subuddhi dubey (3)

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भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक

अध्याय छह ध्यानयोग

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।

श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः 47


योगिनाम्– योगियों में से;अपि– भी;सर्वेषाम्– समस्त प्रकार के;मत्-गतेन– मेरे परायण, सदैव मेरे विषय में सोचते हुए;अन्तः-आत्मना– अपने भीतर;श्रद्धावान्– पूर्ण श्रद्धा सहित;भजते– दिव्य प्रेमाभक्ति करता है;यः– जो;माम्– मेरी (परमेश्वर की);सः– वह;मे– मेरे द्वारा;युक्त-तमः– परम योगी;मतः– माना जाता है।

भावार्थ : और समस्त योगियों में से जो योगी अत्यन्त श्रद्धापूर्व

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भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक

अध्याय पाँच कर्मयोग -- कृष्णभावनाभावित कर्म

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति 29

भोक्तारम्– भोगने वाला, भोक्ता;यज्ञ– यज्ञ;तपसाम्– तपस्या का;सर्वलोक– सम्पूर्ण लोकों तथा उनके देवताओं का;महा-ईश्वरम्– परमेश्वर;सुहृदम्– उपकारी;सर्व– समस्त;भूतानाम्– जीवों का;ज्ञात्वा– इस प्रकार जानकर;माम्– मुझ (कृष्ण) को;शान्तिम्– भौतिक यातना से मुक्ति;ऋच्छति– प्राप्त करता है।

भावार्थ : मुझे समस्त यज्ञों तथा तपस्याओं का पर भोक्त

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भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक

अध्याय पाँच कर्मयोग -- कृष्णभावनाभावित कर्म

ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः 22

ये– जो;हि– निश्चय हि;संस्पर्श-जा– भौतिक इन्द्रियों के स्पर्श से उत्पन्न;भोगाः– भोग;दुःख– दुःख;योनयः– स्त्रोत, कारण;एव– निश्चय हि;ते– वे;आदि– प्रारम्भ;अन्तवन्त– अन्तकाले;कौन्तेय– हे कुन्तीपुत्र;– कभी नहीं;तेषु– उनमें;रमते– आनन्द लेता है;बुधः– बुद्धिमान् मनुष्य।

भावार्थ : बुद्धिमान् मनुष्य दुख के कारणों में भाग नहीं लेता जो कि भौति

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