पृथु महाराज द्वारा स्तुति (4.20)
23-24 हे प्रभो, आप वर देने वाले देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं। अतः कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति आपसे ऐसे वर क्यों माँगेगा जो प्रकृति के गुणों से मोहग्रस्त जीवात्माओं के निमित्त हैं? ऐसे वरदान तो नरक में वास करने वाली जीवात्माओं को भी अपने जीवन-काल में स्वतः प्राप्त होते रहते हैं। हे भगवन, आप निश्चित ही अपने साथ तादात्म्य प्रदान कर सकते हैं। किन्तु मैं ऐसा वर नहीं चाहता। हे भगवान, मैं आपसे तादात्म्य के वर की इच्छा नहीं करता, क्योंकि इसमें आपके चरणकमलों का अमृत रस नहीं है।

