i read hindi version of this book
some lines from krsna book -
निर्विश्वादी निराकार का ध्यान करते हे क्योंकि वे आपके चरणकमलोंका ध्यान करने में असमर्थ होते हे !
इस उपेक्षा भाव के कारण वे संसार के बद्ध जीवन में पुनः आ गिरते हे,भले ही वे कुछ काल निराकार साक्षात्कार के पद तक पहुच जाए !
निर्विशेषवादी ब्रह्मतेज में लीन होनेके लिए कठिन तपस्या करते हे ,किन्तु उनके मन भौतिक कल्मष से मुक्त नहीं होते,वे चिंतन की भौतिक विधियोंका निषेध मात्र करते रहते हे ! इसका यह तात्पर्य कदापि नहीं की वे मुक्त हो चुके हे ! इस तरह वे निचे गिर जाते हे !
भगवद्गीता- अवजानन्ति माम् मूढा: फलत: निर्विशेश्वादी भौतिक वासना पर विजय पाने तथा मुक्ति तक पहुचने के बावजूद निचे गिर जाते हे !
kintu jo brahmatej me mil chuka he vah punah vaapas kaise aa sakta he ?
hare krishna !!
Replies
The characteristic of the soul is - sat cit ananda. Unless one realizes this in completion one cannot be perfectly situated.
Brahman/ Brahmajyoti/ Brahmajyoyi is manifestation of sat feature of Supreme personality of godhead free from material contamination.
However the ananda feature of rendering devotional service is absent in brahman, which is the constitutional feature of soul.
Hence from brahmanjyoti soul in order to seek ananda can again come to material world.
Soul brahmajyoti cannot go to spiritual world without grace of Krsna or a pure devotee.
Hare Krsna