Realisation in Vrindavan Dhaam

14 November, 2010
 
हरे कृष्ण,
आज मेरे आध्यात्मिक जीवन का बहुत ही सुन्दर दिन है| मैंने कभी नहीं सोचा था कि श्री कृष्ण अपनी कृपा इस तरह मुझ पर बरसाएंगे| परन्तु वास्तविकता तो यही है कि हम जो सोचते हैं, अगर वो हो जाए तो इतनी ख़ुशी नहीं देता| जो कभी न सोचा हो, अगर वो हमें कृष्ण कृपा से मिलता है तो हम कृष्ण प्रेम के पूर्ण और वास्तविक भाव में डूब जाते हैं| और कृष्ण के इस प्रेम रुपी भाव  में डूबे रहना ही कृष्ण भावनामृत है|
बहुत तीव्र इच्छा होने के बाद भी मैं किसी कारण वश 31 अक्टूबर 2010 को वृन्दावन नहीं जा पाई| मन बहुत दुखी था| लेकिन आज लगता है कि मेरी वह तीव्र इच्छा श्री कृष्ण की इस कृपा के आगे कुछ भी नहीं थी| यदि मैं उस दिन चली जाती तो शायद आज इतने महान भक्त के साथ जाने का  मौका नहीं मिलता| यह महान भक्त मेरे दूर के रिश्तेदार मधुमंगल दास हैं जिनसे  बहुत सालों बाद मिली थी| इनके साथ ब्रज जाने के बाद मुझे वास्तव में पता  लगा कि भक्तों का संग क्यों जरूरी है| भक्तों का संग आपको कृष्ण प्रेम से भर देता हैं और आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करने की इच्छा तीव्र कर देता हैं|
 
जबसे मैंने यह जाना था कि श्रील प्रभुपाद  ने राधा-दामोदर मंदिर में रहकर श्रीमद्भागवतम  का हिंदी से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था , उसी समय से मेरी वहां जाने की हार्दिक इच्छा हुई|
आज  इस्कॉन  मंदिर व बाँके बिहारी मंदिर में दर्शन के बाद हम राधा दामोदर मंदिर गए| उस समय वहां आरती हो रही थी| वहां मुझे राधा कृष्ण के दर्शन करके अच्छा तो लग ही रहा था लेकिन साथ ही साथ कुछ अधूरा भी लग रहा था| फिर हम मंदिर के बाकी स्थानों के देखने के लिए आगे बढे| एक कमरे की और इशारा करते हुए एक माताजी ने बताया कि यह श्रील प्रभुपाद की रसोई है| हम वह गए, सब देखा पर मैं अभी भी पूर्ण महसूस नहीं कर पा रही थी| ऐसा लग रहा था कि अभी कुछ और होना बाकी है|  रसोई से बाहर आते ही सामने एक कमरा था, हम वहां गए| मैं नहीं जानती थी कि वह क्या है|
जैसे  ही मैंने उस कमरे में प्रवेश किया मुझे श्रील प्रभुपाद की मूर्ति के दर्शनं हुए| मुझे समझते देर ना लगी कि यह वही कमरा हैं जहाँ श्रील प्रभुपाद ने श्रीमद्भागवतम का अनुवाद किया था| उनके दर्शन करते ही मेरे शारीर में कम्पन होने लगी| मैंने ऐसा पहले कभी महसूस नही किया था| हम उनकी मूर्ति के सामने बैठ गए| मैं जप करने की कोशिश कर रही थी परन्तु मैं असमर्थ रही| ऐसा लग रहा था मानो मैं अपने वश में नहीं हूँ | वहाँ के वातावरण में इतनी कृपा थी कि मैं भाव विभोर हो उठी और उससे भी अधिक आश्चर्य यह होता है कि मैं यह एहसास कर पाई| इतने भाव मैं अपने में समां नही पा रही थी| वहाँ सब वास्तव में बहुत अद्भुत था|
उसके बाद हमने मंदिर के बाकी स्थानों के दर्शन किये| पर मैं अभी भी उस एहसास से दूर नहीं थी| फिर हम वापस इस्कॉन आए| वहाँ दोबारा दर्शन करने के बाद मैं वापस घर आ गई और मधुमंगल दास अपनी यात्रा पर चले गए|
प्रत्येक व्यक्ति को इन आध्यात्मिक स्थानों पर अपने आध्यात्मिक जीवन में प्रगति के लिए अवश्य जाना चाहिए| वहाँ का वातावरण आपको अवश्य ही अच्छा एवम दुनिया से परे महसूस कराएगा| और साथ ही भगवान् की उपस्थिति का एहसास जैसे जैसे आपके दिल में बढेगा, आप जप करने एवम भगवान् की सेवा करने में और भी निपुण हो जायेंगे जैसे कि मैं महसूस कर रही हूँ |
 
हरि हरि |
 

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Replies

  • Hare Krsna...
    I will try my best to post it in englich too very soon...

    HariBol!!!
  • Volunteer
    Perhaps if someone made an audio, it will be awesome.
  • Jai Shri Krishna..

     

    If only I could read Hindi..sigh ;-(  I have no problem understanding Hindi and Google translate is not much help..

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