आजाद होना है तो हमें तो
कृष्णा का दास बनना होगा
क्योंकि वो हैं ही एक मात्र स्वतंत्र
उनसे ही हमें जुडना होगा.
उनका दास बनना
इस जगत की तरह नही
ये तो ऐसी ऊँची पदवी है
जैसे यहाँ मालिक की भी नही.
हमारे कन्हैया तो ऐसे मालिक है
जो सेवक के सेवक बन जाते हैं .
लक्ष्मी जिनके पैर दबाये वो प्रभु
कैसे पार्थसारथी भी कहलाते हैं.
जो जितनी उनकी सेवा करता
वो उतना ही सुकून पाता है.
वो प्रतिक्षण उनका गान करता
भौतिक बंधन से छूट जाता है.
ये माया ही तो बंधन है
प्रभु का सानिध्य है आजादी
प्रभु के बिना माया को पार पाना
ये तो है बस वक्त की बर्बादी.
स्वतंत्रता का मतलब है
जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना.
इस चक्र से मुक्ति दिला सकते हैं मुकुंद
इसके लिए हमें उनका ही होना होगा.
भगवान आते हैं इस धरा पर
भक्तों के उद्धार के लिए.
वरना उनकी एक भृकुटी ही
काफी है दुष्टों के संहार के लिए.
प्रभु भाव के भूखे हैं
और प्यार की हैं उन्हें प्यास
भक्तों से प्रेम का विनिमय करने
वो खुद भी आ जाते भक्तों के पास
जिनके अंदर है समाये जाने
कितनी पृथ्वी,कितने आकाश
उस विभु प्रभु को भी रख लेता
अपने ह्रदय में उनका दास
जिन्होंने गजेन्द्र के बंधन खोले
जिनका नाम ही कर दे पाप का नाश
वो नटवर भी न खोल पाते हैं
मैया यशोदा का वो प्रेम का पाश
प्रेम के लिए प्रभु तो
क्या नही कर जाते हैं
कभी व्रज में माखन चुराते हैं
कभी मैया की मार खाते हैं.
कभी गोपियों को वो तडपाये
कभी गोपियाँ उन्हें नचाये
इस आनंद घन को छूकर
हर कोई आनंदित हो जाए.
उनके प्रेम को पीकर
कोई प्यास नही रह जाती है
हर आशा,हर तृष्णा
सदा के लिए मिट जाती है.
ये जगत नही है घर मेरा
मुझे अपने घर बुला ले श्याम
मेरी जिंदगी तेरी सेवा फिर
इस जग में मेरा क्या काम
खोखले रिश्तें,झूठे नाते
पग-पग पर माया का बाजार लगा.
बाँध कर इन रिश्ते-नातों में
खुद को मैंने कहाँ-कहाँ नही ठगा
बहुत हुई ये ठगी-ठगाई
अब तो पास बुला ले कन्हाई
तोड़कर अपने सब बंधन
अब तेरे साथ बंधने मै आई
हार चुकी मै अलग हो तुमसे
तेरे बिना मुश्किल अब जीना
हँसना तो मै भूल चुकी पर अब
तो रोना चाहूँ पर आये न रोना.
गलती मेरी कि मैंने घर छोड़ा
पर छूटे का अब थाम ले हाथ
जान चुकी मै कि कोई नही मेरा
एक अकेले तुम ही हो मेरे नाथ
तेरे नाम में बस मिले आराम
दिल को भाये एक तेरा धाम
ये जगत नही है घर मेरा
मुझे अपने घर बुला ले श्याम
देख-देख दुनिया के तमाशे
आँखें मेरी थक गयी
बह-बह के आँसू अब तो
वो भी रुक गयी
क्या करूँ इन अखियों का
जिनमे तू नजर न आये
ऐसी अंखियों से तो अच्छा
कोई इन्हें ले जाए
अंखियों के बिना कहते
सब दिखता है काला
काला ही तो हैं न
तू भी मुरलीवाला
तो ले ले मेरी ये अँखियाँ
गर बिन अंखियों के तू नजर आये
तेरे लिए एक क्या
हर जन्म की हर अँखियाँ जाए.
हर कुछ लुटा कर भी तू नजर आये
सब कुछ गवां के भी तू मिल जाए
तो भी वो बेहतर रास्ता है
तो भी ये सौदा सस्ता है.
निर्मल नशा है तेरा नाम प्रभु
जो भक्त के सिर चढ बोले
कभी प्रेम में वो नाचे-गाये तो
कभी विरह में वो रो ले.
नाम में ही उन्हें प्रभु
दर्शन दे जाते हैं
नाम से जिह्वा पे
प्रभु को वो नचाते हैं.
बातें न होती हो उनकी
ऐसा न होता है कोई दिन
प्रभु और उनका नाम एक ही
नाम से कहाँ हैं प्रभु भिन्न
नाम है शुरुआत भक्ति की
और नाम पे ही है अंत
नाम ही दिखलाता है प्रभु का
धाम,रूप और लीलाएं अनंत
नाम से प्रेम भक्त को
प्रभु प्रेम तक ले जाए
क्योंकि कलयुग में प्रभु
नाम रूप में ही हैं आये.
चढ जाए तो उतरे नही
ऐसा नशा ये नाम का है
आँखों में जो बस जाए
ऐसा जलवा श्याम का है.
लीलाधर की लीला
समझ पाना बड़ा मुश्किल है.
समझना है उनको गर तो
दे दो उनको ये जो दिल है.
ध्यान से भी समझ न आये
ज्ञान से भी परे हैं वो.
उसको ही वो दरस दिखाते
भक्ति से उनको भजता है जो.
आँसू से जिसने चरण पखारे
विरह वेदना से किया श्रृंगार.
फिर कहाँ रुक पाते पाँव प्रभु के
दौड़े आते हैं वो भक्त के द्वार.
खट्टा - मीठा, कड़वा - नमकीन
व्यंजन से नही है उनको सरोकार.
बस भाव के ही तो भूखे हैं कृष्णा
बस परसों उनको अपना प्यार .
चंचल चितवन,मोहिनी सूरत
अधर पे नाचे वंशी की तान .
मुस्कान उनकी सुन्दर है इतनी
कि बसते उसमे भक्त के प्राण.
पाने को इनका, है सहज तरीका.
छोड़ के सबकुछ,बन जा बस इनका.
आगे की सोच न पीछे की सोच
तेरा सब बोझ अब बोझ है इनका.
घोंसला भी इनकी,बच्चा भी इनका
जोडेंगे ये ही अब घोंसले का तिनका.
प्रेम की हर पराकाष्ठा तो
दर्शा गए हैं कृष्ण कन्हैया
माँ-बेटे का प्रेम दिखाया
चाहे देवकी हो या यशोदा मैया
राधा से प्रेम के लिए
वो तो है जग - जाहिर
हर रिश्ते को निभाने में
रहे हैं वो माहिर
रुक्मणी को भी दिए
उसके अधिकार सारे
सबको प्यार दिया
जिसके भी थे वो प्यारे
द्रोपदी की लाज बचायी
जब थी वो संकट में घोर
उस समय उसकी नैया थामी
जब दिया था सबने भँवर में छोड़
मित्रता की मशाल दे गए
वो सुदामा संग निभाकर
कोई कर नही पाया ऐसा मित्र-प्रेम
आज तक उससे आगे जाकर
अर्जुन से इतना प्रेम कि
दे गए गीता का ज्ञान
इसमे छुपा था प्रेम मानव - मात्र से
जिसका होता है अब भान
विदुर की साग खाई
प्रेम में आकर
जो चले गए वो
दुर्योधन का मेवा ठुकराकर
मीरा की अखंड भक्ति की
भी रखी थी मर्यादा
सबसे प्रेम करे वो एक- सा
किसी से कम, न किसी से ज्यादा
जिस - जिस ने उसने प्रेम किया
वो भी है महान
जिससे उन्होंने प्रेम करा
उनका क्या करूँ बखान
प्रेम कर तो कृष्णा से कर
कृष्णा की तरह कर
प्रेम कर तो बस उससे कर
बस टूटकर प्रेम कर
न कर आगे - पीछे सोचकर
प्रेम कर सब छोड़कर