ये रथ जा रहा किस ओर
कहाँ चले हे नंदकिशोर.
जा रहा क्यूं व्रज को तू छोड़
हमसे सारे रिश्तों को तोड़.
ज़रा बता दे गलती हमारी
हो गया क्या हमसे कसूर.
क्षण का विरह सहा नही जाता
जा रहा तू अब इतनी दूर.
दिन को बांसुरी बजा बुलाया
रात को संग में रास रचाया.
कैसी आग लगी मथुरा में कि
तूने आज वो सब कुछ भुलाया.
प्यार था तेरा या था छलावा
अपनापन का था वो दिखावा.
हम तो ठहरी गावं की ग्वालन
प्रेम समझ उसे सिर पे चढ़ाया.
व्रज के रक्षक कहलाते थे और
आज प्राण हमारे लिए जा रहे.
हम हुए थे तेरे सबको छोड़
आज जाके अपनी किसे कहे.
निकुंज की बा



