Hare Krshn revered devotees!
All glories to Srila Prabhupada!
I'm in a very confusing state while reading to Beyond Birth & Death. I started and while reading somehow i started searching online about topics like "Whom Shiva Meditates upon?" & later I found that Brahma is the only Supreme. That very moment my confusion started.
I used to know, being from a religious family that Vishnu is in his deep sleep while conscious and Shiva meditates upon Vishnu being supreme. As its also mentioned many a times by Goswami TulsiDas in his RamCharitManasa.
I also read somewhere that Geeta has been DOCTORED by ISKCON to prove its aim in making Krshn's followers around the globe, which I don't believe knowing Krishna teaches Arjuna about Him be the Supreme.
He, I just recalled smply says, I am the cause of all causes and responsible for the fruits of your all works. Now, he further says that I'm the one who is recalled in YAGNAS and without me they are not complete being the fact that, Krshn is never recalled in any YAGNAS(as far my little knowledge is), only VISHNU is recalled and he is IMPORTANT to be a part of all the YAGNAS.
Also, while reading Sunderkand, a part of RamCharitManas(at the same time around of Shri Chaitanya Mahaprabhu), in the instance when Vibhishana comes tom Lord Ram after being thrown from Lanka, he was stopped by monkeys and Sugreev. Then Lord Ram tells
सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ।।
जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवे सभय सरन तकि मोही।।
तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना।।
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा।।
सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी।।
समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं।।
अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें।।
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें।।
दो0- सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम।।48।।
–*–*–
[http://ramayan.wordpress.com/2006/07/24/sunderkand/]
Now, when Lord Ram is telling that I who's shelter one takes is blessed and even Lord Shiva is telling that everyone who worships none other than RAM is Asura, Ram became ONE and All.
My questions are:
1. Weather Krshn turned to VISHNU while preaching to Arjun?
2. WHo Shiva meditates upon?
3. Who Vishnu meditates upon?
4. Who Bramha meditates upon as he is also in meditation everytime?
5. If Ram is One and All why he is overcome by Krshn?
6. if Krshn is one why only Vishnu is rememebered in YAGNAS?
Please enlighten me. I'm so ignorant to understand the pure deepest knowledge but I'm still trying to survive in this MAYA and devote more to most merciful Krshn.
Thank you.
Hare Krshn!
Replies
yes prabhu
Ram , Narayan , Krishna is the same person ... we are trying to split , so this confusion appears
जिनकी रही भावना जैसी प्रभु मुरति देखि तिन तैसी ।
--- Prabhu ji , Sri Ram , Sri Krishna and Sri Vishnu are same tattva , one person , same supreme Lord ..
he is not different only the bhava is different , just like Goswami ji tells in Baal Kaand according to the bhava of the devotees Lord appears to his devotees , according to sampradaya they call their presiding deity as source of all incarnations . Sri Vaishnava tell : Sriman Narayan is source of all the incarnations , Ramananda Sampradaya (Goswami Tulsidas's sampradaya) tells Raghavendra Sarkar as source of all the incarnations , Gaudiya vaishnavas tell Krishna is source of all the incarnations.
Not only ISKCON / Gaudiya vaishnavas , every sampradaya has proof from sastra where they present their lord (either Ram / Krsna / Vishnu) is source of all the incarnations.
Only 5th chapter of Brahma Samhita is found. Many chapters missing . I got information from one devotee that there is specific verse even in Brahma Samhita where Brahma ji has confirmed that Sri Ram is the original source of all the incarnations.
We read Bhagvata , Ramayana , Ram Charit Manas , and the conclusion from all this sastra is to surrender to Lord Hari . In bhagvata 10th chapter (look at Krishna book's first chapter) Srila Prabhupada writes that : when Kamsa came to know that Lord Vishnu is comming to this world , and also lord Vishnu's sister (yogmaya) was also incarnating Kamsa was fearful . Here name Vishnu is mentioned because Krsna and Visnu person is same , bhava may be different , but it does not means that either Vishnu is greater than Krsna / Krsna is greater than Vishnu.
In Ram Charita Manas when Sugriv comes to lord Ram , lord says that now even Brahma and Siva cant save Baali from my anger. We know in our Hindu society , we have concept of trinity (Brahma , Vishnu , Mahesh) .. lord has mentioned name of Brahma and Siva but not of Vishnu because he is Vishnu himself , he is the supreme controller , cause of all the causes .
I was too confused initially , I then studied Ramananda sampradaya , Ramanuja Sampradaya , ISKCON itself , i got conclusion they are talking about the same lord Hari who is known as (vishnu , ram , krishna , govinda ...) . I dont care who is supreme among them because he is the same person , bhava may be different , he is same person but at the same time he can reside at Goloka , Saketa , unlimited Vaikunthas and perform different pastimes with his intimate devotees. Because he is unlimited , his names are unlimited , his janma and karma is also unlimited.
Hare Krishna Prabhuji,
भगवान कौन हैं ?
हमारे ब्रहमांड में ब्रह्मा जी आदि जीव है जो (गर्भोदकशाई) विष्णु के नाभि कमल से उत्पन्न हुए | सैंकड़ो दिव्य वर्षों की तपस्या के बाद उनके हृदय में भगवान प्रकट हुए तथा वे शेष नाग की शैय्या पर लेटे हुए भगवान को देख पाये | भगवान ने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी को श्रीमदभागवतम का सार 4 श्लोक में (चतु:श्लोकी) प्रदान किया |
भगवान कहते है: हे ब्रह्मा, वह मै ही हूँ जो श्रृष्टि के पूर्व विद्धमान था, जब मेरे अतिरिक्त कुछ भी नहीं था तब इस श्रृष्टि की कारण स्वरूपा भौतिक प्रकृति भी नहीं थी जिसे तुम अब देख रहे हो वह भी में ही हूँ और प्रलय के बाद भी जो शेष रहेगा वह भी में ही हूँ (S.B.2.9.33) | हे ब्रह्मा जो भी सारयुक्त प्रतीत होता है, यदि वह मुझसे सम्बंधित नहीं है तो उसमें कोई वास्तविकता नहीं है | इसे मेरी माया जानो, इसे ऐसा प्रतिबिम्ब मानो जो अंधकार में प्रकट होता है (S.B. 2.9.34) | हे ब्रह्मा तुम यह जान लो की ब्रह्माण्ड के सारे तत्व विश्व में प्रवेश करते हुए भी प्रवेश नहीं करते है | उसी प्रकार मैं उत्पन्न की गयी प्रत्येक वस्तु में स्थित रहते हुए भी साथ ही साथ प्रत्येक वस्तु से पृथक रहता हूँ (S.B. 2.9.35) | हे ब्रह्मा जो व्यक्ति परम सत्य रूप श्री भगवान की खोज में लगा हो उसे चाहिये की वह समस्त परिस्थतियों में सर्वत्र और सर्वदा प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से इसकी खोज करे (S.B. 2.9.36) |
हृदय में ज्ञान उदय होने के बाद ब्रह्मा जी कहते है (ब्रह्म संहिता 5.1):
ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानन्द: विग्रह:, अनादिरादि गोविन्द: सर्व कारण कारणम: | (भगवान तो कृष्ण है, जो सच्चिदानन्द (शास्वत,ज्ञान तथा आनन्द के) स्वरुप है | उनका कोई आदि नहीं है , क्योकि वे प्रत्येक वस्तु के आदि है | वे समस्त कारणों के कारण है ) |
ब्रह्मा जी कहते है: जो वेणु बजने में दक्ष है, खिले कमल की पंखुरियों जैसे जिनके नेत्र है, जिनका मस्तिक मोर पंख से आभूषित है, जिनके अंग नीले बादलों जैसे सुन्दर है, जिनकी विशेष शोभा करोड़ों काम देवों को भी लुभाती है, उन आदिपुरुष गोविन्द का मैं भजन करता हूँ (ब्रह्म संहिता 5.30) | वे आगे कहते है: मै उन आदि भगवान गोविंद की पूजा करता हूँ, जो अपने विविध पूर्ण अंशो से विविध रूपों तथा भगवान राम आदि अवतारों के रूप में प्रकट होते है किन्तु जो भगवान कृष्ण के अपने मूल रूप में स्वयं प्रकट होते है (ब्रह्म संहिता 5.39) | ब्रह्मा जी ने ब्रह्म संहिता में प्रत्येक श्लोक के अंत में लिखा है : आदिपुरुष गोविन्द का मैं भजन करता हूँ | ब्रह्माजी अपने लोक में भगवान गोविंद की पूजा अठारह अक्षरों वाले मन्त्र से करते हे जो इस प्रकार है: क्लिम कृष्णाय गोविन्दाय गोपिजन्वल्लाभय स्वाहा |
श्री कृष्ण सर्व आकर्षक तथा समस्त आनंद के श्रोत हैं, वे षड-एश्वेर्य पूर्ण अर्थात (असीमित) ज्ञान, धन, बल, यश, सोन्दर्य तथा त्याग से युक्त हैं l श्री कृष्ण परम ईश्वर,परम पुरुष,परम नियंता, समस्त कारणों के कारण है यही परम सत्य है | श्री कृष्ण समस्त यज्ञों तथा तपस्याओ के परम भोक्ता, समस्त लोको तथा देवताओ के परमेश्वर है (B.G.5.29) | श्री कृष्ण की शक्ति से ही सारे लोक अपनी कक्षाओ में स्थित रहते है (B.G.15.13) | ब्रह्मादि सहित सभी देवगण उनके नियंत्रण में कार्य कर रहे है जिस प्रकार नाक में रस्सी पड़ा बैल अपने स्वामी द्वारा नियंत्रित किया जाता है (S.B.4.11.27) | जिस प्रकार अग्नि का प्रकाश अग्नि के एक स्थान पर रहते हुए चारो और फैलता है उसी प्रकार भगवान की शक्तियां इस सारे ब्रह्मांड में फैली हुई है (बिष्णु पुराण 1.22.53) |
श्री कृष्ण ही भगवान है, जिनके तीन पुरुष अवतार है | सर्व प्रथम कारणोंदक विष्णु (महाबिष्णु) जिनके उदर में समस्त ब्रह्माण्ड हैं तथा प्रत्येक श्वास चक्र के साथ ब्रह्माण्ड प्रकट तथा विनिष्ट होते रहते है | दूसरा अवतार है; गर्भोदकशाई विष्णु जो प्रत्येक ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट करके उसमे जीवन प्रदान करते हैं तथा जिनके नाभि कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए | तीसरे अवतार है क्षीरोदकशाई विष्णु जो परमात्मा रूप में प्रत्येक जीव के हृदय में तथा श्रृष्टि के प्रत्येक अणु में उपस्थित हो कर श्रृष्टि का पालन करते है |
जिनके श्वास लेने से ही अनन्त ब्रह्मांड प्रवेश करते है तथा पुनः बाहर निकल आते है, वे महाविष्णु कृष्ण के अंशरूप है | अतः मै गोविंद या कृष्ण की पूजा करता हूँ जो समस्त कारणों के कारण है (ब्रह्म संहिता 5.48) | श्री कृष्ण विष्णु के रूप में उसी प्रकार विस्तार करते है जिस प्रकार एक जलता दीपक दूसरे को जलाता है यधपि दोनों दीपक की शक्ति में कोई अंतर नहीं होता तथापि श्री कृष्ण आदि दीपक के समान है (ब्रह्म संहिता 5.46) | कृष्ण स्वांश नारायण से भी श्रेष्ठ है क्योंकि उनमे 4 विशेष दिव्य गुण है: उनकी अद्भुत लीलाये, माधुर्य-प्रेम के कार्यकलापो में सदा अपने प्रिय भक्तो से घिरा रहना (यथा गोपियाँ), उनका अद्भुत सोन्दर्य तथा उनकी बाँसुरी की अद्भुत ध्वनि (C.C.Madhya Leela 23.82-84) |
श्रीमदभागवतम में सारे अवतारों के वर्णन के बाद सूतजी कहते है: उपर्युक्त परमेश्वर के ये सारे अवतार या तो भगवान के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश (कलाएँ) है, लेकिन श्रीकृष्ण स्वयं पूर्ण पुरोषत्तम भगवान (कृष्णस्तु भगवान्स्वयम) है | वे प्रत्येक युग में इन्द्र के शत्रुओ (असुरो) द्वारा उपद्रव किये जाने पर अपने विभिन्न स्वरूपों के माध्यम से जगत की रक्षा करने के लिए प्रकट होते है (S.B.1.3.28) |
जब जब धर्म की हानि होती है और पापकर्मों की वृद्धि होती है तब तब परम नियंता भगवान श्री हरि स्वेच्छा से स्वयं प्रकट होते है (S.B.9.24.56) | गीता (4.7) में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते है “हे भारत! जब जब और जहाँ जहाँ धर्म का ह्रास होता है और अधर्म की प्रधानता होती है तब तब मै स्वयं अवतार लेता हूँ ” |
शिवजी: जो व्यक्ति प्रकृति तथा जीवात्मा में से प्रत्येक के अधीष्ठाता भगवान कृष्ण के शरणागत हैं, वे वास्तव में मुझे अत्यधिक प्रिय हैं (S.B.4.24.28) | जो व्यक्ति अपने वर्णाश्रम धर्म को १०० वर्षो तक समुचित रीति से निभाता हे वह ब्रह्मा के पद को प्राप्त कर सकता हे | उस से अधिक योग्य होने पर वह मेरे पास पहुँच सकता हे | किन्तु भगवान का शुद्ध भक्त सीधा वैकुण्ठ में जाता हे , जबकि में तथा अन्य देवता इस संसार के संहार के बाद ही इन लोक को प्राप्त कर पाते हे (S.B.4.24.29) | हे भगवान, मेरा मन तथा मेरी चेतना आपके पूजनीय चरण-कमलो पर स्थिर रहती है जो समस्त वरों तथा इच्छाओ की पूर्ति के श्रोत होने के कारण समस्त मुक्त महामुनियो द्वारा पूजित है (S.B.4.7.29) |
नारद: मैं उन निर्मल कीर्ति वाले भगवान कृष्ण को नमस्कार करता हूँ जो अपने सर्व-आकर्षक साकार अंशों को इसलिए प्रकट करते है जिससे सारे जीव मुक्ति प्राप्त कर सके (S.B. 10.87.46)|
ब्रह्मा: हे प्रभु! यह सारा द्रश्य जगत आपसे उत्पन्न होता है, आप पर टिका रहता है और आपमें लीन हो जाता है | आप ही प्रत्येक वस्तु के आदि,मध्य तथा अंत है | जिस तरह पृथ्वी मिटटी के पात्र का कारण है ; उस पात्र को आधार प्रदान करती है और जब पात्र टूट जाता है तो अंतत: उसे अपने में मिला लेती है (S.B.8.6.10) | मै, शिवजी तथा सारे देवताओं के साथ साथ दक्ष जैसे प्रजापति भी चिंगारियां मात्र है जो मूल अग्नि स्वरुप आपके द्वारा प्रकाशित है (S.B.8.6.14) |
मैं उन सर्वमंगलमय भगवान कृष्ण को सादर नमस्कार करता हूँ जिनके यशोगान, स्मरण, दर्शन, वंदन, श्रवण तथा पूजन से पाप करने वाले के सारे पाप फल तुरंत नष्ट हो जाते है (S.B.2.4.15) |
वेदों में ज्ञान का परम लक्ष्य भगवान श्री कृष्ण (वासुदेव) है | यज्ञ करने का उद्देश्य उन्हें ही प्रसन्न करना है | योग उन्ही के साक्षात्कार के लिए है | सारे सकाम कर्म अंततः उन्ही के द्वारा पुरस्कृत होते है | सारी तपस्याये उन्ही को जानने के लिए की जाती है | उनकी प्रेमपूर्ण सेवा करना ही धर्म है और वे ही जीवन के परम लक्ष्य है (S.B.1.2.28-29) |
Hare Krishna
Hare Krshn prabhu!
Sorry I's on tour to Sri Ranngam organized by ISKCON HYD. Can u give me some reference online? Also, u meant 10th Canto or 10 cantos???
ur servant.
girish
HK Prabhu JI!
My questions are:
1. Weather Krshn turned to VISHNU while preaching to Arjun?
My conclusion : No, He, Krshn, is the supreme.
2. WHo Shiva meditates upon?
My conclusion : Krshn
3. Who Vishnu meditates upon?
My conclusion : YOGNINDRA, means meditation - calm. can you still elaborate please???
4. Who Bramha meditates upon as he is also in meditation everytime?
My conclusion : He is already surrendered. So upon Krshn he meditates.
5. If Ram is One and All why he is overcome by Krshn?
My conclusion : RAM says manyawhere, Goswami Tulsidas tellls, Come in my shelter - I will take care of you...
6. if Krshn is one why only Vishnu is rememebered in YAGNAS?
My conclusion : can you please throw light on it. Since Vishnu is remembered in all the YAGNAS and Krshn in GEETA is saying that I'm the feeder of the YAGNAS and without me YAGNAS can not happen. There is still contradiction...
Hare Krsna Prabhuji,
PAMHO.
There is no contradiction. It is appearing so because you are considering Vishnu to be different from Krsna. Krsna has expanded Himself as Vishnu in each universe. Its like how Prime Minister is the most powerful in a country, but Chief Minister is powerful in the state. If we can forget the different political parties they belong to, then Chief Minister is the energy of the source Prime Minister. THat way, Vishnu is the local authority. Therefore, He is invoked in all yagnas.
I hope I have been able to explain.
Haribol,
Your servant,
Rashmi
HK Mataji!
Hare Krshn Prabhu! I came to know that particular Vishnu who takes care of this earth gets the fruits of YAGNAS perfoemd in this earh and so ultimate fruit goes reaches to Krshna, the primeval lord.
right Mataji?
Only gaudiyas has translated the purports of brahma samhita as krsna to be the original n not all sampradayas.for sri sampradaya brahma samhita is 100 genuine but we believe vishnu to be original n krsna is only an avatar like rama n narasimha.vishnu mean not the one on milk ocean but the one is vaikuntha or spiritual abode.we do not believe in planets is spiritual world.For us there is only the spiritual world n not higher planet or lower planets like gaudiyas view it.For us goloka is higher than vaikuntha.
Spiritual world if unlimited with unlimited numbers of planets.
Because Krishna is Rasabihari. He enjoys in different moods with different types of Devotees.
Gaudiya Vaishnavas do not say Vaikuntha is lesser in importance or quality.
Indeed whole Srimad Bhagavatam explains Vaikuntha as made of original emeralds, golds, diamonds...
Where there are opulent palaces, the most beautiful residents with 4 arms...
There Lord Vishnu enjoys in opulence.
Where as Vrindavan is a very simple place. Where Krishna and His friends roll in grounds, they pasture cows, Krishna sometimes eats dirt, sometimes even steals...
Gopis are so simple that they ask pearls from their mothers. They wear simple sarees and decorations out of forest fruits and flowers.
There are no vimans, no huge palaces of diamond...
So these are the differences.
Devotee of Krishna may desire to serve Krishna in one of such planets. So accordingly Krishna reciprocates.
Krishna has 64 qualities - 4 extra qualities from His own other Forms like Vishnu or Narayana.
1. Krishna plays flute - Lord Vishnu does not, well He may play but He prefers not
2. Krishna is the most beautiful - Lord Vishnu is also so but not as much as Krishna, (But of course for a particular Devotee like Hanuman Lord Ram will be seen as the most beautiful One. So that is also correct.)
3. Krishna has very sweet pastimes. He steals butter, cries....Lord Vishnu usually do not have sweet childhood pastimes or so.
4. Rasa dance.
Your servant
Hare Krsna Prabhuji,
PAMHO.
Firstly, ISKCON has NOT doctored Srimad Bhagavad Gita. You can pick up any other version of Gita and see that the shlokas are the same. In fact, there was an instance where one of the earlier disciples had commented that the translation of some shloka is the same as what mayavadis have given. In reply, Srila Prabhupada said that the translation will be the same, it is the purports which differentiates his Gita from other versions of the Gita. This is very commonly stated in lectures in ISKCON.
Secondly, Google is NOT ALL KNOWING. If you turn to google to find out who is God, naturally you will be confused. I dont think there is any doubt that Brahma has appeared from the lotus, the stem of which emanates from the navel of Garbodhakshayi Vishnu. Therefore, Brahma cannot be God. Brahma has said the bhrahmasamhita - isvarah prama krsna sacchidanand vigrahah, anadir adi govinda sarva karanah karanam. Then he proceeds to speak the entire brahma samhita -each shloka ends with Govindam Adi Purusham Tam Aham Bhajami.
Now coming to Shiva - Shiva is the foremost vaishnava, this is mentioned in the Bhagavatam. He is meditating on Krsna/ Visnu.
Visnu is in sleeping posture - that is yoga nidra. There are 3 Vishnus - Karanodakshayi Vishnu, who enters each universe as Garbodhakshayi Visnu. From the navel of Garbodhakshayi Vishnu comes the lotus on which Brahma is born. Ksirodakshayi Vishnu is all prevelant as paramatma in every living and non living being in the universe.
Rama is an incarnation of Krsna. Krsna is the avatari, not an avatar. All the 3 Maha Vishnus come from Krsna. Just think, Rama appeared as the maryada purushottam. Do you think God can be bound in any maryada? His potency is way beyond the imagination of this universe. Rama has lesser qualities than Krsna. I will request someone else to give you the count of number of qualities, will not be able to tell you very clearly. Krsna has 64 qualities, Rama has 60 or 62, Visnu has 58 or 60...
I hope I have been able to clear your doubts somewhat.
Haribol,
Your servant,
Rashmi