भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक
अध्याय छह ध्यानयोग
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥ 47 ॥
योगिनाम्– योगियों में से;अपि– भी;सर्वेषाम्– समस्त प्रकार के;मत्-गतेन– मेरे परायण, सदैव मेरे विषय में सोचते हुए;अन्तः-आत्मना– अपने भीतर;श्रद्धावान्– पूर्ण श्रद्धा सहित;भजते– दिव्य प्रेमाभक्ति करता है;यः– जो;माम्– मेरी (परमेश्वर की);सः– वह;मे– मेरे द्वारा;युक्त-तमः– परम योगी;मतः– माना जाता है।
भावार्थ : और समस्त योगियों में से जो योगी अत्यन्त श्रद्धापूर्व