भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय आठ भगवत्प्राप्ति
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयः ॥ 7 ॥
तस्मात्– अतएव;सर्वेषु– समस्त;कालेषु– कालों में;माम्– मुझको;अनुस्मर– स्मरण करते रहो;युध्य– युद्ध करो;च– भी;मयि– मुझमें;अर्पित– शरणागत होकर;मनः– मन;बुद्धिः– बुद्धि;माम्– मुझको;एव– निश्चय ही;एष्यसि– प्राप्त करोगे;असंशयः– निस्सन्देह ही।
भावार्थ : अतएव, हे अर्जुन! तुम्हें सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिन्तन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्तव्य को भी पूरा करना चाहिए। अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमें स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे।
तात्पर्य : अर्जुन को दिया गया यह उपदेश भौतिक कार्यों में व्यस्त रहने वाले समस्त व्यक्तियों के लिए बड़ा महत्त्वपूर्ण है। भगवान् यह नहीं कहते कि कोई अपने कर्तव्यों को त्याग दे। मनुष्य उन्हें करते हुए साथ-साथ हरे कृष्ण का जप करके कृष्ण का चिन्तन कर सकता है। इससे मनुष्य भौतिक कल्मष से मुक्त हो जायेगा और अपने मन तथा बुद्धि को कृष्ण में प्रवृत्त करेगा। कृष्ण का नाम-जप करने से मनुष्य परमधाम कृष्णलोक को प्राप्त होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
(समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान)
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