subuddhi dubey (1)

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भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक

अध्याय पाँच कर्मयोग -- कृष्णभावनाभावित कर्म

ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः 22

ये– जो;हि– निश्चय हि;संस्पर्श-जा– भौतिक इन्द्रियों के स्पर्श से उत्पन्न;भोगाः– भोग;दुःख– दुःख;योनयः– स्त्रोत, कारण;एव– निश्चय हि;ते– वे;आदि– प्रारम्भ;अन्तवन्त– अन्तकाले;कौन्तेय– हे कुन्तीपुत्र;– कभी नहीं;तेषु– उनमें;रमते– आनन्द लेता है;बुधः– बुद्धिमान् मनुष्य।

भावार्थ : बुद्धिमान् मनुष्य दुख के कारणों में भाग नहीं लेता जो कि भौति

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