तुलसी कथा
श्रीकृष्ण का पार्षद सुदामा नाम का एक गोप था, जिसे राधाजी ने शाप दिया था, जिससे वह शंखचुड नामक दानव हुआ | उसने ब्रम्हाजी की तपस्या करके दिव्य श्रीकृष्ण कवच प्राप्त किया तथा वो देवताओ के लिए अजेय हो गया | ब्रम्हा जी की आज्ञा से उसने धर्मध्वज की कन्या " तुलसी " के साथ विवाह किया , वह उत्तम शील से संपन्न थी | इसके बाद शंखचुड ने देवताओ पर आक्रमण कर दिया और उन्हें पराजित कर दिया , और त्रिलोक को जित लिया |बहुत प्रयास के बाद भी कोई भी शंखचुड को पराजित न कर सका |
ब्रम्हा जी के वरदान से जब तक शंखचुड के पास श्रीकृष्ण कवच था, और उसकी पतिव्रता पत्नी " तुलसी " का सतीत्व अखंडित रहेगा शंखचुड पर मृत्यु का कोई प्रभाव नहीं हो सकता था | अतः श्री विष्णु जी ने अपनी माया रची और एक वृद्ध ब्रह्मण का भेष धारण किया ....और शंखचुड से भिक्षा में श्रीकृष्ण कवच मांग लिया , फिर श्री हरी शंखचुड का रूप धारण करके वे तुलसी के पास पहुचे | वहा जाकर सबके आत्मा और तुलसी के नित्य स्वामी श्री हरी ने शंखचुड रूप से तुलसी के शील का हरण कर लिया | वहा शिवजी ने अपने त्रिशूल से शंखचुड का वध कर दिया और वो मुक्त हो गया | परन्तु तुलसी को संदेह हुआ , और वो बोली 'तू कोन है' तब श्री हरी ने अपनी परम मनोहर मूर्ति धारण करली ...परन्तु कुपित तुलसी ने श्री विष्णु को श्राप दिया की तुम पत्थर के जैसे कठोर हो , तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है अतः तुम पाषाण के हो जावो | तभी वहा शंकर जी प्रकट हुए उन्होंने तुलसी को समझाया की तुमने जो तप किया था , यह सब उसी का फल है, अब तुम ये देह त्यागकर दिव्य देह धारण कर लो और लक्ष्मी के समान होकर नित्य श्रीहरी के साथ वैकुण्ठ में विहार करो |तुम्हारा यह शरीर , जिसे तुम छोड़ डौगी, नदी के रूप में परिवर्तित हो जायेगा | यह नदी पुण्य रूपा गण्डकी के नाम से प्रसिद्ध होगी | तथा देवपूजन में तुलसी का प्रधान स्थान हो जायेगा , तुम स्वर्गलोक में ,मृत्यु लोक में , पाताल लोक में में सदा श्रीहरी के निकट ही वास करोगी और पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का वृक्ष हो जयोगी | तथा श्रीहरी पत्थर का रूप धारण करके गण्डकी नदी के जल के निकट निवास करेंगे | वहा कई कीड़े उस पत्थर को काट कर उसके मध्य में चक्र का आकर बनायेंगे | उसके भेद से वह पत्थर शालिग्राम शिला कहलाएगी | विष्णु की शालिग्राम शिला और वृक्ष रूपिणी तुलसी का समागम सदा अनुकूल रहेगा |
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can u give me ur mail id i will forward u the word file which will contain all the details of tulasi and saligrama .
hare krishna
Rasika Govinda Das
श्रीकृष्ण का पार्षद सुदामा नाम का एक गोप था, जिसे राधाजी ने शाप दिया था, जिससे वह शंखचुड नामक दानव हुआ | उसने ब्रम्हाजी की तपस्या करके दिव्य श्रीकृष्ण कवच प्राप्त किया तथा वो देवताओ के लिए अजेय हो गया | ब्रम्हा जी की आज्ञा से उसने धर्मध्वज की कन्या " तुलसी " के साथ विवाह किया , वह उत्तम शील से संपन्न थी | इसके बाद शंखचुड ने देवताओ पर आक्रमण कर दिया और उन्हें पराजित कर दिया , और त्रिलोक को जित लिया |बहुत प्रयास के बाद भी कोई भी शंखचुड को पराजित न कर सका |
ब्रम्हा जी के वरदान से जब तक शंखचुड के पास श्रीकृष्ण कवच था, और उसकी पतिव्रता पत्नी " तुलसी " का सतीत्व अखंडित रहेगा शंखचुड पर मृत्यु का कोई प्रभाव नहीं हो सकता था | अतः श्री विष्णु जी ने अपनी माया रची और एक वृद्ध ब्रह्मण का भेष धारण किया ....और शंखचुड से भिक्षा में श्रीकृष्ण कवच मांग लिया , फिर श्री हरी शंखचुड का रूप धारण करके वे तुलसी के पास पहुचे | वहा जाकर सबके आत्मा और तुलसी के नित्य स्वामी श्री हरी ने शंखचुड रूप से तुलसी के शील का हरण कर लिया | वहा शिवजी ने अपने त्रिशूल से शंखचुड का वध कर दिया और वो मुक्त हो गया | परन्तु तुलसी को संदेह हुआ , और वो बोली 'तू कोन है' तब श्री हरी ने अपनी परम मनोहर मूर्ति धारण करली ...परन्तु कुपित तुलसी ने श्री विष्णु को श्राप दिया की तुम पत्थर के जैसे कठोर हो , तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है अतः तुम पाषाण के हो जावो | तभी वहा शंकर जी प्रकट हुए उन्होंने तुलसी को समझाया की तुमने जो तप किया था , यह सब उसी का फल है, अब तुम ये देह त्यागकर दिव्य देह धारण कर लो और लक्ष्मी के समान होकर नित्य श्रीहरी के साथ वैकुण्ठ में विहार करो |तुम्हारा यह शरीर , जिसे तुम छोड़ डौगी, नदी के रूप में परिवर्तित हो जायेगा | यह नदी पुण्य रूपा गण्डकी के नाम से प्रसिद्ध होगी | तथा देवपूजन में तुलसी का प्रधान स्थान हो जायेगा , तुम स्वर्गलोक में ,मृत्यु लोक में , पाताल लोक में में सदा श्रीहरी के निकट ही वास करोगी और पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का वृक्ष हो जयोगी | तथा श्रीहरी पत्थर का रूप धारण करके गण्डकी नदी के जल के निकट निवास करेंगे | वहा कई कीड़े उस पत्थर को काट कर उसके मध्य में चक्र का आकर बनायेंगे | उसके भेद से वह पत्थर शालिग्राम शिला कहलाएगी | विष्णु की शालिग्राम शिला और वृक्ष रूपिणी तुलसी का समागम सदा अनुकूल रहेगा |
What exactly do you want to know? How it came about that Lord Vishnu took a Shaligram form to marry Tulsi Mata of how is Tulsi Vivah performed.
Tulsi Vivah: http://sankirthanam.blogspot.com/2010/11/nov-21-tulasi-shaligram-vi...
Vishnu cursed to be a stone: http://www.chhathpuja.co/community/groups/viewbulletin/46-LegendTul...