प्रेम

प्रेम की हर पराकाष्ठा तो

दर्शा गए हैं कृष्ण कन्हैया

माँ-बेटे का प्रेम दिखाया

चाहे देवकी हो या यशोदा मैया


राधा से प्रेम के लिए

वो तो है जग - जाहिर

हर रिश्ते को निभाने में

रहे हैं वो माहिर


रुक्मणी को भी दिए

उसके अधिकार सारे

सबको प्यार दिया

जिसके भी थे वो प्यारे


द्रोपदी की लाज बचायी

जब थी वो संकट में घोर

उस समय उसकी नैया थामी

जब दिया था सबने भँवर में छोड़


मित्रता की मशाल दे गए

वो सुदामा संग निभाकर

कोई कर नही पाया ऐसा मित्र-प्रेम

आज तक उससे आगे जाकर


अर्जुन से इतना प्रेम कि

दे गए गीता का ज्ञान

इसमे छुपा था प्रेम मानव - मात्र से

जिसका होता है अब भान


विदुर की साग खाई

प्रेम में आकर

जो चले गए वो

दुर्योधन का मेवा ठुकराकर


मीरा की अखंड भक्ति की

भी रखी थी मर्यादा

सबसे प्रेम करे वो एक- सा

किसी से कम, किसी से ज्यादा


जिस - जिस ने उसने प्रेम किया

वो भी है महान

जिससे उन्होंने प्रेम करा

उनका क्या करूँ बखान


प्रेम कर तो कृष्णा से कर

कृष्णा की तरह कर

प्रेम कर तो बस उससे कर

बस टूटकर प्रेम कर

कर आगे - पीछे सोचकर

प्रेम कर सब छोड़कर

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Comments

  • Beautiful. Excellent. Your poems are worth reading. Keep sharing.
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