Hare Krishna Dear Devotees
Please accept my humble obeciences .
All glories to Srila Prabupad,
I am looking for a reference verse which describes about 5 kind of Bhava or transcendental relationships with Sri Krsna- 1. Santa 2. Dasya 3. Sakhya 4. Vatsalya and 5. Madhurya.
I tried to google it but could not find. CC Madhya 19.214-235 describes about the mood of devotees in different bhav.I am looking for a one or two verse which talks about the 5 bhavas.
Hare Krishna
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Hare Krishna Prabhuji, dandavat
For your kind information please.
भक्ति के मुख्य रस :
भक्ति अर्थात भगवान पर विजय प्राप्त करना या भगवान को प्रसन्न करना | हम अपनी तुच्छ सुन्दरता, बल, धन, ख्याति, वैराग्य अथवा ज्ञान से भगवान को संतुष्ट नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास यह सब कुछ असीमित मात्रा में है | चैतन्य महाप्रभु द्वारा श्रील रूप गोस्वामी को दिए गए उपदेश में भक्ति के 5 रस अर्थात शान्त रस, दास्य रस, साख्य रस, वात्सल्य रस तथा माधुर्य रस का वर्णन किया गया हैं (CC.मध्य लीला अध्याय 19) | इनमें से किसी एक रस में स्थित हो कर भक्त भगवान की सेवा करता है |
शान्त रस: भगवान कृष्ण के चरणकमलों में पूरी तरह अनुरुक्ति | जब भक्त शान्त रस को प्राप्त होता है, तो वह न तो स्वर्ग जाने की इच्छा करता है न मोक्ष की | ये तो कर्म तथा ज्ञान के फल हैं और भक्त इन्हें नरक के समान समझता है | जिन्होंने भगवान के चरण-कमलों की धूल प्राप्त कर ली है वे न तो स्वर्ग का राज्य, न असीम वर्चस्व, न ब्रह्मा का पद, न ही प्रथ्वी का साम्राज्य चाहते हैं (SB.10.16.37) | शान्त रस को प्राप्त व्यक्ति में दो दिव्य गुण प्रकट होते हैं, समस्त भौतिक इच्छाओ से विरक्ति तथा कृष्ण के प्रीति पूर्ण अनुरुक्ति | शान्त रस के ये दो गुण सभी भक्तों में पाए जाते हैं | शान्त भक्तों के उदाहरण: चारो कुमार |
दास्य रस: शान्त रस का स्वभाव है कि उसमे रंच मात्र भी ममता नही रहती | वह भगवान कृष्ण के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाता | किन्तु जब वह दास्य रस के पद पर उन्नति करता है तब वह कृष्ण के पूर्ण एश्वर्य को अच्छी तरह से समझ पाता है | दास्य रस को प्राप्त भक्त भगवान कृष्ण की सेवा करके निरंतर सुख प्राप्त करता है और उसकी सेवाओ से स्वामी को आनन्द होता है | दास्य भक्तों के उदाहरण: हनुमानजी |
सख्य रस: सख्य रस पद में शान्त रस के गुण तथा दास्य रस की सेवा दोनों ही विध्यमान रहते हैं तथा साथ में आदरयुक्त भय के स्थान पर सखा का विश्वास मिला रहता है | सख्य रस के पद पर कभी भक्त भगवान की सेवा करता है तो कभी बदले में कृष्ण से अपनी सेवा करवाता है तथा अपने आप को उन्ही के समान समझता हैं | सख्य रस के पद पर भगवान अपने भक्तों के बस में रहते हैं | सख्य भक्तों के उदाहरण: अर्जुन तथा वृन्दावन में उनके ग्वालबाल सखा |
वात्सल्य रस: वात्सल्य रस के पद पर शान्त रस, दास्य रस, तथा सख्य रस के गुण पालन नामक सेवा में परिणित होजाते हैं | वात्सल्य रस में भक्त अपने आपको भगवान का पालक समझता है और भगवान पालन के पात्र रहते हे जैसाकि पुत्र होता है | वात्सल्य रस में चार रसो के गुणों का मेल रहता है अतः यह अधिक दिव्य अमृत है | वात्सल्य भक्तों के उदाहरण: माता यशोदा व पिता नन्द |
माधुर्य रस: माधुर्य रस में कृष्ण के प्रीति निष्ठा, उनकी सेवा, सखा का असंकोच भाव तथा पालन की भावना – इन सबकी घनिष्ठता की वृद्धि हो जाती है | माधुर्य रस में भक्त भगवान को अपना शरीर अर्पित कर देता है | अतः इस रस में पांचो रसो के दिव्य गुण उपस्थित रहते हैं | इस तरह माधुर्य रस में भक्तों के सारे भाव घुलमिल जाते हे इसका गाढा स्वाद निश्चित रूप से अद्भुत होता है | माधुर्य रस ही सर्वश्रेष्ठ रस है | माधुर्य भक्तों के उदाहरण: वृदावन की गोपियाँ, द्वारका की पटरानियाँ तथा वैकुण्ठ की लक्ष्मियाँ |
माधुर्य प्रेम में श्री राधाजी द्वारा कहे गए कुछ उदगार:
मुझे अपनी खुद की पीड़ा की चिंता नही है | मैं तो कृष्ण के सुख की ही कामना करती हूँ, क्योंकि उनका सुख ही मेरे जीवन का लक्ष्य है | किन्तु यदि वे मुझे पीड़ा देने में ही महान सुख का अनुभव करते हैं, तो वह पीड़ा मेरा सबसे श्रेष्ठ सुख है (CC.अन्त्य लीला 20.52) | यदि कृष्ण किसी अन्य स्त्री के सोंदर्य से आकृष्ट हो कर उसके साथ रमण करना चाहते है, किन्तु दु:खी रहते हैं कि वे उसे पा नहीं सकते, तो मैं उसके पावों पर गिर कर उसका हाथ पकड़ कर कृष्ण के पास लाती हूँ और उनकी प्रसन्नता के लिए उसे कृष्ण के साथ क्रीडा करने के लिए छोड़ देती हूँ (CC.अन्त्य लीला 20.53) | यदि मुझसे ईर्ष्या करने वाली कोई गोपी कृष्ण को तुष्ट करती है और कृष्ण उसे चाहने लगते हैं, तो मैं उसके घर जाने में नही हिचकूंगी और उसकी दासी बन जाऊंगी, क्योंकि तब मेरा सुख जागृत हो उठेगा (CC.अन्त्य लीला 20.56) |
गोपियाँ सोचती है: मेरा यह शरीर कृष्ण को अर्पित है, इस शरीर को देख कर तथा इसका स्पर्श करके कृष्ण को आनन्द मिलता है | इसलिए वे अपने शरीर को स्वच्छ करती एवं सजाती हैं | गोपियों को देख कर कृष्ण को जितना आनन्द मिलता है, उससे करोड़ों गुना आनन्द गोपियों को मिलता है | गोपियाँ सोचती हैं: हमें देख कर कृष्ण को इतना सुख मिला है, इस विचार से उनके मुखों तथा शरीरों की पूर्णता तथा सुन्दरता बढ जाती है | गोपियों की सुन्दरता देख कर, भगवान कृष्ण की सुन्दरता बढ जाती है | और गोपियाँ कृष्ण की सुन्दरता को जितना अधिक निहारती हैं, उतना ही अधिक उनका सौन्दर्य बढ जाता है | इस प्रकार उनके बीच होड़ लग जाती है, जिसमें कोई भी अपनी हार स्वीकार नही करता | गोपियों का प्रेम भगवान कृष्ण के माधुर्य का पोषण करता है बदले में यह माधुर्य उनके प्रेम को वर्धित करता है (CC.आदि लीला 4.182-183,187,191-193& 198) |
गोपियों का माधुर्य प्रेम सर्वोच्च भक्ति है, जो भक्ति की अन्य सारी विधियों को पार कर जाती है | इसलिए भगवान कृष्ण को कहना पड़ा, “हे गोपियों, मैं तुम लोगों का ऋण नहीं उतार सकता | निस्सन्देह, मैं तुम लोगों का सदैव ऋणी हूँ (CC.अन्त्य लीला 7.43) |
Hare Krishna
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