भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय 2 : गीता का सार
नेहाभिक्रमनाशोSस्ति प्रत्यवायो न विद्यते ।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ।। 40 ।।
न– नहीं;इह– इस योग में;अभिक्रम– प्रयत्न करने में;नाशः– हानि;अस्ति– है;प्रत्यवायः– ह्रास;न– कभी नहीं;विद्यते– है;सु-अल्पम्– थोडा;अपि– यद्यपि;धर्मस्य– धर्म का;त्रायते– मुक्त करना है;महतः– महान;भयात्– भय से।
भावार्थ : इस प्रयास में न तो हानि होती है न ही ह्रास अपितु इस पथ पर की गई अल्प प्रगति भी महान भय से रक्षा कर सकती है।
तात्पर्य: कर्म का सर्वोच्च

