 हे राजा परीक्षित, सत्यकेतु का पुत्र धृष्टकेतु हुआ और धृष्टकेतु का पुत्र सुकुमार हुआ जो पूरे विश्व का सम्राट था। सुकुमार का पुत्र वीतिहोत्र हुआ जिसका पुत्र भर्ग था और भर्ग का पुत्र भार्गभूमि हुआ।
10 हे महाराज परीक्षित, ये सारे राजा काशी के वंशज थे और इन्हें क्षत्रवृद्ध के उत्तराधिकारी भी कहा जा सकता है। राभ का पुत्र रभस हुआ, रभस का पुत्र गम्भीर और गम्भीर का पुत्र अक्रिय कहलाया।
11 हे राजन अक्रिय का पुत्र ब्रह्मवित कहलाया। अब अनेना के वंशजों के विषय में सुनो। अनेना के पुत्र का नाम शुद्ध था और उसका पुत्र शुचि था। शुचि का पुत्र धर्मसारथी था जो चित्रकृत भी कहलाता था।
12 चित्रकृत के शान्तरज नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो स्वरूपसिद्ध व्यक्ति था जिसने समस्त वैदिक कर्मकाण्ड सम्पन्न किये। फलतः उसने कोई सन्तान उत्पन्न नहीं की। रजी के पाँच सौ पुत्र हुए जो सारे के सारे अत्यन्त शक्तिशाली थे।
13 देवताओं की प्रार्थना पर रजी ने दैत्यों का वध किया और स्वर्ग का राज्य इन्द्रदेव को लौटा दिया। किन्तु इन्द्र ने प्रह्लाद जैसे दैत्यों के डर से स्वर्ग का राज्य रजी को लौटा दिया और स्वयं उसके चरणकमलों की शरण ग्रहण कर ली।
14 रजी की मृत्यु के बाद इन्द्र ने रजी के पुत्रों से स्वर्ग का राज्य लौटाने के लिए याचना की। किन्तु उन्होंने नहीं लौटाया, यद्यपि वे इन्द्र का यज्ञ-भाग लौटाने के लिए राजी हो गये।
15 तत्पश्चात देवताओं के गुरु बृहस्पति ने अग्नि में आहुती डाली जिससे रजी के पुत्र नैतिक सिद्धान्तों से नीचे गिर जायें। जब वे गिर गये तो इन्द्र ने उनके पतन के कारण उन्हें सरलता से मार डाला। उनमें से एक भी नहीं बच पाया।
16 क्षत्रवृद्ध के पौत्र कुश से प्रति नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। प्रति का पुत्र सञ्जय, सञ्जय का पुत्र जय, जय का पुत्र कृत और कृत का पुत्र राजा हर्यबल हुआ।
17 हर्यबल का पुत्र सहदेव, सहदेव का पुत्र हीन, हीन का पुत्र जयसेन और जयसेन का पुत्र संकृति हुआ। संकृति का पुत्र जय अत्यन्त शक्तिशाली एवं निपुण योद्धा था। ये सभी राजा क्षत्रवृद्ध वंश के सदस्य थे। अब मैं नहुष के वंश का वर्णन करूँगा।
( समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान )
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