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भगवद्गीता यथारूप 108 महत्त्वपूर्ण श्लोक

अध्याय तीन कर्मयोग

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते 21

यत् यत् –जो-जो;आचरति– करता है;श्रेष्ठः– आदरणीय नेता;तत्– वही;तत्– तथा केवल वही;एव– निश्चय ही;इतरः– सामान्य;जनः– व्यक्ति;सः– वह;यत्– जो कुछ;प्रमाणम्– उदाहरण, आदर्श;कुरुते– करता है;लोकः– सारा संसार;तत्– उसके;अनुवर्तते– पदचिन्हों का अनुसरण करता है।
भावार्थ : महापुरुष जो जो आचरण करता है, सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते हैं। वह अपने अनुसरणीय कार्यों से जो आदर्श प्रस्तुत करता है, सम्पूर्ण विश्व उसका अनुसरण करता है।

तात्पर्य: सामान्य लोगों को सदैव एक ऐसे नेता की आवश्यकता होती है, जो व्यावहारिक आचरण द्वारा जनता को शिक्षा दे सके। यदि नेता स्वयं धूम्रपान करता है तो वह जनता को धूम्रपान बंद करने की शिक्षा नहीं दे सकता। चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि शिक्षा देने से पूर्व शिक्षक को ठीक-ठीक आचरण करना चाहिए। जो इस प्रकार शिक्षा देता है वह आचार्य या आदर्श शिक्षक कहलाता है। अतः शिक्षक को चाहिए कि सामान्यजन को शिक्षा देने के लिए स्वयं शास्त्रीय सिद्धान्तों का पालन करे। कोई भी शिक्षक प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथों के नियमों के विपरीत कोई नियम नहीं बना सकता। मनु-संहिता जैसे प्रामाणिक ग्रंथ मानव समाज के लिए अनुसरणीय आदर्श ग्रंथ हैं, अतः नेता का उपदेश ऐसे आदर्श शास्त्रों के नियमों पर आधारित होना चाहिए। जो व्यक्ति अपनी उन्नति चाहता है उसे महान शिक्षकों द्वारा अभ्यास किये जाने वाले आदर्श नियमों का पालन करना चाहिए। श्रीमद्भागवत भी इसकी पुष्टि करता है कि मनुष्य को महान भक्तों के पदचिन्हों का अनुसरण करना चाहिए और आध्यात्मिक बोध के पथ में प्रगति का यही साधन है। चाहे राजा हो या राज्य का प्रशासनाधिकारी, चाहे पिता हो या शिक्षक-ये सब अबोध जनता के स्वाभाविक नेता माने जाते हैं। इन सबका अपने आश्रितों के प्रति महान उत्तरदायित्व रहता है, अतः इन्हें नैतिक तथा आध्यात्मिक संहिता सम्बन्धी आदर्श ग्रंथों से सुपरिचित होना चाहिए।

(समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान)

 

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Comments

  • 🙏 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
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