प्रह्लाद महाराज कहते हैं: बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह जीवन के प्रारम्भ से ही अन्य सारे कार्यो को छोड़ कर भक्ति-कार्यो के अभ्यास में इस मानव शरीर का उपयोग करे | यह मनुष्य शरीर अत्यंत दुर्लभ है और अन्य शरीरो की भांति नाशवान होते हुए भी अर्थपूर्ण है, क्योकिं मनुष्य जीवन में ही भक्ति संपन्न की जा सकती है (6.1) | यह मनुष्य जीवन भगवद्धाम जाने का अवसर प्रदान करता है, अतैव प्रत्येक जीव को भगवान विष्णु के चरण-कमलों की भक्ति में प्रवृत होना चाहिए (6.2) | शरीर के सम्पर्क से इन्द्रियविषयों से जो सुख अनुभव किया जाता है, वह तो किसी भी योनी में उपलब्ध है | ऐसा सुख बिना प्रयास के उसी तरह स्वतः प्राप्त होता है, जिस प्रकार हमें दुख प्राप्त होता है (6.3) | केवल इन्द्रिय तृप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करना चाहिए क्योकि इसमें आयु की हानि होती है | अतैव इस संसार में रहते हुए बुद्धिमान मनुष्य को जब तक शरीर हष्ट-पुष्ट रहे, जीवन के परम लक्ष्य, भव-बंधन से मुक्ति के लिए प्रयास करना चाहिये (6.4-5) |
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Dear Devotee,PAMHO, AGTSP
प्रह्लाद महाराज कहते हैं: बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह जीवन के प्रारम्भ से ही अन्य सारे कार्यो को छोड़ कर भक्ति-कार्यो के अभ्यास में इस मानव शरीर का उपयोग करे | यह मनुष्य शरीर अत्यंत दुर्लभ है और अन्य शरीरो की भांति नाशवान होते हुए भी अर्थपूर्ण है, क्योकिं मनुष्य जीवन में ही भक्ति संपन्न की जा सकती है (6.1) | यह मनुष्य जीवन भगवद्धाम जाने का अवसर प्रदान करता है, अतैव प्रत्येक जीव को भगवान विष्णु के चरण-कमलों की भक्ति में प्रवृत होना चाहिए (6.2) | शरीर के सम्पर्क से इन्द्रियविषयों से जो सुख अनुभव किया जाता है, वह तो किसी भी योनी में उपलब्ध है | ऐसा सुख बिना प्रयास के उसी तरह स्वतः प्राप्त होता है, जिस प्रकार हमें दुख प्राप्त होता है (6.3) | केवल इन्द्रिय तृप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करना चाहिए क्योकि इसमें आयु की हानि होती है | अतैव इस संसार में रहते हुए बुद्धिमान मनुष्य को जब तक शरीर हष्ट-पुष्ट रहे, जीवन के परम लक्ष्य, भव-बंधन से मुक्ति के लिए प्रयास करना चाहिये (6.4-5) |
हरे कृष्णा ,
आपका सेवक