कृष्ण के पास समस्त ऐश्वर्य तो हैं, परन्तु इसका प्रमाण क्या है?
समस्त बल: श्री कृष्ण के पास समस्त बल है....क्योंकि उन्होंने मात्र ७ वर्ष की आयु में गोवर्धन पर्वत धारण किया, उन्होंने मात्र कुछ दिवस का होने पर भी पूतना का वध किया, पूतना ही नहीं, ३-५ वर्ष की आयु तक उन्होंने अनेकों दानवों का अंत किया, वह कंस, जिससे स्वयं इंद्र देव हारे थे, उस कंस का अंत मात्र १२ वर्ष की आयु में किया, तो कृष्ण से अधिक बलवान कौन हो सकता है भला?
सम्पूर्ण धन: लक्ष्मी जी श्री कृष्ण की पत्नी हैं, सदैव उनकी सेवा में रहती हैं, अर्थात समस्त धन उनका ही है. इसका उदाहरण है द्वारका नगरी, श्री कृष्ण ने द्वारका को सागर के मध्य बनाया और सम्पूर्ण द्वारका को हीरे-मोशन से सजवाया, यही नहीं, उनकी १६,१०८ रानिओं के एक से, वैभवशाली महल थे, सबके अपने महल, सबके अपने कृष्ण!! इससे ज्यादा धन किसके पास होगा भला?
समस्त यश: श्री कृष्ण से अधिक यशस्वी कौन होगा भला? श्री कृष्ण के गुणगान, उनकी प्रशंसा कौन नहीं करता भला? बचपन से लेकर, इस मृत्युलोक में बिताए आखिरी क्षण तक श्री कृष्ण ही सर्वाधिक यशस्वी रहे.
सम्पूर्ण सौन्दर्य: श्री कृष्ण का सौंदर्य उनके भक्तों ने विभिन्न ग्रंथों के द्वारा दर्शाया है. अनेकों चंद्रमा, सेंकडों कामदेवों की सुन्दरता से भी अधिक सुन्दर हैं श्री कृष्ण!! कौन होगा उनसे अधिक सुन्दर?
सम्पूर्ण ज्ञान: श्री कृष्ण के ज्ञान का पता इसी से चलता है कि केवल गीता का ज्ञान देने पर ही, वह गीता सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सर्वाधिक ज्ञानमय हो गयी....गीता को, तब से लेकर आज तक, हर ज्ञानी ने समस्त ज्ञान का स्रोत माना है. होगा कोई उनसे अधिक ज्ञानी?
सम्पूर्ण त्याग: श्री कृष्ण से बढ़कर कौन त्यागी होगा, जिन्होंने अपनी उन समस्त गोपिओं का, अपनी यशोदा मैया का त्याग किया, जो कृष्ण पर जान लुटती थीं? वो भी क्यों? अपने कर्तव्यों की पूर्ती हेतु. कौन होगा इतना बड़ा त्यागी? कोई नहीं.
अर्थात छः के छः ऐश्वर्य सम्पूर्ण रूप से श्री कृष्ण में पाए जाते हैं, अतः वे ही भगवान् हैं.
भगवान् श्री कृष्ण ही सर्व-आकर्षक क्यों हैं? श्रीमद भगवद्गीता यथा रूप में प्रभुपाद जी ने दूसरे अध्याय के दूसरे श्लोक के भावार्थ में कहा है, कि व्यासदेव के पिता, पराशर मुनि ने भगवान् शब्द की परिभाषा इस प्रकार दी है, कि समस्त बल, धन, शक्ति, यश, सौंदर्य, ज्ञान तथा त्याग से युक्त परम पुरुष भगवान् कहलाते हैं. इस संसार में एक सीमित मात्रा में यह सभी ऐश्वर्य लोगों में पाए जा सकते हैं, परन्तु कोई ऐसा मनुष्य न है जिसमें समस्त ऐश्वर्य पाए जाते हों. श्री कृष्ण ही वे भगवान् हैं जिनमें यह समस्त ऐश्वर्य सम्पूर्ण रूप से पाए जाते हैं, और जो सम्पूर्ण ऐश्वर्यों का मालिक हो, उनका दाता भी वही होता है. अर्थात, श्री कृष्ण से ही समस्त ऐश्वर्य उत्पन्न होते हैं. तो कोई भी व्यक्ति, जो किसी भी वास्तु के प्रति आकर्षित होता है, वह भगवान् कृष्ण के प्रति आकर्षित न हो, ऐसा कैसे संभव है? समस्त आकर्षण का केंद्र जिन भगवान् से ही उत्पन्न होता है, उन भगवान् के विषय में न सोच कर, अन्य ऐसी वस्तुओं के विषय में सोचना जो कि नश्वर हैं और जिनमें एक सीमित मात्रा में ही ऐश्वर्य होता है, हम कैसे और क्यों आकर्षित हो सकते हैं?
यह सोचने का विषय है. हमें अपने आकर्षण का केंद्र भगवान् कृष्ण को ही रखना चाहिए, तभी हमारी समस्त इन्द्रियों की संतुष्टि हो सकती है.
हरे कृष्ण....!!!!
हरे कृष्ण....!!
किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व यह समझना अति आवश्यक है कि वह कार्य हम क्यों करने जा रहे हैं. अतः इससे पहले कि कोई श्री कृष्ण के विषय में जाने, समझे, विचारे, यह अत्यधिक आवश्यक है कि हम श्री कृष्ण के विषय में क्यों जानना चाहते हैं? कौन हैं कृष्ण? कृष्ण के विषय में ही क्यों जानना है? कृष्ण ही क्यों मददगार हैं?
तो जब हम कृष्ण की बात करते हैं, तो सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि हम कृष्ण के विषय में क्यों जाने....!!
कृष्ण का अर्थ है सर्वाकर्शक....!!!
तो कृष्ण हैं सर्व-आकर्षक. जिसमें सर्वाधिक आकर्षण है, वे ही कृष्ण हैं. इसका प्रमाण देने के पूर्व यह जानना आवश्यक है कि हमें इससे क्या मतलब कि कृष्ण सर्वाधिक आकर्षक हों? इसका सीधा उत्तर है कि यह मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही है आकर्षण के पीछे भागना...!! हम खाना वो खाना पसंद करते हैं, जो अत्यधिक स्वादिष्ट हो, क्यों? क्योंकि स्वादिष्ट व्यंजन हमें आकर्षित करता है. हम वह वस्त्र पेहेनना पसंद करते हैं, जिससे हम आकर्षक दिखें....!! लोग हमें देख कर खुश हों, उन्हें हमारे वस्त्र आकर्षक लगें....!! हम वहां जाना पसंद करते हैं जहाँ से हम आकर्षित हों....!! जिस जगह पर अधिक आकर्षण होता है, हर व्यक्ति वहीँ जाना पसंद करता है. इस जीवन में हम जो कुछ भी करते हैं वह केवल आकर्षित होकर करते हैं, चाहे जो भी कर्म करें, उस कर्म में आकर्षण अवश्य होता है.....!!
इसलिए कृष्ण हैं सर्वाधिक आकर्षक. तो हमारे सम्पूर्ण आकर्षण का केंद्र भी कृष्ण ही होने चाहिए.
बच्चा पहले साइकिल के प्रति आकर्षक होता है, फिर बड़ा होता है तो उसे स्कूटी/बाइक के प्रति आकर्षण होता है, उसके बाद कार, फिर और मेहेंगी कार, फिर और किसी मेहेंगे और अधिक आकर्षक वाहन के प्रति आकर्षण उत्पन्न होता है. अर्थात यह स्पष्ट है कि हमारी आकर्षण कि प्रवृत्ति है जो कभी शांत नहीं होती. चाहे हम जो कुछ भी पा लें, परन्तु हमारी इच्छा और भी आकर्षक वस्तु को पाने की होती ही है. इसलिए ही कृष्ण को समझना, उनके विषय में जानना आवश्यक है. क्योंकि हमारी आकर्षण की भूख को केवल कृष्ण ही शांत कर सकते हैं. क्योंकि श्री कृष्ण सर्व-आकर्षक हैं, इसलिए यदि हमारा मन, ह्रदय, बुद्धि, कर्म केवल कृष्ण के प्रति आकर्षित होंगे, तो हमारे अन्य वस्तुओं से आकर्षण की भूख स्वतः शांत हो जाएगी. इसलिए कृष्ण को जानना, उनके विषय में पढना-सुनना इसलिए आवश्यक है क्योंकि हमें अपनी आकर्षण कि भूख शांत करनी है और वह भूख केवल कृष्ण ही शांत कर सकते हैं.....!!
हरे कृष्ण.....!!
रसराज श्रीकृष्ण, प्रभुपाद जी की रचना है जो उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता और भक्तिरसामृत सिन्धु कि शिक्षाओं से रचा है. यह रचना उन सभी के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है जो श्रीकृष्णभावनामृत में पहला कदम रख रहे हैं. जो कोई भी आत्मा-परमात्मा के विषय में जानने का इच्छुक हो उसके लिए यह रचना एक आधार बनती है, जिससे हम श्रीमद्भगवद्गीता और भक्तिरसामृत सिन्धु को और बेहतर तरह से समझ सकते हैं.
जय श्रील प्रभुपाद!!
हरे कृष्णा!!