साँवरे की इन अंखियों को देख
नीगोरी अँखियाँ भी भर आयी हैं
जाने क्यों अब तक हमने ये
अँखियाँ कहीं और लगाई हैं

इन कजरारी अंखियों में
सारी दुनिया ही तो समाई है.
फिर भी हमने क्यों अपनी
अलग एक दुनिया बसाई है.

ये ओंठ जैसे कह रहे हो
अब जा मेरे पास
यूँ ठोकरे खा
तेरा रिश्ता मुझसे खास

खास ही तो है वो पिता हैं हमारे
हमने अपने सम्बन्ध हैं बिसारे
पर वो अभी भी रिश्ते को निभाते
सदा हमारे लौटने की बाट निहारे.

आज जो ये पीड़ा हो रही दूरी की
वो किसी अपने के लिए ही होता है
दिल तब ही तड़पता है यूँ बेबस
जब गहरा रिश्ता कोई खोता है

मेरी तड़प बढ़ा रही ये तेरी आँखें
मुझे बुला रहे तेरे मासूम अधर
आत्मा बेचैन है लोटने को कान्हा
अब बता भी दे तेरे चरण हैं किधर





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Comments

  • hare krishna very nice line god bless u

  • Nice poem.
  • Hare Krishna!
    Very nice poem!
  • wah wah pankhuri ji..
    bahut bhadiya kavita likha hai aapne..
    Kanha hamesha aapko khush rakhe..
    hare krsna..
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