भगवान् श्री कृष्ण ही सर्व-आकर्षक क्यों हैं? श्रीमद भगवद्गीता यथा रूप में प्रभुपाद जी ने दूसरे अध्याय के दूसरे श्लोक के भावार्थ में कहा है, कि व्यासदेव के पिता, पराशर मुनि ने भगवान् शब्द की परिभाषा इस प्रकार दी है, कि समस्त बल, धन, शक्ति, यश, सौंदर्य, ज्ञान तथा त्याग से युक्त परम पुरुष भगवान् कहलाते हैं. इस संसार में एक सीमित मात्रा में यह सभी ऐश्वर्य लोगों में पाए जा सकते हैं, परन्तु कोई ऐसा मनुष्य न है जिसमें समस्त ऐश्वर्य पाए जाते हों. श्री कृष्ण ही वे भगवान् हैं जिनमें यह समस्त ऐश्वर्य सम्पूर्ण रूप से पाए जाते हैं, और जो सम्पूर्ण ऐश्वर्यों का मालिक हो, उनका दाता भी वही होता है. अर्थात, श्री कृष्ण से ही समस्त ऐश्वर्य उत्पन्न होते हैं. तो कोई भी व्यक्ति, जो किसी भी वास्तु के प्रति आकर्षित होता है, वह भगवान् कृष्ण के प्रति आकर्षित न हो, ऐसा कैसे संभव है? समस्त आकर्षण का केंद्र जिन भगवान् से ही उत्पन्न होता है, उन भगवान् के विषय में न सोच कर, अन्य ऐसी वस्तुओं के विषय में सोचना जो कि नश्वर हैं और जिनमें एक सीमित मात्रा में ही ऐश्वर्य होता है, हम कैसे और क्यों आकर्षित हो सकते हैं?
यह सोचने का विषय है. हमें अपने आकर्षण का केंद्र भगवान् कृष्ण को ही रखना चाहिए, तभी हमारी समस्त इन्द्रियों की संतुष्टि हो सकती है.
हरे कृष्ण....!!!!
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