Priya Sakhi Devi Dasi's Posts (52)

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हे गोपाल मेरे
हे गोविन्द मेरे
देखो ये माया
कैसे मुझे घेरे

कभी तन को दे पीडा
कभी मन को उलझन
चाहे दूर करना तुझसे
दूरी न हो पाए भगवन

कैसा भी हो संकट
किसी भी विपदा
तेरा नाम ही हो
मेरे होठों पे सदा.

कितना भी तडपाये मुझको माया
कितनी भी दुर्बल हो मेरी काया
महसूस करूँ मै हरपल तेरी छाया
तेरी लीलों में हो मन हर पल समाया .

इतना करना हे गोविन्द कि
मेरी भक्ति कभी न छूटे
टूटे चाहे जग के सब रिश्ते
पर मेरा रिश्ता तुझसे न टूटे

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मेरा भोला-सा कन्हैया
उसके नन्हे-नन्हे पाँव |
वो करे अपनी अटखेलियाँ,
नंद बाबा के गाँव ||

मैया की ममता,
बाबा का दुलार |
फिर जगपति बन गए,
ब्रज के राजकुमार ||

भूल गए सारा ऐश्वर्य,
फिर तो सुदर्शनधारी |
बन गए वो ग्वाल बाल,
जब भक्त बनी महतारी ||

नंद बाबा के खडाऊं,
कैसे सिर पे हैं वो उठाये |
जिनके चरणों के दर्शन को,
देवता भी तरस जाएँ ||

वो जो है परमपिता ,
वो अपने भक्त को पिता भी बनाते हैं|
ऐसे हैं कृष्णा मेरे जो ,
भक्त के लिए क्या नही कर जाते हैं ||

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आजाद होना है तो हमें तो

कृष्णा का दास बनना होगा

क्योंकि वो हैं ही एक मात्र स्वतंत्र

उनसे ही हमें जुडना होगा.


उनका दास बनना

इस जगत की तरह नही

ये तो ऐसी ऊँची पदवी है

जैसे यहाँ मालिक की भी नही.


हमारे कन्हैया तो ऐसे मालिक है

जो सेवक के सेवक बन जाते हैं .

लक्ष्मी जिनके पैर दबाये वो प्रभु

कैसे पार्थसारथी भी कहलाते हैं.


जो जितनी उनकी सेवा करता

वो उतना ही सुकून पाता है.

वो प्रतिक्षण उनका गान करता

भौतिक बंधन से छूट जाता है.


ये माया ही तो बंधन है

प्रभु का सानिध्य है आजादी

प्रभु के बिना माया को पार पाना

ये तो है बस वक्त की बर्बादी.


स्वतंत्रता का मतलब है

जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना.

इस चक्र से मुक्ति दिला सकते हैं मुकुंद

इसके लिए हमें उनका ही होना होगा.


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लाल अंगोछा,पीली धोती
हाथ में कंगन,गले में मोती
ऐसा रूप सजा कान्हा का
लगता जैसे जगमत ज्योति

बैजयंती माला है लटके
पैर में पैजनिया बाजे
केसर तिलक शोभे सिर पे
कमर में करधनी साजे

कान में कुंडल,आँखों में काजल,
और होठों पे है लाली
मोर पंख के साथ है खिलती
सिर पे ये पगड़ी निराली

काली-काली लटों के बीच
श्यामल-सा ये मुखड़ा
जैसे सूरज चमक रहा हो
और पीछे बादल का टुकड़ा

मंद-मंद मुस्काए कान्हा,
वंशी बजाये मीठे गीत
मादक मुरली सुनके राधा
आ गयी तोड़ जगत के रीत.

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जय जगन्नाथ



जगत के नाथ जनन्नाथ
जग दर्शन को हैं निकले आज
ये दिन बड़े ही दुर्लभ होते
दौड़ पडो छोड़ सब काज

भक्त वत्सल भगवान
मंदिर से निकल आये हैं
दया,करुणा ,वत्सलता
सब पर ही बरसाए हैं

एक बार जो कर ले दर्शन
कोटि जन्म के पाप कट जाए
खींच लिया जो रस्सा रथ का
जन्म-मृत्यु की रस्सी कट जाए

प्रभु ले नखरे
भक्त की ठिठोली
शरारतें प्रभु की
भक्त की बोली

कभी वो रथ पर ही
नही आते
कभी चलते-चलते
रुक जाते

अगर दर्शन देना चाहते कहीं
तो फिर प्रभु वही रुक जाते
आज भक्त भगवान के पास नही
भगवान भक्त के पास हैं आते

ऐसी ही लीलाएं प्रभु की
सुलभ होती सबके लिए
जगन्नाथ आज निकले हैं
दाऊ,सुभद्रा को साथ लिए.

जय जगन्नाथ!जय बलदेव! जय सुभद्रा!

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सुन्दर-सुन्दर कृष्ण कन्हैया
हाथ में वंशी,साथ में गैया

दाऊ पुकारे कह के कान्हा
लल्ला कहती है उनकी मैया

जीवन की धूप में है छैंया
भवसागर की है वो ही नैया

मटकी फोड़ी,माखन भी लूटा
उसपे ये नखरे हाय दैया

मन का मीत,जन्मों का साथी
राधारानी का है वो सैंया

सुन्दर-सुन्दर कृष्ण कन्हैया
हाथ में वंशी,साथ में गैया
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लल्ला मेरा

पाँच साल का लल्ला मेरा
जा रहा है मधुवन में
गैया नही, बछड़े है साथ
बछड़े ही चरायेगा न बचपन में

सखाओं से घिरा है वो
दाऊ भी हैं उसके संग
ऐसे सज रहा है वो जैसे
तारों में सजे चाँद का रंग

बछड़े चर रहे हैं और
ये खेल खेलते हैं
कभी लल्ला को पकडते हैं
तो कभी गले मिलते हैं

कभी फूल तोडते हैं ये
तो कभी फूलों की माला बनाते हैं
कभी पत्ते से सजते हैं
कभी लल्ला को माला पहनाते हैं

खेलते-खेलते थक गए
उन्हें अब भूख सता रही है
दोपहर का समय है
उन्हें अब कलेवा बुला रही है

पेड़ के नीचे बैठ गए सारे
लेकर अपनी-अपनी पोटलियाँ
कोई हाथ पे ही खाना परोस रहा
तो कोई ला रहा है पत्तियां

लल्ला को मैया ने दिया है
दही-भात का कटोरा
मिल बाँट के सबने खाया
किसी को नही किसी ने छोड़ा

ऐसे ही अटखेलियाँ करते
लल्ला लौट रहा है घर को
वही श्यामल-सी रंगत,मोहिनी सूरत
और सजी है वंशी उसके अधर को.
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हर रिश्ते हैं खोखले
माया की बिछायी जाल
नातों में उलझाकर
ठगनी चलती है चाल

हर चीज है क्षणिक
क्षणिक मिलन,क्षणिक जुदाई
फंसकर इसमें करते हम
जन्म-जन्मांतर तक भरपाई

हर सुख यहाँ का
दुःख की जड़ निकलता है
फिर भी जाने क्यों मानव
सुख देख फिर फिसलता है

दुनिया में दिल लगाता है
टूटना तो था ही,
फिर बैठ आँसू बहाता है
टूटे दिल को जोडने के लिए
नासमझ इंसान,
फिर किसी और को आजमाता है

दिल की तो फितरत ही है
लगाना
लगाने को ही दिल मिला है
पर सबका दिलवर एक ही है
कृष्णा
लगानेवाले को मिला सिला है

दिल लगाना है तो कृष्णा से लगा
प्यार करना है तो उससे कर
उसके लिए गा,उसके लिए नाच
निहारना ही है तो निहार उसे जी भर

जो भी दिल में हो तेरे
हर आरजू पूरा कर
यहाँ भी आनंद है देख तो
कृष्णा को केंद्र में रखकर
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साँवरे की इन अंखियों को देख
नीगोरी अँखियाँ भी भर आयी हैं
जाने क्यों अब तक हमने ये
अँखियाँ कहीं और लगाई हैं

इन कजरारी अंखियों में
सारी दुनिया ही तो समाई है.
फिर भी हमने क्यों अपनी
अलग एक दुनिया बसाई है.

ये ओंठ जैसे कह रहे हो
अब जा मेरे पास
यूँ ठोकरे खा
तेरा रिश्ता मुझसे खास

खास ही तो है वो पिता हैं हमारे
हमने अपने सम्बन्ध हैं बिसारे
पर वो अभी भी रिश्ते को निभाते
सदा हमारे लौटने की बाट निहारे.

आज जो ये पीड़ा हो रही दूरी की
वो किसी अपने के लिए ही होता है
दिल तब ही तड़पता है यूँ बेबस
जब गहरा रिश्ता कोई खोता है

मेरी तड़प बढ़ा रही ये तेरी आँखें
मुझे बुला रहे तेरे मासूम अधर
आत्मा बेचैन है लोटने को कान्हा
अब बता भी दे तेरे चरण हैं किधर





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तेरी मुरलिया तेरी बाँसुरिया
कान्हा तेरी ये मनहर मुस्कान
कैसे संभाले खुद को बावरिया
उसके तो निकल रहे हैं प्राण

तेरी ये मुरली की धुन
बड़ी बेदर्द है वो मनबसिया
करे ठिठोली ये तो हमसे
तेरी तरह ही है ये भी रसिया

कान पड़े तो सुध बुध बिसराई
सुनूँ फ़िर तड़पूं घड़ी - घड़ी
सुनूँ तो हर्ष से , सुनूं तो
विरह में गिरे आँखों से लड़ी

ऐसी मनमोहनी छवी तुम्हारी
जिससे कहाँ कोई बच पाए
देख ली जिसने सांवली सूरतिया
फिर कहाँ कोई सूरत उसको भाए
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प्रभु है आनंद के सागर
दुनिया है दुःख का रेगिस्तान
रेगिस्तान में ढूँढते हम
आनंद के मोती।

प्रभु हैं उजाला
ये दुनिया है अन्धकार
अन्धकार में कहाँ मिले
आशा की ज्योति।

प्रभु से दूर दौड़ रहे थे
और खुशी ढूंढ रहे थे
मिलती तो तभी खुशी
जब यहाँ वो होती ।

सुख की खोज में जब भागते-भागते
जब जिंदगी गुजर गयी
तब जाके पता चला
हम जिधर दौड़ रहे थे
वो दिशा ही उल्टी थी।

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भगवान आते हैं इस धरा पर

भक्तों के उद्धार के लिए.

वरना उनकी एक भृकुटी ही

काफी है दुष्टों के संहार के लिए.


प्रभु भाव के भूखे हैं

और प्यार की हैं उन्हें प्यास

भक्तों से प्रेम का विनिमय करने

वो खुद भी जाते भक्तों के पास


जिनके अंदर है समाये जाने

कितनी पृथ्वी,कितने आकाश

उस विभु प्रभु को भी रख लेता

अपने ह्रदय में उनका दास


जिन्होंने गजेन्द्र के बंधन खोले

जिनका नाम ही कर दे पाप का नाश

वो नटवर भी खोल पाते हैं

मैया यशोदा का वो प्रेम का पाश


प्रेम के लिए प्रभु तो

क्या नही कर जाते हैं

कभी व्रज में माखन चुराते हैं

कभी मैया की मार खाते हैं.


कभी गोपियों को वो तडपाये

कभी गोपियाँ उन्हें नचाये

इस आनंद घन को छूकर

हर कोई आनंदित हो जाए.


उनके प्रेम को पीकर

कोई प्यास नही रह जाती है

हर आशा,हर तृष्णा

सदा के लिए मिट जाती है.

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ये जगत नही है घर मेरा

मुझे अपने घर बुला ले श्याम

मेरी जिंदगी तेरी सेवा फिर

इस जग में मेरा क्या काम


खोखले रिश्तें,झूठे नाते

पग-पग पर माया का बाजार लगा.

बाँध कर इन रिश्ते-नातों में

खुद को मैंने कहाँ-कहाँ नही ठगा


बहुत हुई ये ठगी-ठगाई

अब तो पास बुला ले कन्हाई

तोड़कर अपने सब बंधन

अब तेरे साथ बंधने मै आई


हार चुकी मै अलग हो तुमसे

तेरे बिना मुश्किल अब जीना

हँसना तो मै भूल चुकी पर अब

तो रोना चाहूँ पर आये रोना.


गलती मेरी कि मैंने घर छोड़ा

पर छूटे का अब थाम ले हाथ

जान चुकी मै कि कोई नही मेरा

एक अकेले तुम ही हो मेरे नाथ


तेरे नाम में बस मिले आराम

दिल को भाये एक तेरा धाम

ये जगत नही है घर मेरा

मुझे अपने घर बुला ले श्याम

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सौदा सस्ता है

देख-देख दुनिया के तमाशे

आँखें मेरी थक गयी

बह-बह के आँसू अब तो

वो भी रुक गयी


क्या करूँ इन अखियों का

जिनमे तू नजर आये

ऐसी अंखियों से तो अच्छा

कोई इन्हें ले जाए


अंखियों के बिना कहते

सब दिखता है काला

काला ही तो हैं

तू भी मुरलीवाला


तो ले ले मेरी ये अँखियाँ

गर बिन अंखियों के तू नजर आये

तेरे लिए एक क्या

हर जन्म की हर अँखियाँ जाए.


हर कुछ लुटा कर भी तू नजर आये

सब कुछ गवां के भी तू मिल जाए

तो भी वो बेहतर रास्ता है

तो भी ये सौदा सस्ता है.

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सुना है इस दुनिया से दूर
एक अलग दुनिया है तेरी
जहाँ न दुःख है न आँसू है
खुशियों से भरी दुनिया है तेरी

तेरी दुनिया इतनी खूबसूरत है
तो हम उससे इतने दूर क्यों हैं
तू आनंद का सागर
फिर हम इतने मजबूर क्यों हैं

मुझे पता है इसका जवाब
ये गलती भी हमने की है.
हम उसके भी काबिल नही
जितनी कान्हा ने दी है.

हमें थी चाहत एक
अलग दुनिया बनाने की
हमें हुई थी तमन्ना
बाप से अलग घर बसाने की.

औकात नही थी पर
चले थी अलग एक हस्ती बनाने को
पता ही नही था कि
माया खड़ी है हमारी हस्ती मिटाने को

खा-खा के माया के थपेड़े
जर्जर हो गया है ये दिल
अब तो दिल भी यही कहता
कन्हैया जल्दी से मुझे मिल

गलती का अह्सास हो गया
पर सुधारने की काबलियत मुझमे नही
जिस कारण तुझसे दूर हूँ इतनी
तू ही कर सकता उस गलती को सही.

जैसी भी हूँ तेरी ही हूँ
कही और नही मेरा ठिकाना
अब तेरी मर्जी है कान्हा
ठुकराना या चरणों से लगाना
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निर्मल नशा है तेरा नाम प्रभु

जो भक्त के सिर चढ बोले

कभी प्रेम में वो नाचे-गाये तो

कभी विरह में वो रो ले.


नाम में ही उन्हें प्रभु

दर्शन दे जाते हैं

नाम से जिह्वा पे

प्रभु को वो नचाते हैं.


बातें होती हो उनकी

ऐसा होता है कोई दिन

प्रभु और उनका नाम एक ही

नाम से कहाँ हैं प्रभु भिन्न


नाम है शुरुआत भक्ति की

और नाम पे ही है अंत

नाम ही दिखलाता है प्रभु का

धाम,रूप और लीलाएं अनंत


नाम से प्रेम भक्त को

प्रभु प्रेम तक ले जाए

क्योंकि कलयुग में प्रभु

नाम रूप में ही हैं आये.


चढ जाए तो उतरे नही

ऐसा नशा ये नाम का है

आँखों में जो बस जाए

ऐसा जलवा श्याम का है.

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हर क्षण प्रभु की कृपा बरस रही है
कोई आनंद से सराबोर हो रहा है.
तो कोई माया की छतरी लिए
अभी भी कही किसी ओट में खडा है.

हर एक पर कृपा है प्रभु की
नही मिली तो ये हमारी कृपणता है.
उनकी कृपा का बादल तो कभी
कोई घर देख कर नही बरसता है.

कण-कण में भगवान हैं
बस महसूस करने की बात है.
मूँद रखी हैं हमने आँखें
और कहते हैं कि रात है.

कमी है हमारे ही अंदर और
हम दोष उनपे लगा जाते हैं.
हाथें हमने खींच रखी है और
कहते वो हाथ नही मिलाते हैं.

वो तो कब से हैं बेचैन कि
कब जायेंगे हम उनके पास.
हमने खो दी है उन पर से श्रद्धा
पर उन्होंने छोड़ी नही है अब भी आस.

बड़े प्यारे हैं प्रभु
प्यार करके तो देख.
दौड़े आयेंगे वो पास तेरे
तू बढ़ा तो कदम एक.


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लीलाधर की लीला

समझ पाना बड़ा मुश्किल है.

समझना है उनको गर तो

दे दो उनको ये जो दिल है.


ध्यान से भी समझ न आये

ज्ञान से भी परे हैं वो.

उसको ही वो दरस दिखाते

भक्ति से उनको भजता है जो.


आँसू से जिसने चरण पखारे

विरह वेदना से किया श्रृंगार.

फिर कहाँ रुक पाते पाँव प्रभु के

दौड़े आते हैं वो भक्त के द्वार.


खट्टा - मीठा, कड़वा - नमकीन

व्यंजन से नही है उनको सरोकार.

बस भाव के ही तो भूखे हैं कृष्णा

बस परसों उनको अपना प्यार .


चंचल चितवन,मोहिनी सूरत

अधर पे नाचे वंशी की तान .

मुस्कान उनकी सुन्दर है इतनी

कि बसते उसमे भक्त के प्राण.


पाने को इनका, है सहज तरीका.

छोड़ के सबकुछ,बन जा बस इनका.


आगे की सोच न पीछे की सोच

तेरा सब बोझ अब बोझ है इनका.


घोंसला भी इनकी,बच्चा भी इनका

जोडेंगे ये ही अब घोंसले का तिनका.







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भगवान

कहते है लोग मिलते
नही है भगवान सरलता से

कभी पुकार कर तो देखो
माँ की व्याकुलता से

ढूंढ़ कर तो देखो शराबी की
तड़प और आकुलता से

विश्वास कर के तो देखो
एक सति की दृढ़ता से

बात जोह कर तो देखो
मिलन की अधीरता से

फ़िर देखो कैसे नही
मिलते हैं भगवान
वो तो बैठे है अंदर ही हमारे
हम तो हैं बस इससे अनजान
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प्रेम

प्रेम की हर पराकाष्ठा तो

दर्शा गए हैं कृष्ण कन्हैया

माँ-बेटे का प्रेम दिखाया

चाहे देवकी हो या यशोदा मैया


राधा से प्रेम के लिए

वो तो है जग - जाहिर

हर रिश्ते को निभाने में

रहे हैं वो माहिर


रुक्मणी को भी दिए

उसके अधिकार सारे

सबको प्यार दिया

जिसके भी थे वो प्यारे


द्रोपदी की लाज बचायी

जब थी वो संकट में घोर

उस समय उसकी नैया थामी

जब दिया था सबने भँवर में छोड़


मित्रता की मशाल दे गए

वो सुदामा संग निभाकर

कोई कर नही पाया ऐसा मित्र-प्रेम

आज तक उससे आगे जाकर


अर्जुन से इतना प्रेम कि

दे गए गीता का ज्ञान

इसमे छुपा था प्रेम मानव - मात्र से

जिसका होता है अब भान


विदुर की साग खाई

प्रेम में आकर

जो चले गए वो

दुर्योधन का मेवा ठुकराकर


मीरा की अखंड भक्ति की

भी रखी थी मर्यादा

सबसे प्रेम करे वो एक- सा

किसी से कम, किसी से ज्यादा


जिस - जिस ने उसने प्रेम किया

वो भी है महान

जिससे उन्होंने प्रेम करा

उनका क्या करूँ बखान


प्रेम कर तो कृष्णा से कर

कृष्णा की तरह कर

प्रेम कर तो बस उससे कर

बस टूटकर प्रेम कर

कर आगे - पीछे सोचकर

प्रेम कर सब छोड़कर

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