गोलोक
कितना पावन होगा
जहाँ बैठे होंगे खुद
मोहन
कितना मनभावन होगा
मोहन की मुस्कान
मुरली की तान
उनके घुंघुरू भी
करते होंगे गान
पिताम्बर भी करती होंगी
बातें कान्हा के मोर - मुकुट से
इठलाती होगी वैजयंती माला
मै तो लिपटी हूँ खुद कान्हा से
गैया चराते गोपाल
उनकी सेवा में लगे
सहस्रों लक्ष्मियाँ
आध्यात्मिक प्रकाश से
प्रकाशित
दिव्य अलौकिक दुनिया
कुछ भी जड़ नही
हर चीज होगी चेतन
जल और वायु भी
होंगे वहां के पावन
कितने नसीबवाले होंगे
जिन्हें मिला होगा
ये दुर्लभ आध्यात्मिक जग
कितना सुखद होगा
वो अहसास
भक्त का सिर
स्वयं


